दाल की बढ़ती क़ीमतें और भारतीय जान मानस
भारतीय भोजन में या यूँ कहें की भोजन की थाली, बिना दाल की अधूरी होती है । दाल और प्याज़ - अमीर - ग़रीब , धर्म , जातिवाद , उम्र , इन सभी बंधनों को तोड़ देती है । दाल का भारतीय भोजन की थाली में होना उतना ही ज़रूरी है जितना पाँच साल से छोटे बच्चे को दिन में कम से कम एक गिलास दूध । राजनीति करने वाले नेता को भीड़ , किसी वाहन चलाने वाले driver को किसी भी गाडी का steering , पति - पत्नी के नोक - झोंक , दोस्तों के समूह में अपने - अपने ग्रुप - ठीक उसी प्रकार, भारतीय भोजन की थाली में दाल ।
दाले भी कई प्रकार की होती हैं और दाल का order करने का अंदाज़ भी सबका अलग अलग होता है । दाल का आर्डर करते वक़्त एक विशेष अंदाज़ आ जाता है । माँ से दाल मांगते वक़्त , घर में बच्चा बड़ी नज़ाकत से कहता है - "मम्मा दाल और देना " , और जब माँ जब दाल परोस रही होती है तो , अपनी चमचमाती आँखों से कहता है - "क्या दाल बनी है माँ " , hotel में दाल के बारे में बताते वक़्त ,waiter एक विशेष अंदाज़ में आ जाता है और ग्राहक भी किसी विशेष प्रकार की दाल का order ही करता है । ढाबे में दाल के अंदाज़ का क्या कहना , ग्राहक बड़ी अदा से waiter से कहता है "ज़रा जोर का तड़का मार के ला यार" । दाल की यही स्थिति , कमोबेश हर शुभ और अशुभ कार्य के भोज में रहती है । नौ दुर्गों का कन्या भोजन हो , भंडारा हो , ईद की दावत हो , दाल की जगह भारतीय थाली में निश्चित रहती है ।
आज कल यह दाल अपने मूल्य से , अपनी लोकप्रियता का एहसास करा रही है । विशेष बात तो यह है , और किसी देश के बारे में, मैं बोल पाऊ या न बोल पाऊ , लेकिन भारत जैसे देश में दालों का राजा तुअर दाल (Yellow दाल) है । और इसी ने (Yellow दाल) , मूल्य वृद्धि में बेलगाम दाल के मुखिया का रूप धारण कर लिया। माँ का दाल परोसते वक़्त , इस बेलगाम मूल्य वृद्धि ने , माँ को, पत्नी को , waiter को, विभिन्न प्रकार के भोजन आयोजनों को बड़ी असमंजस की स्थिति में डाल दिया है । और सबसे ज़्यादा , इस सबके ऊपर, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय सरकार एवं प्रादेशिक सरकार के मुखिया कटघरे में आ गए हैं । और ऊपर से बिहार में लोकतंत्र का महा पर्व "चुनाव" शुरू हो गया है। विकास का मुद्दा, गौ माँस का मुद्दा, जातिवाद और धर्म का मुद्दा , इस दाल के मुद्दे के सामने बौने और छोटे पड़ गए । दाल के सबसे प्रीय मित्र - प्याज़ ने भी मूल्य वृद्धि में , दाल से कंधे से कन्धा मिला लिया । दोनों ही भारतीय थाली के प्रमुख व्यंजन , सरकार की सफलताओ और असफलताओ का मापदंड हो गया । चूँकि भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार चला रही है , इस वजह से , बिहार में भी वह अपने नेतृत्व में सरकार बनने का सपना देख रही थी । लेकिन इस दाल ने , उनके मुख्य मुद्दा - विकास के मुद्दे को , काफी पीछे छोड़ दिया। इन पंक्तियों को लिखने की इच्छा तब जाग्रत हुई जब समाचार माध्यमों से यह पता चला की बिहार के चुनाव में , भारतीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी , जो की भारतीय जनता पार्टी के सबसे प्रमुख star प्रचारक भी है , की जन सभाएँ भी cancel होने लगीं ।
भाजपा के दिग्गज नेता, twitter के द्वारा या फिर सभाओं में , दाल के मूल्यों पर बहस (लड़ाई) करते हुए देखे जाने लगे । हद तब हुई जब , इन्ही समाचार माध्यमों से यह ज्ञात हुआ की भारतीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी एवं अन्य राष्ट्रीय नेताओं के पोस्टर से फोटो गायब होने लगे ।
वाह दाल.…वाह री दाल.…… जो भारतीय राजनीति में विगत वर्षों में कोई नहीं कर सका , वह कारनामा तूने कर दिखाया । सरकार लज्जित , जन मानस अचंभित ,माँ लज्जित , पुत्र परेशान, waiter लज्जित , ग्राहक संकोच में, शादी ब्याहों के पंडाल लज्जित, बाराती अचंभित , नौ दुर्गो में कन्या भोज में उपासक लज्जित, कन्याओ की कौतुहल भरी दृष्टी , दुकानदार लज्जित , खरीदार अचंभित ।
वाह री दाल. . . . .वाह.. . तूने वह कर दिखाया जो राजीनीति के बड़े - बड़े सूरमा नहीं कर सके
पिछले दो साल से , भारतीय नेता जन मानस के बीच या फिर जन सभाओं में सम्बोधन करना भूल कर , गरजा या दहाड़ा करते थे , इन सबको मिमयाने पर विवश कर दिया। हे दाल - तेरी महिमा अपरम्पार है , मैंने अभी तक तो बड़े बुज़ुर्गों की बात नहीं मानी की , भोजन शुरू करने या समाप्त करने के पश्चात थाली को थाली को हाथ से छू कर माथे पे लगाना चाहिए (थाली के पैर छूना चाहिए ) । लेकिन हे दाल - तेरी मूल्य वृद्धि ने मुझे पचास साल की आयु में यह कार्य करने के लिए (थाली के पैर छूकर माथे से लगाने के लिए ) विवश कर दिया । आखिर यह कहावत सिद्ध हो गई - की शेर को सवा शेर मिल ही गया । मैं लक्ष्मीकांत मिश्रा , तुझे शत - शत प्रणाम करता हूँ।
Lucky Baba
Om Sai...

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