Wednesday, November 18, 2015

श्याम कहाँ है ? आए तो कहना की छैनु आया था 




आज का युवा (२० - २१ साल का) शायद शत्रुघ्न सिन्हा के इस रूप से वाक़िफ़ नहीं होगा। जब शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म इंडस्ट्री में आए - आए ही थे और विलेन का रोल किया करते थे, जो की किसी भी हीरो के रोल से कम नहीं हुआ करता था। फिल्मी निर्देशक, फिल्म के अंदर उनकी एंट्री को उनके बोले हुए संवादों के साथ एक विशेष अंदाज़ में दिखाने का प्रयास करते थे। उनकी एक फिल्म का नाम था - मेरे अपने। जितना मुझे ज्ञान है, यह गुलज़ार द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी जिसमे गुलज़ार ने उस काल के युवा पीढ़ी को दो समूहों में दिखाया था जिसमें पढ़े-लिखे युवा समूह का नेतृत्व विनोद खन्ना कर रहे थे और शत्रुघ्न सिन्हा उसमे अनपढ़ और छोटे - मोटे बदमाश का। एक तरफ फिल्म के हीरो विनोद खन्ना थे और दूसरी तरफ युवा शत्रुघ्न सिन्हा विलेन के रूप में थे, जो की संवाद में कई जगह फिल्म के हीरो - श्याम (विनोद खन्ना) को उसके अड्डे पर पहुंच कर यह डाईलोग बोल कर ललकारा करते थे -     

'श्याम कहा है ? आए तो कहना की छैनु आया था'

मैं (लक्ष्मीकांत मिश्रा ) उस समय बहुत छोटा था। यह बात मैं उस समय की कर रहा हूँ जब त्योहारों के आस- पास सफ़ेद पर्दा लगा कर, सड़कों पर, गली मोहल्लों में, शहर-देहात में सूचना एवं प्रसारण विभाग द्वारा सामाजिक एवं पारिवारिक फिल्में दिखाया जाया करती थी। इन फिल्मों को देखने के लिए हर समुदाय के लोग, हर उम्र के लोग एकत्रित्त हुआ करते थे। उस समय की कई फिल्मों में से, जैसे की - पूरब - पश्चिम, उपकार, यादगार, मेरे अपने, आदि प्रमुख थीं। चूँकि मैं बहुत छोटा था, और यह फिल्म युवा अवस्था पर आधारित थी, मुझे बहुत भा  गई थी, और खासकर शत्रुघ्न सिन्हा का यह डाईलोग  'श्याम कहा है ? आए तो कहना की छैनु आया था' , हुआ करता था, हर युवा, बच्चे , बूढ़े को अच्छा लगता रहा होगा ।  

आज, बरसों बरस बाद, युवा अवस्था को पार करते हुए शत्रुघ्न सिन्हा को राजनीति में कुछ-कुछ उसी अंदाज़ में देख कर मन प्रसन्न होता है। उसी फ़िल्मी पुरुषार्थ को राजनीति के दंगल में यह नायक दिखाने का प्रयास कर रहा है। संवाद बोलने की अदायगी एवं कपडे, चेहरे पे चश्मा लगा हुआ, एक घिसे हुए खालिश नेता (typical) की जगह, शत्रुघ्न सिन्हा का यह अंदाज़ मुझे (लक्ष्मीकांत मिश्रा) के साथ-साथ भारतीय जन-मानस को भी शायद कहीं लुभा रहा है । वार्ना, T R P पर आश्रित दूरदर्शन के समाचार माध्यम इन्हें बार - बार दिखाने का प्रयास क्यों कर रहें हैं ? अपनी बेबाक़ वाणी से अपनी ही पार्टी को कटघरे में खड़ा कर कुछ सामाजिक या राजनितिक एवं सार्थक सवाल खड़े कर रहा है। शत्रुघ्न सिन्हा, इन दिनों सत्ताशील राजनेताओं के बीच में एक राजनैतिक बाग़ी की तरह बाहर आ रहे हैं, जो सत्ता पर बैठे लोगों पर सवाल उठा रहा है लेकिन प्रजातंत्र के मूल तत्व: अपनी-अपनी राय रखने के अधिकार पर सत्ता के चाटुकारों के निशाने पर आ गए हैं । यह चाटुकार नेता प्रजातंत्र के मूल सिद्धांत को भूल कर शत्रुघ्न सिन्हा पर अनुशासन हीनता की दुहाई दे रहे हैं। यह प्रजातंत्र का दुर्भाग्य ही है की भारत जैसे देश में जब भी सत्ता कैबिनेट के खिलाफ कोई आवाज़ उठाता है तो उसे इस प्रकार की पीड़ा से गुज़ारना पड़ता है । पूर्व का मेरा (लक्ष्मीकांत मिश्रा) यह अनुभव रहा है की इस तरीके के दबंग नेताओं का हश्र भारतीय राजनीति में बहुत अच्छा नहीं रहा । यह साधारणतः बड़बोले पन का शिकार हो जाते हैं, राजनितिक गुटों का अंश हो जाते हैं , या फिर इनकी सारी ताक़त या हवा, इनको राजनीतिक पद देकर या सत्ता में कही इनकी हिस्सेदारी खड़ी कर के लालच से निकाल दी जाती है ।

शत्रुघ्न सिन्हा पूर्व के इन अनुभवों से सबक लेकर अगर अपनी आगे की योजनाएँ बनाएँ , तब मैं यह कह सकता हूँ- राजनीति का यह छैनु (शत्रुघ्न सिन्हा) भारतीय राजनीति में कोई लम्बी पारी खेलेगा। सत्ता लुलुप्ता, धुरंदर नेताओं की राजनीति का अंश एवं बड़बोलेपन को रोक कर अगर शत्रुघ्न सिन्हा राष्ट्रीय समस्याओ, अपने उनके खुद के ग्रह प्रदेश - बिहार की समस्याओं के निवारण के लिए अगर कोई रूपरेखा (ब्लूप्रिंट) एवं इन समस्याओं के समाधान के लिए अपना सहयोग दें, मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ की ,तब शत्रुघ्न सिन्हा एक राजनितिक शक्ति के रूप में उभरेंगे । जिन नेताओं पर उन्होंने सवाल उठाएं है, तब उनके व्यक्तित्व एवं डाईलोग डिलीवरी का अंदाज़, उनके व्यक्तित्व से मेल करेगा। तब लगेगा, यह वही नायक है जिसने फिल्मी परदे पर ('मेरे अपने') हीरो को ललकारते हुए यह बोला था ; 'श्याम कहा है ? आए तो कहना की छैनु आया था' ,



Lucky Baba
Om Sai …

Tuesday, November 10, 2015



आजकल भारत सहिष्णुता (Tolerance) और असहिष्णुता (Intolerance) तथा बिहार में प्रजातंत्र के महापर्व, विधानसभा चुनाव की बहस या फिर मैं यूँ कहुँ की एक विशेष प्रकार की सरगर्मी के दौर से गुज़र रहा है । दोनों ही मुद्दे, अपनी मर्यादित सीमाओं को लाँघने लग गए है । बिहार का चुनाव दो गठबंधनों का चुनाव ना होकर एवं विधान सभा का चुनाव ना होकर ,एक युद्ध की तरह दिखाई देने लग गया है। भारतीय राजनीति में , किसी भी प्रदेश का चुनाव इस स्तर पर शायद ही पूर्व में कभी देखा गया हो। दोनों ही महागठबंधन के राजनेता अपनी मर्यादाओं को भूल कर सत्ता के संघर्ष में राष्ट्रीयता, बढ़प्पन, आदर्शवादिता, को भूल गए है। इसी तरीके से एक नई बहस जो किसी भी प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में बहुत कम सुनाई देती है ,वह शुरू हो गई है - सहिष्णुता और असहिष्णुता की लड़ाई , नित नए आयाम छू रही है। साधारणतः इस तरीके के आंदोलन प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में नहीं के बराबर पाये जाते है। उसकी वजह मैं यह कहूँगा की इस विशेष प्रकार के आंदोलन के लिए भारत देश जैसा प्रजातान्त्रिक राष्ट्र अभी तैयार नहीं है - उसके तैयार न होने की मूल वजह मैं यह मानता हूँ की इसके कार्यकर्ता या आंदोलनकारी, जो लोग होते है वह भारत राष्ट्र जैसे विकास शील देश में एक विशेष वर्ग के होते है। राष्ट्र में जैसे एक विशेष वर्ग के लोग होते है, इनका विशेष वर्ग में प्रभुत्व होता है , लेकिन इस आंदोलन के जो आंदोलनकारी है, उनमे एक वर्ग ऐसा भी जुड़ गया है जिसका आम जनता से सीधा सरोकार है । 

भारत में, क्रिकेट एवं फिल्म जगत के लोग विशेष प्रकार के हो कर भी आम जनता से सीधे जुड़े रहते हैं , इनका प्रभाव, इनकी गतिविधिया, इनका बोल - चाल का तरीक़ा, एक विशेष प्रभाव, भारतीय जन मानस पर डालता है। इसमें से एक वर्ग इस आंदोलन से सीधा सम्बन्ध बनाने का प्रयास कर रहा है । मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , कहने में यह बिलकुल संकोच नहीं करूँगा की वह वर्ग है - फिल्म जगत, जिसका नेतृत्व शाहरुख़ ख़ान कर रहें हैं, जो की पिछले कई वर्षों से भारतीय फिल्म जगत (Bollywood) के सुपर स्टार हैं , जिनकी फिल्में भारतीय जन मानस में विशेषकर युवा पीढ़ी पे विशेष प्रभाव डालती हैं । मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , ऊपर भी लिख चुका हूँ की क्रिकेट एवं फिल्में , भारतीय जन मानस पे विशेष प्रभाव डालती हैं । इन् दोनों ही वर्गों से भारतीय जन मानस अपने को विशेष प्रकार से जुड़ा हुआ या अपना जुड़ाव महसूस करता है। 

इन् दोनों ही वर्गों के, भारतीय जन मानस में विशेष प्रभाव की कई वजहे होंगी , लेकिन मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा, दावे से यह कह सकता हूँ की , इन दोनों ही वर्गों में (क्रिकेट और फिल्म) जातिवाद ,धर्म , विशेष प्रदेश का निवासी या विशेष वर्ग का होना कोई मायने नहीं रखता -  यह दोनों क्षेत्र ऐसे हैं जिसमें कार्य करने वाले लोग , इन सारे बंधनो या इन् गंदगियों से मुक्त होते हैं - ऐसा भारतीय जन मानस मानता है । भारतीय क्रिकेट टीम में, अज़हरुद्दीन , मुश्ताक़ अली , नवाब मंसूर अली खान पटौदी, मोहम्मद कैफ, ज़हिर खान - इन लोगों का सम्मान सचिन तेंदुलकर, कपिल देव , सुनील गावस्कर , हरभजन सिंह , वीरेंद्र सेहवाग , आदी से कम नहीं है । इसी प्रकार ,भारतीय फिल्म जगत के शाहरुख़ खान , सलमान खान , सैफ अली खान , युसूफ खान (दिलीप कुमार) उतने ही जन मानस में लोकप्रिय है या लोगों के चहेते हैं जितने अमिताभ बच्चन ,राजेश खन्ना ,अजय देवगन ,अक्षय कुमार आदी। कहने का तात्पर्य यह है की जहाँ पर वर्ग विशेष का बंधन समाप्त हो जाता है ,जाती धर्म का बंधन समाप्त हो जाता है , वहाँ पर भारतीय जन मानस भी सारे बंधनों से मुक्त होकर इन्हे अपना नायक (हीरो) के रूप  में स्वीकार कर लेता है । 

साधारणतः यह नायक विवादों से दूर रहते हैं , विशेष कर तब तक ,जब तक इनका अंतर्मन किसी विशेष वजह से व्यथित ना हों । यह अपने काम से काम रखते हैं, अपने कार्य में पूर्ण सतर्क रहते हैं , एवं राष्ट्रीय विवादों से दूर रहते हैं। राष्ट्रीयता के मुद्दे पर जब कभी भी राष्ट्र को इनकी ज़रुरत होती है, या फिर इनके अंतर्मन से राष्ट्र के लिए कुछ विशेष करने का अवसर आता है तो यह बिना किसी भेद भाव के उस कार्य में लग जाते हैं। भारतीय सीमाओं पर सैनिको का उत्साह बढ़ाना हो , अकाल के वक़्त धन संगृहीत करना हो , सुनामी या भूकम्प जैसी प्राकृतिक विपदाओं में देश फंस जाए , यह पूरे उत्साह के साथ राष्ट्र सेवा में लग जाते हैं । मैंने इन्हें , साधारणतः राष्ट्रीय , राजनितिक , जातीय झगड़ों में राष्ट्रीय स्तर पर कभी भी विवादित बयांन - बाज़ी करते हुए शायद ही कभी देखा या सुना हो । लेकिन यह लोग आज कल सहिष्णुता और असहिष्णुता - रुपी आंदोलन में विशेष भूमिका निभा रहे हैं । भारतीय जन मानस फिल्म जगत को या इस विशेष समुदाय का राजनीतिकरण होता हुआ पहली बार देख रहा है, जिसके दूसरे पक्ष की अगवाई अनुपम खेर नामक कलाकार कर रहे हैं । 

अनुपम खेर, फिल्म जगत में स्टार की श्रेणी में तो नहीं आते हैं किन्तु , अच्छे कलाकारों में उनकी गिनती अवश्य होती है । अनुपम खेर की एक विशेषता और भी है की, वह हमेशा फिल्म जगत में एक प्रतिद्वंदी के रूप में अपने आप को चर्चित रखने का प्रयास अक्सर किया करते हैं , यह शायद इस कलाकार का स्वाभाव है । फिल्मों में, उनकी प्रतिद्वंदिता ओम पूरी , नसीरुद्दीन शाह , पंकज कपूर जैसे , मंजे हुए कलाकारों से करते रहते थे अपनी सफलता के दौर में - जिन लोगों ने कला को प्राथमिकता दी है , प्रसिद्धि एवं धन को बाद में रखा है । लेकिन, अनुपम खेर जी , अपनी कला से ज़्यादा धन - दौलत , प्रसिद्धि एवं विवादों में अपना विशेष ध्यान देते रहे हैं । या फिर ,इन माध्यमों से जब कभी भी उनकी चमक कुछ कमज़ोर पड़ने लगती है तो, इस सब का सहारा लेने लगते हैं । मैं इसके कुछ और उदाहरण भी दे सकता हूँ, यह अति उत्साही कलाकार, फिल्म जगत के महानायक अमिताभ बच्चन का टेलीविज़न का आज तक का सबसे सुपर हिट सीरियल (हिंदी फिल्मो की शोले) कौन बनेगा करोड़पति से टकराने की जुर्रत कर बैठा था । 

जिस समय अमिताभ बच्चन का, शालीनता, सौम्यता एवं भारतीय सहिष्णुता से भरा हुआ - ज्ञान - विज्ञान के द्वारा दर्शकों को उस समय के करोड़ रुपये के प्रलोभन द्वारा "कौन बनेगा करोड़पति" सीरियल चल रहा था , और सफलता की सारी ऊंचाइयां छू रहा था, भारतीय जन मानस में एक विशेष स्थान बना चुका था  - जिस प्रकार की शोले ने फिल्म जगत में सफलता का एक विशेष आयाम छुआ था , ठीक उसी प्रकार , मैं लक्ष्मीकांत मिश्रा यह मानता हूँ की, "कौन बनेगा करोड़पति" , टीवी सीरियल ने भी उसी मुक़ाम को छू लिया था। मेरा यह मानना है की ,जिस प्रकार शोले फिल्म फिर से नहीं बनाई जा सकती, ठीक उसी प्रकार, उसी स्तर पर और कोई सीरियल नहीं बन सकता सिवा एक भोंडी नकल के । लेकिन, स्वाभाविक रूप से प्रतिद्वंदिता को प्रोत्साहित करने वाला यह कलाकार (अनुपम खेर) , यह किस वजह से कर बैठा , यह वही जानता होगा। उससे टकराने के लिए ज़ी टीवी के साथ मिलकर "सवाल दस करोड़ का" के नाम का एक प्रोग्राम शुरू कर दिया था, जिसको भारतीय जन मानस ने पूर्ण रूप से नकार दिया । मैं तो यहाँ तक कहूँगा की , भारतीय टेलीविज़न श्रोताओं के साथ इससे बड़ा मज़ाक अभी तक किसी भी चैनल ने या किसी भी कलाकार ने नहीं किया होगा । 

मैं , लक्ष्मीकांत मिश्रा - यह बात इसलिए कह रहा हूँ की , इस प्रोग्राम ने मुझ जैसे भारतीय की अस्मिता एवं सम्मान को ठेस पहुचाने की कोशिश की थी । यह प्रोग्राम पूर्ण रूप से , लालच, धन लोलुपता एवं एक भौंडी प्रतिद्वंदिता के अलावा और कुछ नहीं था । इसी प्रकार के प्रयोग , अपने फ़िल्मी - व्यावसायिक जीवन में इन्होनें शक्ति कपूर , क़ादर ख़ान , गोविंदा जैसे कलाकारों के साथ मिल कर द्वी अर्थीय, भौंडे dailoge से करके , कला एवं अपने व्यवसाय को बहुत बढ़ाया एवं चमकाया है । राष्ट्र हित के लिए इन्होने क्या योगदान दिया है , मुझे  - लक्ष्मीकांत मिश्रा, को अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर देने के बाद भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा है , या इन्होने कुछ किया है , ऐसा ज्ञात नहीं हो रहा । 

अनुपम खेर नाम के इस कलाकार ने , अपने इस स्वाभाविक गुण (प्रतिद्वंदिता) , के चलते आज कल के फिल्म जगत के सुपर स्टार - शाहरुख़ खान से टकराने की ज़ुर्रत कर बैठा ,बिना पूर्व के परिणामों को सोचे विचारे। इस सुपर स्टार शाहरुख़ खान एवं अनुपम खेर की टकराहट ने या अनुपम खेर की स्वाभाविक मानसिकता ने, अति संवेदनशील आंदोलन को दिग भ्रमित करने का प्रयास किया । ऐसा इस कलाकार ने , अपने सम्पूर्ण सुख - साधनों के बावजूद पुरूस्कार में पाये हुए , नारियल - शॉल एवं कुछ पदकों को, धन , सुख साधनो के लालच से परे साहित्यकारों के दर्द को समझे बिना , राजपथ जैसे प्रतिष्ठित मार्ग से होकर , देश के सर्वोच्च पद -महामहीम राष्ट्रपति तक  इन साहित्यकारों के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति लेकर क्यों गया , मैं समझ नहीं पा रहा । मैं, अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर देने के बावजूद भी समझ नहीं पाया ।   

एक कलाकार, चाहे वह फ़िल्मी हो , नाटक मंच का हो , संगीत का हो , नृत्य का हो या फिर किसी भी क्षेत्र का कलाकार हो, इस स्तर तक संवेदनहीन होगा यह मानने को मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , एक साधारण भारतीय नागरिक , बहुत प्रयास करने के बाद भी स्वीकार नहीं कर पा रहा हूँ । सम्पूर्ण सुख - सुविधाओं से भरा हुआ, मर्सिडीज़ कार में बैठा हुआ यह फिल्मी कलाकार किसी भी बस स्टॉप पर खड़े हुए साधारण कुरता - पजामा पहने हुए , कंधे पर झोला लटकाये हुए , पैरों में आड़ी - टेढ़ी चप्पल पहने हुए , उस इंसान को जो साहित्य की सेवा कर रहा है, जो साहित्यकार कहलाता है, जो अपनी पत्नी के लिए राजनेताओं से लोक सभा की टिकट नहीं माँग रहा है, नौकरी नहीं मांग रहा है, व्यवसाय में विशेष मदद नहीं मांग रहा है , बल्कि - देश वासियो के लिए असहिष्णुता का मुद्दा उठा रहा है, भारतीय संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रहा है, सत्ता में बैठे हुए सत्ता शील मंत्रियों एवं पार्टी से असहिष्णुता जैसे मुद्दे पर टकराने का प्रयास कर रहा है, अपने जीवन भर की कमाई ,नारियल शॉल एवं सम्मान के रूप में मिले हुए कुछ पारितोषक, देश की मूल धरोहर, सहिष्णुता को बचने के प्रयास में , सरकार में बैठे हुए मंत्रियों एवं सांसदों की धमकीयों से टकरा रहा है । 

आज की तारीक़ में भारत सरकार में नंबर दो की स्थिति पा चुके वित्त मंत्री - अरुण जेटली जैसे अति शक्ति शाली कैबिनेट मंत्री की धमकी  - "अगर पुरूस्कार लौटाना है तो लिखना छोड़ दो" - से बिना डरे हुए अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहें हैं ।  हाथ में पत्थर ले कर किसी राजनितिक आंदोलन की तरह सरकार एवं देश की संपत्ति को नुक्सान नहीं पंहुचा रहा ,अग्नि काण्ड नहीं कर रहा, जाती एवं धर्म के द्वारा भारतीय जन मानस को लड़ाने का प्रयास नहीं कर रहा , बल्कि इस सब के विपरीत - देश के सबसे अनमोल गुण (स्वभाव) - सहिष्णुता (Tolerance) को बचाने के लिए , उसके पास जो सबसे बहुमूल्य चीज़ है - राष्ट्रीय पुरूस्कार एवं सामान्य पुरूस्कार निछावर करने को तैयार है , जिसे सत्ता रुपी भस्मासुर एवं सत्ता के मद में डूबे हुए सांसद एवं मंत्री, यह कह कर तिरस्कृत कर रहे हैं की अगर साहित्यकारों को अपना आंदोलन चलाना है तो वह पाकिस्तान चले जाए , बांग्लादेश चले जाए, कह कर , अपना राष्ट्र प्रेम या फिर सत्ता सुख ज़ाहिर कर रहे हैं और इन साहित्यकारों को जन मानस में , राष्ट्र द्रोही साबित करने का प्रयास कर रहे हैं , बिना यह सोचे समझे की साहित्यकार राष्ट्र का दर्पण होता है, किसी सत्ता का भांड या चाटुकार नहीं । अनुपम खेर जैसे संवेदनहीन कलाकार , महामहीम जैसे गरिमा मई एवं सर्वोच्च पद को ठेस पहुचाने का यह कुकृत्य क्यों कर रहे है - समझ में नहीं आ रहा है - या वह समझ रहे हैं तो हमें समझाने का प्रयास करें। 

मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , अपने ज्ञान अज्ञान की इस लेखनी से अगर किसी को दुःख दे रहा हूँ या दुखी कर रहा हूँ , तो इस लेख के साथ ही उन ज्ञान के देवताओ से माफ़ी भी मांग रहा हूँ। यह लाइन मैं इसलिए लिख रहा हूँ - अभी दूरदर्शन में लोकतंत्र के महापर्व - बिहार के विधान सभा चुनाव के परिणाम के बाद , सहिष्णुता (Tolerance) के इस मुद्दे को जीवन्त रूप में, राजनेताओं की भाषाओं को सुनने के पश्चात और ख़ास कर तब , जब एक ही दल के नेता अपने ही दल के नेताओं के प्रति जिन घटिया शब्दों एवं मुहावरों का इस्तेमाल कर रहें है , या फिर अनुपम खेर की राष्ट्रपति भवन तक की पद यात्रा में , पत्रकारों से हुए दुर्र्व्यवहार का मुद्दा ही क्यों ना, मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , अंतर मन से दुखी होकर यह चंद लाइन, देश के साहित्यकारों के चरणों में अपने समर्थन का इज़हार करते हुए रख रहा हूँ ।                   


Lucky Baba
Om Sai....




 

Saturday, November 7, 2015

दर्द के अहसास के साथ न जाने क्यों में जिन्दा हूँ
बड़ा दर्द है दिल में मेरेमगर फिर भी में जिन्दा हूँ 
उनका मुझे पता नही लेकिन वो बहुत खामोश हैं
दर्द के अहसास के साथ नजाने क्यों में जिन्दा हूँ
एक एक पल में केसे उसकी यादो में  जी रहा हु
जीना है अभी मुझे इस दर्द के साथ और कितना
और उनकी याद आती है  दर्द  सहना है कितना



Tuesday, October 27, 2015

दाल तुम क्यों महंगी हो गईं ? 

भाजपा एवं बिना फीस के वैद्य नाराज़ हो गए 


अब मेरे खाने की थाली , में राजमा होगा , छोले होंगे , बैंगन का भरता होगा , किसी प्रकार की चटनी होगी , या सबसे अहम सवाल है की दाल होगी । मेरे भारतीय जनता पार्टी के मित्र : मुझे और मेरे परिवार को क्या खाना है इसका निर्णय मेरे यह भाजपाई नेता करेंगे । मुझे सलाह देते है बाबा रामदेव , की इनकी पतंजलि का शुद्ध देसी घी ऊँगली से चाट - चाट के खाऊ  मगर दाल में ना खाउ क्यूंकि मेरे घुटने कमज़ोर हो जायेंगे । 


और भाजपाई मित्र बताते है की भारतीय थाली का मूल तत्व : दाल और प्याज खाना बंद कर दो । अंडा खाओ मांस खाओ , राजमा खाओ , छोले खाओ लेकिन दाल मत खाओ । पांच साल में , अभी तो सिर्फ डेढ़ साल बीता है, मेरी अपनी मेहनत की कमाई से जो मैं अपने परिवार का लालन - पालन , भरण - पोषण करता था , उसमे बिना फीस का वैद्य (बाबा रामदेव) और बिन मांगी सलह (भाजपाई मित्र )…… 


Lucky Baba
Om Sai....


Friday, October 23, 2015

सरकार और साहित्यकार 




किसी भी समाज का आईना होता है - साहित्य । किसी भी देश का इतिहास हो , वर्तमान हो , भविष्य हो - समाज की कल्पना साहित्य की कलम ही उकेरा करती है । किसी भी देश का साहित्य , या किसी भी देश के साहित्यकारों द्वारा या उनकी सफ़ेद पन्नों पर चली हुई कलम से ही उस देश का मानस , जन - मानस , देश की नीतियाँ , न्याय - प्रणाली , कार्य करने का तरीका , इन साहित्यकारो की ही कलम से निकल कर जन - मानस तक पहुँचता है । यहीं पर साहित्यकार , जनता में हुए परिवर्तन को भी स्वीकारता है । पुरानी कुरितियों और आती हुई संभावनाओं का सामंजस्य बनाता है । शासक को दिशा देता है। प्रजा , या आम जनता को शासक से बहुत सारी संभावनाएं देता है , उनसे सामंजस्य बिठाने की मानसिकता को समझदारी देता है । विचारकों के, वैज्ञानिकों के , भविष्य के प्रति होने वाले मनुष्य द्वारा गतिविधियों को यह साहित्यकार , अपनी विशेष भाव - भंगिमा से, वेश - भूषा धारण कर , अपने कलम द्वारा समाज को सूचित करता है । यह तो मैं , वर्तमान , और भविष्य को मिला कर , वह क्या कर रहे है लिख रहा हूँ - भूतकाल के बारे में , मैं क्या बोलूँ ? 

साहित्य की कलम से ही वर्तमान की नीव रखी है और भविष्य की कल्पना रखी है - यह कर्म चलता था और चलता रहेगा । साधारणतः यह लोग हसमुख और खुशमिजाज़ होते है , गंभीरता के आवरण में इनके रंगों का क्या कहना!!कभी - कभी क्रोध में भी आ जाता हैं । हाँ , एक बात मैं कहना भूल रहा हु की - इनमें एक छोटी - मोटी आदत होती है जिनको लोग व्यसन कहते हैं , यह लोग उस आदत से जुदा नहीं होना चाहते । अपने व्यसन  को सहजना इनकी मनोवृत्ति होती है।               

यह लोग कभी - कभी क्रोधित भी  हो जाते  हैं , और इनका साधारणतः क्रोध जन मानस पर होते हुए अत्याचार या समाज में बढ़ती हुई किसी कुरीति के खिलाफ होता है । यह बहुत कम उत्तेजित होते है , और खासकर समूह में , लेकिन इनके उत्तेजित होने के परिणाम दूरगामी होते हैं । शासक और प्रशासन साधारणतः इनके इस क्रोध को अपनी नीतियों से जोड़ लेते हैं , जिससे टकराव की स्तिथि उभर आती है , कमोबेश यही स्तिथि इस समय मेरे राष्ट्र (प्रजातान्त्रिक हिंदुस्तान) में उभर आई है, जो की दूर गामी परिणामों के बारे में संकेत दे रही है । मुह में काली पट्टी बांधना , ख़ामोशी से अपने विरोध को जाहिर करना , या फिर अपने शासन द्वारा उत्कृष्ट कार्यो के किये हुए पारितोषक को वापस कर देना है । मुझे जितना समझ में आ रहा है - शासन को इनके क्रोध के द्वारा दिया हुआ संकेत समझ लेना चाहिए । मैं तो यहाँ तक कहूँगा की, शासक के मुखिया को (प्रधान मंत्री) इन् निहत्ते शूरवीरो से दो - दो हाथ करने की जगह , पूर्ण सम्मान के साथ इनसे विचार विमर्श करना चाहिए एवं , इनके सम्मान तथा प्रतिष्ठा को ध्यान में रख कर , इनके द्वारा दिए हुए सुझाव पर , तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए । अगर ऐसा नहीं होता है , तो मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , दावे से कहता हूँ की आने वाले दिनों में देश किसी भयानक संघर्ष की तरफ बढ़ रहा है । शायद, लक्ष्मीकांत मिश्रा ने , अपने 50 साल की उम्र में , साहित्यकारों को समूह में  इकठ्ठा हो कर , इस तरीके से सरकार को सचेत करने का , साहित्यकारों को पहली बार देखा है । 

इसके छोटे - मोटे अंश , मैंने भारतीय प्रधान मंत्री - इंदिरा गांधी के इमरजेंसी काल के दौरान देखे । उस समय भी साहित्यकारों ने , अपने - अपने तरीकों से इंदिरा गांधी एवं उनके प्रशासन का विरोध किया था । उस समय की प्रधान मंत्री - इंदिरा गांधी एवं उनके प्रशासन ने इनसे सुलह और समझने की जगह , इनका विरोध किया था , एवं इनकी आवाज़ को दबाने के लिए नीतियों का सहारा लेकर , प्रशासन के द्वारा इनके मार्गदर्शन को ठुकरा कर , इन पर तरह - तरह के दबाव डालने का या फिर इन्हे दण्डित करने का प्रयास किया गया था, जिसका परिणाम यह हुआ की इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता खोनी पड़ी थी एवं , सफलतम प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के उस काल को इस प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में (हिन्दुस्तान में) एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है । मैं(लक्ष्मीकांत मिश्रा ) वर्तमान में , भारत के लोकप्रिय जन नेता एवं प्रधान मंत्री से निवेदन करूँगा - इस विरोध स्वरूपी आहट को पहचाने , अपने स्वर्णिम काल को बचाएँ एवं इतिहास के पन्नों तक अपने इस स्वर्णिम काल जाने दें ।   

कई - कई सालों के पश्चात इस राष्ट्र को इतना लोकप्रिय नेता , प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में मिला है , जो की पार्टी , नीतियों , विचारधाराओं से ऊपर उठ कर , अपने व्यक्तित्व से, जिसने भारतीय जन मानस में अपना स्थान बनाया है । इन सत्ता के चाटुकारों , दलालो , एवं सत्ता से चिपके रहने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को कड़ी फटकार लगा कर , एक शाम के कुछ घंटे , इनके साथ व्यतीत करें । इनके द्वारा दिए हुए इशारों से देश की नीतियों में जो भी परिवर्तन हो सकता है उसको करें । मैं , लक्ष्मीकांत मिश्रा -  निवेदन करूँगा इस देश के लोकप्रिय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से की, यह लोग (साहित्यकार) किसी भी सत्ता या प्रशासक के प्रतिद्वंदी नहीं - यह समाज के दर्पण हैं, इन्हें समझ कर अपनी नीतियों में परिवर्तन कर , प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के इस काल को स्वर्णिम काल में बदलने का प्रयास करें । 

मैं , प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के राजनितिक प्रतिद्वंदी - राहुल गांधी से यह निवेदन करूँगा - एक शाम के कुछ घंटे इन साहित्यकारों के साथ जरूर से गुज़ारे ।  बात मैं इसलिए कह रहा हूँ - प्रजातंत्र में विपक्ष एक प्रमुख स्तम्भ है । मैं किसी व्यक्ति विशेष , किसी भी विशेष पार्टी को , किसी विशेष समुदाय या दल को मानसिक रूप से व्यथित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ । अगर किसी को कुछ आघात लगा हो तो अपने इस लेखन के साथ ही माफ़ी भी मांग रहा हूँ । यह मेरे - लक्ष्मीकांत मिश्रा के व्यक्तिगत विचार है ।

Note : मैं (लक्ष्मीकांत मिश्रा) , अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट कर रहा हूँ । देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से की यह देश का वह मुद्दा है , जिसमे शाम के कुछ घंटे आप (नरेंद्र मोदी ) एवं आपके प्रतिद्वंदी विपक्ष के नेता राहुल गांधी , समाज के इस दर्पण के साथ एक साथ गुज़ारें । देश को एक सफल दिशा देकर नई परिपाटी की शुरुआत करे । 



Lucky Baba 
Om Sai.... 

Tuesday, October 20, 2015

दाल की बढ़ती क़ीमतें और भारतीय जान मानस 



भारतीय भोजन में या यूँ कहें की भोजन की थाली, बिना दाल की अधूरी होती है । दाल और प्याज़ - अमीर - ग़रीब , धर्म , जातिवाद , उम्र , इन सभी बंधनों को तोड़ देती है । दाल का भारतीय भोजन की थाली में होना उतना ही ज़रूरी है जितना पाँच साल से छोटे बच्चे को दिन में कम से कम एक गिलास दूध । राजनीति करने वाले नेता को भीड़ , किसी वाहन चलाने वाले driver को किसी भी गाडी का steering , पति - पत्नी के नोक - झोंक , दोस्तों के समूह में अपने - अपने ग्रुप - ठीक उसी प्रकार, भारतीय भोजन की थाली में दाल ।      

दाले भी कई प्रकार की होती हैं और दाल का order करने का अंदाज़ भी सबका अलग अलग होता है । दाल का आर्डर करते वक़्त एक विशेष अंदाज़ आ जाता है । माँ से दाल मांगते वक़्त , घर में बच्चा बड़ी नज़ाकत से कहता है - "मम्मा दाल और देना " , और जब माँ जब दाल परोस रही होती है तो , अपनी चमचमाती आँखों से कहता है - "क्या दाल बनी है माँ " , hotel में दाल के बारे में बताते वक़्त ,waiter एक विशेष अंदाज़ में आ जाता है और ग्राहक भी किसी विशेष प्रकार की दाल का order ही करता है । ढाबे में दाल के अंदाज़ का क्या कहना , ग्राहक बड़ी अदा से waiter से कहता है "ज़रा जोर का तड़का मार के ला यार" । दाल की यही स्थिति , कमोबेश हर शुभ और अशुभ कार्य के भोज में रहती है । नौ दुर्गों का कन्या भोजन हो , भंडारा हो , ईद की दावत हो , दाल की जगह भारतीय थाली में निश्चित रहती है ।   

आज कल यह दाल अपने मूल्य से , अपनी लोकप्रियता का एहसास करा रही है । विशेष बात तो यह है , और किसी देश के बारे में, मैं बोल पाऊ या न बोल पाऊ , लेकिन भारत जैसे देश में दालों का राजा तुअर दाल (Yellow दाल) है । और इसी ने (Yellow दाल) , मूल्य वृद्धि में बेलगाम दाल के मुखिया का रूप धारण कर लिया। माँ का दाल परोसते वक़्त , इस बेलगाम मूल्य वृद्धि ने , माँ को, पत्नी को , waiter को, विभिन्न प्रकार के भोजन आयोजनों को बड़ी असमंजस की स्थिति में डाल दिया है । और सबसे ज़्यादा , इस सबके ऊपर, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय सरकार एवं प्रादेशिक सरकार के मुखिया कटघरे में आ गए हैं । और ऊपर से बिहार में लोकतंत्र का महा पर्व "चुनाव" शुरू हो गया है। विकास का मुद्दा, गौ माँस का मुद्दा, जातिवाद और धर्म का मुद्दा , इस दाल के मुद्दे के सामने बौने और छोटे पड़ गए । दाल के सबसे प्रीय मित्र - प्याज़ ने भी मूल्य वृद्धि में , दाल से कंधे से कन्धा मिला लिया । दोनों ही भारतीय थाली के प्रमुख व्यंजन , सरकार की सफलताओ और असफलताओ का मापदंड हो गया । चूँकि भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार चला रही है , इस वजह से , बिहार में भी वह अपने नेतृत्व में सरकार बनने का सपना देख रही थी । लेकिन इस दाल ने , उनके मुख्य मुद्दा -  विकास के मुद्दे को , काफी  पीछे छोड़ दिया। इन पंक्तियों को लिखने की इच्छा तब जाग्रत हुई जब समाचार माध्यमों से यह पता चला की बिहार के चुनाव में , भारतीय प्रधान मंत्री,  श्री नरेंद्र मोदी जी , जो की भारतीय जनता पार्टी के सबसे प्रमुख star प्रचारक भी है , की जन सभाएँ भी cancel होने लगीं ।

भाजपा के दिग्गज नेता, twitter के द्वारा या फिर सभाओं में , दाल के मूल्यों पर बहस (लड़ाई) करते हुए देखे जाने लगे । हद तब हुई जब , इन्ही समाचार माध्यमों से यह ज्ञात हुआ की भारतीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी एवं अन्य राष्ट्रीय नेताओं के पोस्टर से फोटो गायब होने लगे ।

वाह दाल.…वाह री दाल.…… जो भारतीय राजनीति में विगत वर्षों में कोई नहीं कर सका , वह कारनामा तूने कर दिखाया । सरकार लज्जित , जन मानस अचंभित ,माँ लज्जित , पुत्र परेशान,  waiter लज्जित , ग्राहक संकोच में, शादी ब्याहों के पंडाल लज्जित, बाराती अचंभित , नौ दुर्गो में कन्या भोज में उपासक लज्जित, कन्याओ  की कौतुहल भरी दृष्टी , दुकानदार लज्जित , खरीदार अचंभित ।

वाह री दाल. . . . .वाह.. . तूने वह कर दिखाया जो राजीनीति के बड़े - बड़े सूरमा नहीं कर सके      

पिछले दो साल से , भारतीय नेता जन मानस के बीच या फिर जन सभाओं में सम्बोधन करना भूल कर , गरजा या दहाड़ा करते थे , इन  सबको मिमयाने पर विवश कर दिया। हे दाल - तेरी महिमा अपरम्पार है , मैंने अभी तक तो बड़े बुज़ुर्गों की बात नहीं मानी की , भोजन शुरू करने या समाप्त करने के पश्चात थाली को थाली को हाथ से छू कर माथे पे लगाना चाहिए (थाली के पैर छूना चाहिए ) । लेकिन हे दाल - तेरी मूल्य वृद्धि ने मुझे पचास साल की आयु में यह कार्य करने के लिए  (थाली के पैर छूकर माथे से लगाने के लिए ) विवश कर दिया । आखिर यह कहावत सिद्ध हो गई - की शेर  को सवा शेर मिल ही गया । मैं लक्ष्मीकांत मिश्रा , तुझे शत - शत प्रणाम करता हूँ।


Lucky Baba
Om Sai...



  

Thursday, October 15, 2015

चक्षु निर्बलता योग (दॄष्टि के कमज़ोर होने का योग)

यदि सूर्य, द्वितीय स्थान या फिर द्वादश स्थान में स्थित हो और उस पर किसी पापी ग्रह की दॄष्टि हो तो , दॄष्टि शक्ति में बहुत निर्बलता आ जाती है , और कई बार यह अंधत्व की स्तिथि देता है । सूर्य प्रकाश है, और मेरे विचार से आँखों का कारक भी सूर्य ही होगा । द्वितीय (दूसरा) तथा द्वादश स्थान (१२ वां भाव) - दोनों स्थानों को ज्योतिष शास्त्र में आँखों का स्थान माना जाता है । सूर्य का इनमे से किसी भी स्थान में स्थित होने से अर्थ यह निकलेगा - जहा सूर्य प्रकाश या आँख के रूप में स्वयं स्थित हों और ऊपर से पापी ग्रहों की दॄष्टि से पीड़ित हो या ग्रह से पीड़ित हों ,तब दृष्टी के दोनों ही कारक को निर्बलता प्राप्त होगी एवं दृष्टी कमज़ोर होने का वजह निर्मित हो जाएगी । मैं साथ में दिए चार्ट से इसे समझाने का प्रयास करता हूँ -


यह जिस व्यक्ति की कुंडली है , उस व्यक्ति की दाई आँख की ज्योति बहुत छोटी आयु में ही चली गई । यहाँ सूर्या १२ वें भाव (द्वादश भाव )में स्थित है, जिसके ऊपर तुला राशि के प्रबल शनि की तीसरी सीधी दृष्टी पड़ रही है , और यह केतु के प्रभाव में भी है । द्वादश भाव (१२ वें भाव) के स्वामी , गुरु पर दो पापी ग्रह - शनि तथा मंगल की सीधी 7 वीं दृष्टी पड रही है, जिसकी वजह से इस मनुष्य की दाई आँख की रौशनी बचपन से ही चली गई थी ।

-- सम्पूर्ण अंधत्व , दिए हुए चार्ट में --


यह जिस व्यक्ति की कुंडली है , उसकी दोनों आँखों की दृष्टी बचपन में ही चली गई थी । यह बाल अवस्था से ही अंधे हैं । इसकी वजह - द्वितीय स्थान में सूर्य का शनि की नीच राशि में  होना , सूर्य और केतु का शत्रु युक्त हो जाना है , और उस पर परम क्रूर, महाबली मंगल की चौथी दृष्टी का पड़ना है । इस दृष्टी के कारण , सूर्य तथा द्वितीय भाव , जो की दृष्टी के कारक हैं , जिसकी वजह से यह इंसान अँधा है ।   

Lucky Baba

Om Sai... 


Wednesday, October 14, 2015

 International Court of Justice में भारतीय प्रधान मंत्री पर मानहानि का मुकदमा 




आज शहर में कई जगह बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा का एक आम विषय - भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर South Africa की सरकार के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर करने की चर्चा बहुत ज़ोरो से थी । कही यह बहस गरम - गरम चाय या कॉफ़ी के साथ थी या फिर ,आज से नौ दुर्गा महोत्सव शुरू होने से पंडालों के आस - पास चर्चा आम थी । मुझे किसी भी समाचार माध्यम से इस समाचार की जानकारी नहीं मिली , खासकर news channel एवं newspaper में यह खबर कही नहीं मिली । मैं इन चर्चाओ को सुन रहा था और आजु - बाजू के अपने साथियो से बार - बार पूछ रहा था की यह समाचार कहा से प्राप्त हुआ ? क्यूंकि मुझे (लक्ष्मीकांत मिश्रा को) अपने ज्ञान के अनुसार किसी भी प्रधान मंत्री पर साधारणतः अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने के पहले एक सरकार का दूसरी सरकार से सफाई या फिर उसपे लिखित वजह जाने बिना अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में सरकारें  जाना पसंद नहीं करतीं । अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाना, दो देशों की सरकारों के बीच का सम्बन्ध ही नहीं होता बल्कि, दो देशो के आम नागरिकों की जन - भावनाए, सांस्कृतिक सम्बन्ध , व्यापारिक सम्बन्ध , आपस में भाई - चारा आदि, बहुत सारी  चीज़े , सम्मिलित होती हैं । 

ऐसे विवादों पर अभी तक यह परिपाटी रही है की ,अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने की जगह, आपस में चर्चा करके एक दूसरे को विश्वास में लेकर विषय को समाप्त कर दिया जाता है । यह मेरा (लक्ष्मीकांत मिश्रा) का सिर्फ ज्ञान मात्र है । ऐसी ही परिपाटियों को मैंने आज तक देखा एवं सुना है । ख़ैर , वजह कोई भी हो , मैं उस माध्यम को जानना चाहता था या फिर अपनी आदत के अनुसार , सत्यता बिना जाने, मैं कोई चर्चा नहीं कर पाता । आदरणीय राजेन्द्र कोठारी जी एवं अपने मित्र - मनोज गौतम से इस समाचार का स्त्रोत पूछा। ज्ञात हुआ , की इंटरनेट पर यह समाचार आ रहा है। कौतुहल वश , मैंने internet खोला जिसमे www. worldnewsexpress.com में इन् lines को पढ़ा - 

"Cape Town: After Indian Prime Minister Modi’s tweet comparing Parkash Singh Badal, an Indian politician with South Africa’s father of nation, Nelson Mandela, the Government of South Africa filed defamation case against the leader of India in the International Court of Justice, Hague.
PM Modi said: “There is a special family about whom pages are  written in history even if their fingernails break. Very few people know that Badal Saheb is Nelson Mandela of India, who has spent nearly two decades in jail only because of political differences.”

After tweet, Twitterati started trending ##YoBadalSoMandela to protest against the Prime Minister of India’s statement.
“It’s an insult to our Father of Nation by comparing India’s ordinary politician”, a netizen from South Africa tweeted.
To calm down the protest situation in South Africa, the Government of South Africa filed a defamation case against the Indian Prime Minister Modi in the International Court of Justice, Hague for the insulting father of the nation of our country." 

जिसका तात्पर्य , मैंने अपने ज्ञान से यह निकाला - की , भारतीय प्रधान मंत्री , नरेंद्र मोदी के दिए उपरोक्त tweet से आहत होकर South Africa की सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में , भारत देश के सबसे लोकप्रिय नेता ही नहीं बल्कि , देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी पर अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मुकदमा लगा दिया । मरे दिमाग में यह सवाल बार - बार आ रहा है की साउथ अफ्रीका की सरकार को आखिर किस बात की इतनी हड़बड़ी थी या जल्दबाज़ी थी जिससे वह सीधे भारतीय प्रधान मंत्री के खिलाफ मुकदमा दायर करने पर उतर आई, या फिर , हमारा विदेश मंत्रालय इस पूरे घटना क्रम पे कोई संज्ञान नहीं ले सका, और हालात की गंभीरता को क्यों नहीं समझ पाया? एक आम भारतीय होने के नाते , देश के प्रधान मंत्री पर इस तरह अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मुकदमा लगाने से मन व्यथित हो गया । यह, भारत की मान - मर्यादा का विषय है , और मैं, लक्ष्मीकांत मिश्रा, इस खबर से मानसिक रूप से आहत भी हुआ और परेशान भी । आखिर , भारत का  विदेश मंत्रालय इस प्रकार की चूक (गलतियाँ) से हम जैसे साधारण नागरिको को कैसे संतुष्ट करेगा ? इस देश की स्मिता को कैसे बचाएगा ?   

यह सवाल शायद , जाती , धर्म , राजनितिक प्रतिद्वंदिता - इन सब से उठ कर है । यह पूरे राष्ट्र का विषय है । यह किसी पर व्यक्तिगत आरोप - प्रत्यारोप का समय नहीं है । भारतीय विदेश मंत्रालय को एवं भारतीय सरकार को अब अपना कड़ा रुख़ एवं विरोध साउथ अफ्रीकन सरकार के ख़िलाफ़ तुरंत दर्ज करना चाहिए, जिससे किसी भी राष्ट्र को इस तरीके से भारतीय प्रधान मंत्री को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में खीचने की परिपाटी की शुरुआत ना हो सके , एवं , मुझ जैसे हर एक आम भारतीय नागरिक को इस बात की जानकारी से अवगत भी करना चाहिए । इस समाचार को दबाने की जगह , इससे हमारे देश की प्रतिष्ठा पर जो आंच आई है , उसकी हर नागरिक को जानकारी होनी चाहिए । ऐसे समय में , देश का हर नागरिक भारत के प्रधान मंत्री से कंधे से कन्धा लगा कर लड़ने को तैयार है । 


Lucky Baba 
Om Sai 

Tuesday, October 13, 2015

नवदुर्गा की शुभकामनाएँ 










शक्ति का प्रतीक - माँ दुर्गा आप सब की शुभ मनोकामनाएँ पूर्ण करें एवं आपके जीवन में उल्लास , वैभव एवं सकारात्मक ऊर्जा का आशीर्वाद की कृपा करें - जय शेरा वाली माँ....…   


 ॥ नव - दुर्गा स्तोत्र ॥ 


ब्रह्मोवाच 

प्रथमं शैल्पुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । 
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम ॥ ३ ॥ 

 पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनी तथा । 
     सप्तमं कालरात्रिञ्च महागौरीति चाष्टमं ॥ ४ ॥ 

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । 
उक्तान्येतानि नामामि ब्राह्मणैव महात्मना ॥ ५ ॥ 

































Saturday, October 10, 2015

Lucky Baba 









भारतीय राजनीति: 

 राम मंदिर से लेकर गौ मांस तक


भारतीय राजनीति में भाजपा, मुख्य रूप से अयोध्या में राम मंदिर , बाबरी मस्जिद को हटा कर , उसी स्थान पर राम मंदिर बनाने के मुद्दे से आगे बढ़ी । भारत देश के नागरिकों ने भारतीय राजनीति का यह दौर भी बड़े हतप्रभ होकर देखा । V.P Singh देश के प्रधान मंत्री थे , और सत्ता से चिपके रहने के लिए उन्होंने देश को मंडल आरक्षण की आग में झोंक दिया । V.P Singh का समर्थन कर रही भाजपा ने अपने आप को सत्ता से अलग करते हुए , राम मंदिर का राग छेड़ दिया । इसी वजह से , देश में मध्यावती चुनाव लग गया जिसमे पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी की हत्या हो गई । देश में Congress के नेतृत्व की संयुक्त सरकार बनी , जिसका नेतृत्व प्रधान मंत्री के रूप में P.V Narsimha Rao ने किया , यह बड़ा अजीब और विशेष प्रकार का दौर था भारतीय राजनीति में । इस समय देश, राष्ट्रीय स्तर से ले कर राज्य स्तर तक बड़े अजीब - अजीब आंदोलन एवं राजनितिक प्रयोग के दौर से गुज़र रहा था  जिसे भारतीय जनमानस ने देखा ।  उन्ही में से एक प्रयोग देश के प्रधान मंत्री पद पर 1965 - 66  में लाल बहादुर शास्त्री जी के बाद दूसरी बार  Congress के नेतृत्व में देश की सत्ता कांग्रेस के हाथ में तो थी लेकिन , प्रधान मंत्री - P.V Narsimha Rao जी , गांधी - नेहरू परिवार के सदस्य नहीं थे। 

P.V. Narsimha Rao, दक्षिण भारत से थे एवं गठबंधन की सरकार चला रहे थे । P.V. Narsimha Rao जी अपनी ही पार्टी की अंतर कलह को भी झेल रहे थे , तभी भारतीय जनता पार्टी ने राम नादिर मुद्दे को उठा कर देश में एक नया जन आंदोलन छेड़ दिया । राष्ट्र ने पहली बार अपनी प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में बहुसंख्यक वर्ग - विशेष के आंदोलन को देखा । बहुसंख्यक समुदाय ने इसमें विशेष रूचि दिखाई , प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का यह आंदोलन विश्व में अनोखे आंदोलन  के रूप में जाना जायेगा । इस आंदोलन का नेतृत्व भाजपा के शीर्ष नेता कर रहे थे , जिसमे मुखिया के रूप में उस समय के भारतीय जनता पार्टी के धाकड़ नेता - लाल कृष्ण अडवाणी उभर कर सामने आये । यह एक तरीके से मंडल के ऊपर कमंडल की राजनीति का परिणाम था । प्रजातंत्र में सार्वजनिक रूप से बहुसंख्यक समुदाय द्वारा चलाया हुआ यह आंदोलन विशेष रहा जिसकी परिणीति आखिर में यह हुई कि , अयोध्या की बाबरी मस्जिद को कार सेवको ने ढहा दिया । राष्ट्र की राजनीति , दो समुदायों की लड़ाई के बीच सिमटने लगी । मंडल और कमंडल की लड़ाई , धर्मनिरपेक्ष (secular) और बहुसंख्यक समुदायों के बीच आ कर खड़ी हो गई । भाजपा ने राम मंदिर को मुद्दा बनाया एवं अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश को पहला भाजपाई प्रधान मंत्री दिया । 

धर्मनिरपेक्ष - प्रजातान्त्रिक  व्यवस्था में यह भाजपा का अनूठा प्रयोग सफल हुआ । इस प्रयोग को भाजपा ने जड़ी - बूटी के रूप में लिया, जिससे निकला हुआ परिणाम - अटल बिहारी वाजपई जी को अपने कार्य काल को लगभग पूर्ण करने  का अवसर दिया । राष्ट्र ने , गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई को करीब - करीब पूर्ण कालीन  (5 साल ) प्रधान मंत्री के रूप में देखा । भाजपा को हिंदूत्व की अलख लगाने का सम्पूर्ण श्रेय गया । सत्ता शील होने के पश्चात बाजपई सरकार ने राममंदिर मुद्दे को करीब - करीब नकार सा दिया , जिसका विरोध भी उन्होंने कई बार अपने सत्ता में रहते हुए झेला । परिणाम स्वरुप , बाजपई सरकार जो की एक संयुक्त सरकार (NDA )थी सत्ता से बाहर हो गई लेकिन, भाजपा को भारतीय राजनीति में राममंदिर मुद्दे ने या यूँ कहे की हिंदूत्व के मुद्दे ने स्थापित कर दिया । इसके परिणाम स्वरुप,भारतीय जनता पार्टी ने अपने बल बूते पर देश के कई राज्यों में अपनी  सरकारें बनाई। अब भाजपा राममंदिर मुद्दे को भूल कर हिंदूत्व के विभिन्न - विभिन्न मुद्दो को उठा कर , राष्ट्रीय राजनीति एवं प्रादेशिक राजनीति में अपनी पैट ज़माने लगी , जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत के कई राज्यों में भाजपा की  सरकारे स्थापित हुई एवं राष्ट्रीय स्तर पर वह Congress के बाद दूसरा सबसे प्रमुख राजनितिक दल बना । 

भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे पे, राममंदिर के बाद गंगा की सफाई , जम्मू - कश्मीर में धारा 370 , पाकिस्तान का विरोध और गौ मांस जैसे प्रमुख मुद्दे रहे। इनका सम्मिश्रण इन्होने विकास की प्रयोग शाला के साथ, 2014 के चुनाव में , भ्रष्टाचार की चाशनी के साथ मिला कर पूर्ण बहुमत की सरकार बना कर , प्रधान मंत्री पद पर श्री नरेंद्र मोदी स्थापित किया । विकास एवं भ्रष्टाचार की चाशनी में गौ मांस का मुद्दा आजकल भारतीय जनता पार्टी का सर्व प्रमुख मुद्दा है । राष्ट्र , विशेष कर अल्प संख्यक समुदाय , अपने को असुरक्षित सा महसूस करने लगा है । पूरा राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष एवं बहुसंख्यक - हिंदुत्व के मुद्दे पर बंट गया है। अब साधारणतः , राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक राजनीति इन्ही मुद्दो पर आगे बढ़ रही है , अगला चुनाव बिहार राज्य में है , जिसके परिणाम 8 नवंबर तक आ जायेंगे । यह चुनाव भी , बहुसंख्यक हिंदुत्व के मुद्दे - गौ मांस एवं धर्मनिरपेक्ष के बीच बटा हुआ है , जिसके परिणाम 8 नवंबर को सारा राष्ट्र देखेगा । 


राममंदिर से चला हुआ आंदोलन , गौ मांस के स्टेशन की तरफ जा रहा है । गंगा की सफाई , काशी को जापान के  धार्मिक शहर qwetta बनाने का स्टेशन गुज़र चुका है । विकास के मुद्दे के स्टेशन , जैसे की - बुलेट ट्रैन का चलना , आदर्श शहर, skilled India , जैसे स्टेशन भी गुज़र गए है । अब अगला प्रमुख स्टेशन - गौ मांस की नीव पर , बिहार की सत्ता पर काबिज होना है । फिर कही चुनाव होगा, फिर कोई नया हिंदुत्व का मुद्दा होगा , फिर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में काबिज होगी । देखना है - भारतीय जनमानस इस प्रयोग को कब तक अपने काँधे पर ढोएगी । कब तक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र अपने मूल तत्व धर्मनिरपेक्षता को भूल कर , प्रजातंत्र के मूल तत्व को भूल कर , संविधान की आत्मा को भूल कर , किसी विशेष मुद्दे पर राजनितिक पार्टियों को सत्ता शील करता रहेगा , सत्ता पर बिठाता रहेगा ।                              


Lucky Baba 
Om Sai....  




Friday, October 9, 2015

Lucky Baba 




भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश और बिहार का रुख अगर समझ में आ जाए तो कहते हैं कि , देश की सत्ता पर किस पार्टी का वर्चस्व होगा - कहना बहुत आसान हो जाता है । इसकी मुख्य वजह क्या है, यह एक यक्ष प्रश्न सा है। भारतीय राजनीति के परिदृश्य में यह बात लगातार प्रमाणित हो रही है । देश की प्रमुख पार्टियाँ यह मानती है कि, इन दो राज्यों में वर्चस्व जमा दिया जाए तो भारतीय राजनीति का क़िला वतह करने में बहुत मुश्किल नहीं आती । मेरे (लक्ष्मीकांत मिश्रा) के विचार से इसकी प्रमुख वजह कुछ इस प्रकार हो सकती है: 

१. रोज़ी रोटी की तलाश में इन दोनों राज्यों से देश में ही नहीं, विदेश में भी सबसे ज़्यादा लोग इन दोनों राज्यों से ही जाते है । इसमें पढ़े - लिखे लोग और मेहनत (हुनर) से काम करके रोज़ी रोटी कमाने वाले , दोनों ही प्रकार के लोग होते है - कहने का तात्पर्य यह है कि , ज्ञान एवं मेहनती लोगो का संगम है । 

२. दूसरी वजह मैं यह मानता हूँ कि, इन दोनों ही प्रदेशो में राजनितिक ज्ञान (उत्सुकता), बाकी राज्यों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा है।शायद इसकी वजह - हिंदी एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान का सम्मिश्रण है । क्यूंकि - दिल्ली की सत्ता में काबिल होने के लिए हिंदी एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है । 

३. मैं यह कह सकता हूँ कि , यहाँ की जनसँख्या का अनुपात , यहाँ की भौगोलिक स्तिथि से ज़्यादा है , जिसकी वजह से इन दोनों राज्यों का भारत देश की होने वाली आय में इनका हिस्सा सबसे अधिक होता है। 

४. चौथी वजह यह हो सकती है कि - भारत देश के जो चार प्रमुख धर्म पर आधारित जनसँख्या है - हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई - उनके प्रमुख धार्मिक स्थल एवं प्रमुख नदिया , जिनको माँ की तरह पूजा जाता है - इन्ही प्रदेशो में पाये जाते है। 

५. पांचवी वजह - इन दोनों राज्यों से सबसे ज़्यादा जनप्रतिनिधियों का आना है - जो प्रजातंत्र में किसी भी सरकार  की स्थिरता और अस्थिरता की प्रमुख वजह होती है। इन्ही में से एक राज्य बिहार में प्रजातंत्र का सबसे पवित्र त्यौहार - बिहार में होने वाला चुनाव है , जिसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है - जो की पांच चरणों में होगा , जिसका अंतिम चरण का मतदान 5 नवम्बर को होगा, एवं नतीजे 8 नवम्बर की देर शाम तक चुनाव आयोग के प्रोग्राम के अनुसार घोषित हो जायेंगे । 

इस बार, सत्ता का यह खेल बड़ा अजीब और रोचक सा दिखाई दे रहा है । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ - उसकी वजह यह है - जो पूर्व में प्रमुख राजनैतिक दुश्मन थे , वह साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे है , और जो मित्र थे वह प्रतिद्वंदी के रूप में आमने - सामने है । बिहार की राजनीति में इस समय दो प्रमुख गठबंधन चुनाव लड़ रहे हैं । एक तरफ - महा गठबंधन है , जिसमे इस चुनाव के पूर्व तक जो एक दुसरे के प्रतिद्वंदी थे अब एक साथ है - जैसे की Congress , RJD एवं JDU । दूसरी तरफ - NDA , जिसमे भाजपा , लोकजनशक्ति पार्टी एवं अन्य कई छोटे - छोटे दल सम्मलित हैं। 

मैं भारतीय राजनीति में ,प्रदिद्वन्दियो को हारने के लिए एवं सत्ता में काबिल होने के लिए इस प्रकार का गठबंधन शायद पहली बार देख रहा हूँ । यह भारतीय राजनीति को कौन सी दिशा देने जा रहा है - आज की तारीक़ में कोई भी भविष्यवाणी करना निरर्थक साबित होगा । इसकी वजह शायद मैं यह मान रहा हूँ कि - बिहार राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री एवं केंद्रीय सरकार के पूर्व प्रमुख मंत्रियो में से एक लालू प्रसाद यादव की राजनितिक दूरदृष्टिता  का परिणाम मानता हूँ । इस बात को कहने के लिए मेरे पास कुछ प्रमुख तथ्य भी है । उनमे से एक है - जब नितीश कुमार ने पिछले साल मांझी से अपना समर्थन हटाया तब भाजपा की तरफ से मांझी को सत्ता में बनाये रखने का प्रयास हुआ था , लगभग एक साल पूर्व लालू प्रसाद यादव की राजनैतिक दूरदृष्टि में भाजपा की बढ़ती  हुई राजनितिक महत्वाकांक्षा को भाप लिया था । तब, अपने घनघोर विरोधी नितीश कुमार को RJD का समर्थन देकर सत्ता शील कर दिया था । 

इस घटना से राजनीति के सारे महापंडित एवं राजनीतिज्ञ हतप्रभ रह गए थे । सभी का यह मानना था - लालू प्रसाद यादव अपना राजनितिक अस्तित्व बचाये रखने के लिए, बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार को मझधार में धोखा ज़रूर देंगे । लेकिन, जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले यह दोनों ही नेता  - नितीश कुमार एवं लालू यादव - फेविकोल की जोड़ की तरह एक साथ चिपके रहे । इसे, राजनीति की इस कहावत को माना जाए की , सत्ता में दोस्त का दोस्त, दोस्त होता है और दुश्मन का दुश्मन , दुश्मन होता है , या फिर सत्ता के खेल में इन दोनों नेताओं को अपने अस्तित्व को बचाये रखने की मजबूरी कहा जाए । ख़ैर , जो भी हो , लक्ष्मीकांत मिश्रा को इस सब से क्या लेना  - देना ? हद्द तो तब हो गई जब इस नेता ने (लालू प्रसाद यादव) अपने गठबंधन में congress के साथ - साथ और कुछ दलों को शामिल कर एक महा रैली बिहार में सारे नेताओं के प्रमुखों को एक साथ करके,  कर दिखाई । 

गठबंधन, अपने आप महा गठबंधन बन गया। इस महा गठबंधन में भारतीय राजनीति के सारे मूल तत्व विद्यमान है , सिवाय इसके की यह सब आपस में पूर्व में एक दूसरे के घनघोर विरोधी थे , इसी को कहते है - भारतीय राजनीति । प्रजातंत्र का यह अनोखा मेल विश्व में शायद  ही कही देखने को मिले । इस महा गठबंधन के सामने, भारतीय राजनीति में आज के परिदृश्य में सबसे प्रमुख पार्टी या दिल्ली में सत्ता शील भाजपा एवं आम जनता के सबसे  लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता की  प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा कर आमने - सामने आ गए हैं । इसीलिए मैंने इस लेख का शीर्षक - मोदी versus लालू दिया है । लोकसभा चुनाव को अभी समाप्त हुए १८ महीने भी नहीं हुए है , नरेंद्र मोदी की लोप्रियता का जादू अपने शिखर पर था और उस जादू ने  इस जादू ने बिहार पे भी अपना असर दिखाया था । अब, यह जादू अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई, हरियाणा एवं दिल्ली के बाद अपने को  प्रतिष्ठित बनाये रखने की लड़ाई लड़ रहा होगा । 

बिहार एक राजनितिक रूप से प्रमुख राज्य है , इसलिए देश ही नहीं , विश्व की निगाह भी नरेंद्र मोदी के जादू का असर बरकरार है की नहीं - यह जानने को बेताब है। नरेंद्र मोदी जी , अमेरिका एवं अन्य राष्ट्रों का दौरा करके अपनी मान प्रतिष्ठा को बचाये रखने के लिए इस संग्राम के प्रमुख योद्धा के रूप में कूद पड़े है । वह शायद इंदिरा गांधी , या यूँ कहें की कांग्रेस के पूर्व प्रधान मंत्रियो या नेताओं से प्रभावित होकर , बल्कि में दो कदम आगे बढ़ कर यह कहूँगा की ,अपने आप से आत्म मुग्ध होकर भाजपा एवं उनके साथ मिल कर लड़ रही पार्टियो का नेतृत्व कर रहे हैं । आत्ममुग्ध  मैंने इसलिए कहा है की यह पहले ऐसे प्रमुख सेनापति है जो अपने अस्तित्व के आगे अपनी ही पार्टी से ऊपर का दर्जा  प्राप्त कर लेते है । नरेंद्र मोदी जी - अपने स्वयं का बखान करते वक़्त , अपनी ही पार्टी को नगण्य साबित कर देते है । 

देश के प्रधान मंत्री पद की गरिमा का विचार इनके ज़ेहन से बिलकुल निकल जाता है , यह प्रतिद्वंदियों पर अपनी वाणी का सैय्यम खो देते हैं । नरेंद्र मोदी -  देश के पहले प्रधान मंत्री है जो चुनाव में राष्ट्रपति पद की गरिमा को भूल कर राष्ट्रपति के कहे शब्दों का चुनावी सभा में उपयोग कर रहे है । लक्ष्मीकांत मिश्रा नहीं समझ पा रहा है की यह आत्ममुग्ध प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी भारतीय राजनीति को कौन सी दिशा दे रहे हैं ? भारतीय राजनीति के सभी नागरिक जो थोड़ी भी राष्ट्रीयता अपने अंदर रखते हैं , संविधान को मानते हैं , धरम निरपेक्ष हैं , वह शायद मेरी बात से सहमत होंगे , ऐसा में इसलिए भी कह रहा हूँ की मैंने पूर्व में भारत के प्रधान मंत्रियो को भी राज्य की विधान सभाओं में जाकर भाषण देते हुए देखा और सुना है ।मुझे जितनी समझ है , मैं कह  सकता हूँ की पूर्व के प्रधान मंत्रियो ने अपनी उपलब्धियों एवं अपने दाल की नीतियों एवं आगे की कार्य योजनाओं के द्वारा ही भारतीय जनमानस को सम्बोधित किया है । 

पूर्व के ज़्यादातर प्रधान मंत्रियो ने अपनी गरिमा के अनुरूप व्यक्ति विशेष पर कभी टिप्पणी नहीं की ,इन प्रधान मंत्रियों ने साधारणतः अपनी प्रतिद्वंदी राजनितिक दलों की नीतियों एवं इनके कार्य करने के आधार पर ही टीका टिप्पणी की। भारतीय राजनीति किस दिशा में जाएगी यह तो बाद का विषय है , लेकिन इस समय समाचारो के सारे प्रमुख चैनल भी अपनी मान - मर्यादा एवं जिम्मेदारी भूल कर , दोनों ही गठबंधनों की टीका - टिप्पणियों पर संगोष्ठियाँ कर रहे हैं । सोशल मीडिया , भारतीय राजनीति में बड़ा प्रमुख हथियार हो गया है। जितना मुझे याद आता है इसकी शुरुआत भाजपा के पूर्व स्वर्गीय नेता -  प्रमोद महाजन ने अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधान मंत्री थे , को पुनः स्थापित करने के  लिए Shining India को प्रचारित करने के रूप में किया था। इस लोकसभा के चुनाव में , नरेंद्र मोदी को सत्ताशील करने में इस हथियार का  भरपूर उपयोग किया गया। 

लालू प्रसाद यादव जैसे ख़लिश नेता ने भी इस हथियार को समझ लिया , या फिर यु कहे की लोहा ही लोहे को काटता है जैसी, कहावत को साबित करने के लिए उन्होंने इसका उपयोग शुरू कर दिया । नरेंद्र मोदी को जवाब देने के लिए आज शायद देश में लालू प्रसाद यादव सबसे अग्रणी नेता होंगे जो की नरेंद्र मोदी की भाषण (स्पीच) खतम होने के चंद मिनटों के पश्चात ही इस हथियार का उपयोग कर tweet के माधयम से जवाब दे देते हैं । देखना है इन दोनों गठबंधनों के किस मुखिया की - नरेंद्र मोदी या लालू प्रसाद यादव को 8 नवंबर , 2015  में सफलता प्राप्त होती है। बिहार की जनता , राष्ट्रीय नेतृत्व को स्वीकारती है - यानी की नरेंद्र मोदी (भाजपा) या फिर प्रादेशिक नेताओं को , यानी की लालू प्रसाद यादव को।

विशेष बात यह है की - दोनों ही गठबंधन के सेना प्रमुख, बिहार प्रदेश के मुख्य मंत्री दौड़ से बाहर हैं । नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हैं , और लालू प्रसाद यादव न्यायालय द्वारा किसी भी राजनितिक पद पर बैठने से प्रतिबंधित हैं। 

वाह रे.…प्रजातंत्र !!


Lucky Baba 
Om sai … 


Thursday, October 1, 2015


18 October 2015 तक गोचर की स्तिथि 

चन्द्र दो दिनों में चलायमान रहता है , इसलिए उसकी स्तिथि नहीं लिख रहा हूँ 

दिए हुए चार्ट के अनुसार, दिन के लग्न की शुरुआत कन्या लग्न से होगी । जहाँ पर सूर्य, बुद्ध एवं राहु विराजित हैं। सूर्य , बुद्ध और राहु के लग्न में विराजित होने से 18 तारीक़ तक ग्रहण काल की स्तिथि रहेगी । राहु और सूर्य का एक साथ होना या दृष्टी सम्बन्ध में आना ग्रहण का घोतक होता है । उस पर राहु का कन्या राशि में उच्च का होना एवं सूर्य से ग्रहण का निर्माण करना यह कोई अच्छी बात नहीं है , खासकर मुखियाओं के लिए - क्यूंकि सूर्य को ग्रहो का मुखिया कहा जाता है । सत्ता के प्रमुख, परिवार के प्रमुख, या किसी भी संस्थान के प्रमुखों के लिए यह स्तिथि ठीक नहीं है । किसी ना किसी विवाद की स्तिथि या फिर कठिन परिस्थितियों से  गुज़ारने के लिए ग्रहो की यह स्तिथि उपयुक्त है । ऊपर से लग्न में यह स्तिथि विराजित है , जिनकी शुरुआत ही विवाद या संकटो से होगी । इस लेख को publish करने के बाद मुझे कई फोन आए , कई पत्रकार मित्रों  के फोन एवं कई संगठनों के मुखियाओं के फोन आना शुरू हो गए थे , जिनकी बातों से मुझे यह लगा की , मुखियाओं से सम्बंधित बात उन्होंने 18 October तक ही मान ली कि , 18 तारीक़ के बाद सब ठीक हो जायेगा । कहने का तात्पर्य यह है - की 18 तारीक़ तक ग्रहण की स्तिथि है , उसके बाद सूर्य तुला राशि में चला जायेगा जहाँ वह नीच का होता है , इसके बाद स्तिथि और खराब हो जाएगी । 18 तारीक़ तक तो संकट के शुरुआत समय होगा, उसके बाद मुखियाओं के लिए स्तिथि और खराब हो जाएँगी । 18 October तक तो ग्रहण की स्तिथि बनी रहेगी , उसके बाद जब सूर्य तुला राशि में आ जायेगा जहाँ सूर्य नीच का होता है तो, स्तिथिया और विषम हो जाएँगी।  

5 वीं राशि यानी सिंह राशि में , मंगल - गुरु - शुक्र की युति है। मंगल और गुरु आपस में मैत्री सम्बन्ध रखते हैं । मंगल उग्र स्वभाव का है एवं गुरु का सम्बन्ध धर्म एवं ज्ञान से है , शुक्र का सम्बन्ध विलासिता एवं ज्ञान से है -  इस युति का सम्बन्ध ,खासकर उन् लोगो के लिए जो समाज में धार्मिक , या फिर धर्म से सम्बंधित है - बड़ा गहरा है । 

शुक्र चूँकि सिंह राशि में , मैं बहुत अच्छा नहीं मानता हूँ इसीलिए मैं कह सकता हु की - धार्मिक उन्माद , सामान्य परिस्थितियों से ज़्यादा रहेगा । धार्मिक गुरु या फिर शिक्षा के क्षेत्र में जुड़े हुए लोगो के लिए यह समय बहुत अच्छा नहीं है । किसी व्याभाचार के धार्मिक गुरु के फसने की या लिप्त होने की संभावनाएं उजागर होंगी। 

शनि वृश्चिक राशि में है - जो की मंगल की राशि है , शनि अपने मूल स्वभाव को दर्शाते हुए मंगल से सम्बंधित , जैसे की ज़मीन अवं ज़मीन के नीचे की वस्तुओं पर अपना ज़ोरदार असर डालेगा । इनके मूल्यों में तेज़ी - मंदी का दौर, खासकर मंदी का दौर बहुत तेज़ चलेगा । petroleum product , ज़मीनो का मूल्य सोना - चांदी आदि। भूमि से सम्बंधित कार्य करने वाले या फिर भूमि के नीचे से सम्बंधित कार्य करने वालो को विशेष सावधानी रखनी चाहिए । केतु का 12 वीं राशि यानी की मीन राशि में होना एवं सूर्य से सीधा दृष्टी सम्बन्ध बनाना बहुत अच्छी स्तिथि उत्पन्न नहीं करता । धार्मिक कार्यो में तेज़ी एवं मुखियाओं का धार्मिक कार्यों में लिप्त होने का घोतक है । ज़्यादातर मुखिया धार्मिक कार्यो में लिप्त रहेंगे । 

मैं चूँकि, भारत देश के मध्य प्रदेश से हूँ , अपने ज्ञान से कह सकता हूँ , मध्य प्रदेश के सत्ता के मुखिया - यानी की मुख्य मंत्री एवं राज्यपाल एवं मंत्री मंडल के सदस्य - सत्ता के संकट में आएंगे । यह स्थिति पदविहीन करने तक की भी हो सकती है । धार्मिक क्षेत्रो में जुड़े हुए लोग भी ग्रहो की इन् स्तिथियों में बहुत ज़्यादा असरकारक नहीं रहेंगे । यह सब कुछ , चन्द्र दृष्टी सम्बन्ध एवं चन्द्र की युति पे निर्भर करेगा।   

राहु और सूर्य की युति होने से share एवं सट्टा बाजार में भारी उथल - पुथल का दौर चलेगा ।  




Lucky Baba 
Om Sai …

     

द्वितीय स्थान : विद्या एवं ज्ञान का स्थान 

कुंडली में  द्वितीय स्थान को ज्ञान एवं विद्या का स्थान भी कहा जाता है । इस स्थान से किसी मनुष्य के ज्ञान एवं  जानकारी के स्वभाव को जाना जा सकता है । जिस प्रकार का प्रभाव द्वितीय स्थान पर या फिर द्वितीय स्थान के स्वामी पर ग्रहों की दृष्टियाँ पड़ती है , उनका असर मनुष्य के ज्ञान , विद्या , जानकारी आदि पर दिखाई देता है। मनुष्य की विद्या उस प्रकार की होती है । द्वितीय भाव पर गुरु और शुक्र का प्रभाव अगर अधिक हो तो मनुष्य को कानून का ज्ञान होता है । साधारणतः इस प्रभाव पर मनुष्य , कानून की डिग्री प्राप्त करता है या फिर उसे कानून की जानकारी रहती है । शनि तथा राहु के प्रभाव से मनुष्य को medical (डॉक्टरी ) का ज्ञान होता है या फिर वह मेडिकल की डिग्री प्राप्त करता है । शुक्र तथा बुद्ध का प्रभाव अगर द्वितीय भाव पर आता है तो , मनुष्य को कला (arts) का ज्ञान होता है । 

मुझे यहाँ यह लिखने में कोई संकोच नहीं होगा की , यदि दूसरे भाव में शुक्र एवं बुद्ध उच्च भाव में हो या फिर ताक़तवर हो , तो मनुष्य अपने कुटुंब का निर्वाह कला के माध्यम से धन अर्जित करके करता है । दुसरे शब्दों में मैं अगर कहु तो - दुसरे भाव का स्वामी उच्च भाव में स्थित होकर अगर शुभ दृष्टियों से प्रभावित हो जाए तो वह मनुष्य कुटुंब के अलावा समाज में भी अपने धन एवं अपने ज्ञान से लोगो को ज्ञान एवं पालन पोषण में मदद करता है । ऐसा मनुष्य उत्कृष्ट गुणों से युक्त धनवान, सुन्दर, दूरदर्शी होता है । आगे मैं यह लिखने में संकोच नहीं करूँगा की अगर द्वितीय घर पर बलवान  सूर्य का असर हो तो ऐसा मनुष्य लोगो का बहुत उपकार करता है । ऐसा मनुष्य विद्या के माध्यम से विद्या एवं धन दोनों की प्राप्ति करता है और अपना स्थान समाज में बनाता है। 

यदि द्वितीय भाव का सम्बन्ध , शनि ग्रह से हो तो ऐसा मनुष्य, विद्या एवं ज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ जाता है । इस प्रकार के मनुष्य ज्ञान, विद्या एवं लोगो पर उपकार करने के क्षेत्र में अक्सर पीछे रह जाते है । अब मैं , इस बात को तथ्य पूर्वक कह सकता हूँ की द्वितीय भाव में ग्रहो की स्थिति से या फिर द्वितीय भाव कितना बलवान है एवं उस पर किन - किन ग्रहो की दृष्टी है , से समझा जा सकता है की मनुष्य कितना ग्यानी है , विद्या के क्षेत्र में कहा जायेगा एवं कितना परोपकारी होगा। 

  

Lucky Baba

Om Sai...

Thursday, September 17, 2015

   
ओम गण गणपतये नमः




गणपति उपनिषद का यह मंत्र सर्व मनुष्य यदि हर कार्य से पहले करे तो उसके रास्ते के सभी विघ्न , विघ्न हर्ता गणेश हर लेते हैं । आपके सभी मंगल कार्य सफल हो , आपके जीवन का  हर दिन एक नई ऊर्जा से भरा हो एवं प्रसन्नचित्त रहे…

ओम गण गणपतये नमः



Lucky Baba

Om Sai....


Saturday, September 12, 2015

एक बार फिर जापान : भीषण बाड़ की चपेट में 




जापान की राजधानी टोक्यो के उत्तर क्षेत्र में स्थित शहर 'जोसो' में, किनगावा नदीतट के टूटने से भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा । इस बाद ने बड़ी तादात में जोसो शहर में तबाही मचा दी है । नदीतट के किनारे अचानक टूटने से आई इस बाढ़ ने भारी उथल पुथल मचा दी है । शहर में पानी इस तरह भर गया है की लोग अपनी जान बचाने के इरादे से घर की छतो पर जा बैठे । helicopter rescue टीम छतो पर पर बैठे लोगो को बचाने के प्रयास में लगी हुई है । अनुमान लगाया जा रहा है की 8 लोगो लापता है और करीब 100 और लोगो को अभी बाढ़ से बचाव सुरक्षा मुहैया कराना बाकी रह गया है ।     

जापान के Meteorological Agency ( Japan  Meteorological Agency - JMA) के अनुसार जोसो शहर में बारिश के बहुत की कम आसार होते है । इस तरह की बाढ़ ने बहुत ही विपरीत परिस्थितियाँ पैदा कर दी है । सामान्य जीवन अस्त - व्यस्त तो हुआ ही , साथ ही जिस शहर में बारिश होने के भी बहुत कम अनुमान होते है , वह बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा ने भारी मात्रा में पूरे शहर को पानी - पानी कर दिया । दो दिन के इस भारी उन्माद ने जोसो शहर के घरों और कारों तक को अपनी चपेट में ले लिया ।     


Lucky Baba 

Om Sai... 

Friday, September 4, 2015






Lucky Baba



अर्थशास्त्र  का बदलता रूप



इस समय भारतीय अर्थशास्त्र (economic condition) अपने असमंजस की स्तिथि से गुज़र रहा है । पिछले कुछ महीनों से इस सब का मापदंड माने जाने वाले कुछ मुख्य तत्व हैं जो भारतीय जनमानस से अपना सीधा सम्बन्ध बनाते हैं, उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं :


1 . खाद्य पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी : पेट्रोलियम पदार्थो के दामों में ऊँच - नीँच होना 


2. धातू (Metal): मेटल पदार्थो में मूल्यों का ऊपर - नीचे जाना  

3. शेयर बाजार : शेयर बाजार का उतार - चढ़ाव से भरा होना 

4. भारतीय रुपये का अवमूल्यन : कुछ हद्द तक भारतीय रुपए में अस्थिरता आ जाना ।


भारतीय जनमानस मोटे तौर पर अर्थशास्त्र को इन्ही तत्वों पर आधारित मानता है । वह अर्थशास्त्र के छोटे - मोटे या बहुत भारी गणितों में नहीं उलझता और इधर कुछ दिनों से भारतीय राजनीति भी इसके बहुत करीब आ गई है। मैं तो यहाँ तक कहूँगा की भारतीय राजनीति ने अपना स्वरुप ही बदल लिया है । जो पहले कभी शिक्षा, सामाजिक ताना - बाना, सद्भाव , आपसी प्रेम , आपस में लोगो के सुख - दुःख में सम्मलित होना, भाई - चारा, एवं परिवार के लालन - पालन पर आधारित थी, कहने का तात्पर्य यह है  -  समाजवाद पर आधारित राजनीति अब अर्थशास्त्र एवं जातीय - धार्मिक उन्माद पर आ कर टिक गई है । पिछले कुछ वर्षो से विकास का मुद्दा नाम का एक शब्द देकर इन सभी मूल व्यवस्थाओ से राजनीतिज्ञों ने अपने - अपने तरीके से सत्ता शील होने के लिए हथ कंडे अपनाना शुरू कर दिए हैं । जिसके तहत वह अर्थशास्त्र के सबसे मुख्य नियम - मंदी एवं तेज़ी के नियम को भूल जाते हैं।  

भारतीय अर्थशास्त्र पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों , विशेष रूप से अमेरिका के अर्थशास्त्र से प्रभावित होता है । अमेरिकन अर्थशास्त्र जितना मुझे समझ आता है, तेज़ी और मंदी को समझता है। वह, रबर (rubber) की खिचाव (elasticity) पर आधारित है । मैंने पूर्व के वर्षों में अमेरिकी अर्थशास्त्र से जो समझा है वह यह है की , महंगाई (मूल्य वृद्धि) को एक निश्चित दायरे से आगे नहीं जाने देते हैं । जैसे ही यह दायरा उठता है , वह अपने प्रयास से इस पर अंकुश लगाना शुरू कर देते हैं, जिसे विश्व का अर्थशास्त्र मंदी कहता है । इसीलिए आप अभी भी वहाँ देखें तो, महीने का मेहनताना पिछले कई वर्षो से एक सा है , या उसमे ज़्यादा उतार - चढ़ाव नहीं आया । वह अपने डॉलर (रूपया) एवं मंदी पर हमेशा चौकन्ने रहते हैं । अमेरिका का मेहनताना अभी भी 8 - 10 हज़ार डॉलर, को बहुत अच्छा माना जाता है । लेकिन, भारतीय अर्थव्यवस्था - अमेरिका की इस मूल सिद्धांत को भूल जाती है । में तो यहाँ तक कहूँगा की कमोबेश यही स्तिथि सम्पूर्ण एशियाई देशों में है । 

एशियाई अर्थव्यवस्था और मूल रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी को ही सम्पन्न आर्थिक व्यवस्था समझती है।और  जब भी तेज़ी पर अर्थशास्त्र का नियम काम करना शुरू करता है - यानी की, तेज़ी के बाद मंदी , घबराहट के दौर से गुज़रने लगती है । भारतीय अर्थशास्त्रियों ने इस घबराहट या फिर यूँ कहुँ की उतार - चढ़ाव के कुछ नाम दिए है , जैसे की - GDP growth का रुक जाना या नीचे जाना , विकास के कार्यो में मंदी आना या स्थिर हो जाना, रुपये के मूल्यों पर ज़रूरत से ज़्यादा अवमूल्यन हो जाना , आदि - आदि ।               


इसी दौर से इस समय भारतीय अर्थशास्त्र या अर्थव्यवस्था गुज़र रही है जिससे भारतीय अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ अपने आप को असहाय एवं लाचार दिखाने का प्रयास करने लग गए । वित्त मंत्री अपनी जवाब देहि भूल कर RBI के गवर्नर को टकटकी बाँध कर देखने लगे है । अच्छे - बुरे का दोष वह अपनी जवाब देहि भूल कर RBI गवर्नर के ऊपर थोप देते हैं । जान मानस , घबराहट के दौर से अपने आप को  सँभालने में पस्त हो जाता है । कभी वह शेयर बाजार में अपनी , पसीने की कमाई लूटा बैठता है , कभी घर में रखे गहनों के अवमूल्यन से गरीब हो जाता है , कभी प्रॉपर्टी के गिरते हुए रेटों से अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है - कहने का तात्पर्य यह है की सरकार को भारतीय नागरिको से जब जो चाहिए होता है , राष्ट्र प्रेम का नारा देकर , राष्ट्र के विकास की बात कह कर , राष्ट्रीयता पर आधारित कोई भी जुमला बोल कर, उसे बेबस और लाचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। और जब देने की बारी आती है तो अपने टैक्स रुपी हथियार लगा कर उसे फिर से लूटना शुरू कर देती है । 

सरकार इस सिद्धांत को मानने को तैयार ही नहीं है की तेज़ी और मंदी दोनों जगह अगर सामान रूप से नहीं चले तो विश्व , फिर से विश्व युद्ध की तरफ बढ़ जायेगा । बस फर्क यह होगा की , यह विश्व युद्ध अर्थव्यवस्था पर आधारित होगा , जैसे की - भुखमरी का आ जाना , मूल्यों का ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ना या घटना , राष्ट्रों का आतंरिक युद्ध में फ़स जाना आदि ।     




Lucky Baba

Om sai....