Tuesday, November 10, 2015



आजकल भारत सहिष्णुता (Tolerance) और असहिष्णुता (Intolerance) तथा बिहार में प्रजातंत्र के महापर्व, विधानसभा चुनाव की बहस या फिर मैं यूँ कहुँ की एक विशेष प्रकार की सरगर्मी के दौर से गुज़र रहा है । दोनों ही मुद्दे, अपनी मर्यादित सीमाओं को लाँघने लग गए है । बिहार का चुनाव दो गठबंधनों का चुनाव ना होकर एवं विधान सभा का चुनाव ना होकर ,एक युद्ध की तरह दिखाई देने लग गया है। भारतीय राजनीति में , किसी भी प्रदेश का चुनाव इस स्तर पर शायद ही पूर्व में कभी देखा गया हो। दोनों ही महागठबंधन के राजनेता अपनी मर्यादाओं को भूल कर सत्ता के संघर्ष में राष्ट्रीयता, बढ़प्पन, आदर्शवादिता, को भूल गए है। इसी तरीके से एक नई बहस जो किसी भी प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में बहुत कम सुनाई देती है ,वह शुरू हो गई है - सहिष्णुता और असहिष्णुता की लड़ाई , नित नए आयाम छू रही है। साधारणतः इस तरीके के आंदोलन प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में नहीं के बराबर पाये जाते है। उसकी वजह मैं यह कहूँगा की इस विशेष प्रकार के आंदोलन के लिए भारत देश जैसा प्रजातान्त्रिक राष्ट्र अभी तैयार नहीं है - उसके तैयार न होने की मूल वजह मैं यह मानता हूँ की इसके कार्यकर्ता या आंदोलनकारी, जो लोग होते है वह भारत राष्ट्र जैसे विकास शील देश में एक विशेष वर्ग के होते है। राष्ट्र में जैसे एक विशेष वर्ग के लोग होते है, इनका विशेष वर्ग में प्रभुत्व होता है , लेकिन इस आंदोलन के जो आंदोलनकारी है, उनमे एक वर्ग ऐसा भी जुड़ गया है जिसका आम जनता से सीधा सरोकार है । 

भारत में, क्रिकेट एवं फिल्म जगत के लोग विशेष प्रकार के हो कर भी आम जनता से सीधे जुड़े रहते हैं , इनका प्रभाव, इनकी गतिविधिया, इनका बोल - चाल का तरीक़ा, एक विशेष प्रभाव, भारतीय जन मानस पर डालता है। इसमें से एक वर्ग इस आंदोलन से सीधा सम्बन्ध बनाने का प्रयास कर रहा है । मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , कहने में यह बिलकुल संकोच नहीं करूँगा की वह वर्ग है - फिल्म जगत, जिसका नेतृत्व शाहरुख़ ख़ान कर रहें हैं, जो की पिछले कई वर्षों से भारतीय फिल्म जगत (Bollywood) के सुपर स्टार हैं , जिनकी फिल्में भारतीय जन मानस में विशेषकर युवा पीढ़ी पे विशेष प्रभाव डालती हैं । मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , ऊपर भी लिख चुका हूँ की क्रिकेट एवं फिल्में , भारतीय जन मानस पे विशेष प्रभाव डालती हैं । इन् दोनों ही वर्गों से भारतीय जन मानस अपने को विशेष प्रकार से जुड़ा हुआ या अपना जुड़ाव महसूस करता है। 

इन् दोनों ही वर्गों के, भारतीय जन मानस में विशेष प्रभाव की कई वजहे होंगी , लेकिन मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा, दावे से यह कह सकता हूँ की , इन दोनों ही वर्गों में (क्रिकेट और फिल्म) जातिवाद ,धर्म , विशेष प्रदेश का निवासी या विशेष वर्ग का होना कोई मायने नहीं रखता -  यह दोनों क्षेत्र ऐसे हैं जिसमें कार्य करने वाले लोग , इन सारे बंधनो या इन् गंदगियों से मुक्त होते हैं - ऐसा भारतीय जन मानस मानता है । भारतीय क्रिकेट टीम में, अज़हरुद्दीन , मुश्ताक़ अली , नवाब मंसूर अली खान पटौदी, मोहम्मद कैफ, ज़हिर खान - इन लोगों का सम्मान सचिन तेंदुलकर, कपिल देव , सुनील गावस्कर , हरभजन सिंह , वीरेंद्र सेहवाग , आदी से कम नहीं है । इसी प्रकार ,भारतीय फिल्म जगत के शाहरुख़ खान , सलमान खान , सैफ अली खान , युसूफ खान (दिलीप कुमार) उतने ही जन मानस में लोकप्रिय है या लोगों के चहेते हैं जितने अमिताभ बच्चन ,राजेश खन्ना ,अजय देवगन ,अक्षय कुमार आदी। कहने का तात्पर्य यह है की जहाँ पर वर्ग विशेष का बंधन समाप्त हो जाता है ,जाती धर्म का बंधन समाप्त हो जाता है , वहाँ पर भारतीय जन मानस भी सारे बंधनों से मुक्त होकर इन्हे अपना नायक (हीरो) के रूप  में स्वीकार कर लेता है । 

साधारणतः यह नायक विवादों से दूर रहते हैं , विशेष कर तब तक ,जब तक इनका अंतर्मन किसी विशेष वजह से व्यथित ना हों । यह अपने काम से काम रखते हैं, अपने कार्य में पूर्ण सतर्क रहते हैं , एवं राष्ट्रीय विवादों से दूर रहते हैं। राष्ट्रीयता के मुद्दे पर जब कभी भी राष्ट्र को इनकी ज़रुरत होती है, या फिर इनके अंतर्मन से राष्ट्र के लिए कुछ विशेष करने का अवसर आता है तो यह बिना किसी भेद भाव के उस कार्य में लग जाते हैं। भारतीय सीमाओं पर सैनिको का उत्साह बढ़ाना हो , अकाल के वक़्त धन संगृहीत करना हो , सुनामी या भूकम्प जैसी प्राकृतिक विपदाओं में देश फंस जाए , यह पूरे उत्साह के साथ राष्ट्र सेवा में लग जाते हैं । मैंने इन्हें , साधारणतः राष्ट्रीय , राजनितिक , जातीय झगड़ों में राष्ट्रीय स्तर पर कभी भी विवादित बयांन - बाज़ी करते हुए शायद ही कभी देखा या सुना हो । लेकिन यह लोग आज कल सहिष्णुता और असहिष्णुता - रुपी आंदोलन में विशेष भूमिका निभा रहे हैं । भारतीय जन मानस फिल्म जगत को या इस विशेष समुदाय का राजनीतिकरण होता हुआ पहली बार देख रहा है, जिसके दूसरे पक्ष की अगवाई अनुपम खेर नामक कलाकार कर रहे हैं । 

अनुपम खेर, फिल्म जगत में स्टार की श्रेणी में तो नहीं आते हैं किन्तु , अच्छे कलाकारों में उनकी गिनती अवश्य होती है । अनुपम खेर की एक विशेषता और भी है की, वह हमेशा फिल्म जगत में एक प्रतिद्वंदी के रूप में अपने आप को चर्चित रखने का प्रयास अक्सर किया करते हैं , यह शायद इस कलाकार का स्वाभाव है । फिल्मों में, उनकी प्रतिद्वंदिता ओम पूरी , नसीरुद्दीन शाह , पंकज कपूर जैसे , मंजे हुए कलाकारों से करते रहते थे अपनी सफलता के दौर में - जिन लोगों ने कला को प्राथमिकता दी है , प्रसिद्धि एवं धन को बाद में रखा है । लेकिन, अनुपम खेर जी , अपनी कला से ज़्यादा धन - दौलत , प्रसिद्धि एवं विवादों में अपना विशेष ध्यान देते रहे हैं । या फिर ,इन माध्यमों से जब कभी भी उनकी चमक कुछ कमज़ोर पड़ने लगती है तो, इस सब का सहारा लेने लगते हैं । मैं इसके कुछ और उदाहरण भी दे सकता हूँ, यह अति उत्साही कलाकार, फिल्म जगत के महानायक अमिताभ बच्चन का टेलीविज़न का आज तक का सबसे सुपर हिट सीरियल (हिंदी फिल्मो की शोले) कौन बनेगा करोड़पति से टकराने की जुर्रत कर बैठा था । 

जिस समय अमिताभ बच्चन का, शालीनता, सौम्यता एवं भारतीय सहिष्णुता से भरा हुआ - ज्ञान - विज्ञान के द्वारा दर्शकों को उस समय के करोड़ रुपये के प्रलोभन द्वारा "कौन बनेगा करोड़पति" सीरियल चल रहा था , और सफलता की सारी ऊंचाइयां छू रहा था, भारतीय जन मानस में एक विशेष स्थान बना चुका था  - जिस प्रकार की शोले ने फिल्म जगत में सफलता का एक विशेष आयाम छुआ था , ठीक उसी प्रकार , मैं लक्ष्मीकांत मिश्रा यह मानता हूँ की, "कौन बनेगा करोड़पति" , टीवी सीरियल ने भी उसी मुक़ाम को छू लिया था। मेरा यह मानना है की ,जिस प्रकार शोले फिल्म फिर से नहीं बनाई जा सकती, ठीक उसी प्रकार, उसी स्तर पर और कोई सीरियल नहीं बन सकता सिवा एक भोंडी नकल के । लेकिन, स्वाभाविक रूप से प्रतिद्वंदिता को प्रोत्साहित करने वाला यह कलाकार (अनुपम खेर) , यह किस वजह से कर बैठा , यह वही जानता होगा। उससे टकराने के लिए ज़ी टीवी के साथ मिलकर "सवाल दस करोड़ का" के नाम का एक प्रोग्राम शुरू कर दिया था, जिसको भारतीय जन मानस ने पूर्ण रूप से नकार दिया । मैं तो यहाँ तक कहूँगा की , भारतीय टेलीविज़न श्रोताओं के साथ इससे बड़ा मज़ाक अभी तक किसी भी चैनल ने या किसी भी कलाकार ने नहीं किया होगा । 

मैं , लक्ष्मीकांत मिश्रा - यह बात इसलिए कह रहा हूँ की , इस प्रोग्राम ने मुझ जैसे भारतीय की अस्मिता एवं सम्मान को ठेस पहुचाने की कोशिश की थी । यह प्रोग्राम पूर्ण रूप से , लालच, धन लोलुपता एवं एक भौंडी प्रतिद्वंदिता के अलावा और कुछ नहीं था । इसी प्रकार के प्रयोग , अपने फ़िल्मी - व्यावसायिक जीवन में इन्होनें शक्ति कपूर , क़ादर ख़ान , गोविंदा जैसे कलाकारों के साथ मिल कर द्वी अर्थीय, भौंडे dailoge से करके , कला एवं अपने व्यवसाय को बहुत बढ़ाया एवं चमकाया है । राष्ट्र हित के लिए इन्होने क्या योगदान दिया है , मुझे  - लक्ष्मीकांत मिश्रा, को अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर देने के बाद भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा है , या इन्होने कुछ किया है , ऐसा ज्ञात नहीं हो रहा । 

अनुपम खेर नाम के इस कलाकार ने , अपने इस स्वाभाविक गुण (प्रतिद्वंदिता) , के चलते आज कल के फिल्म जगत के सुपर स्टार - शाहरुख़ खान से टकराने की ज़ुर्रत कर बैठा ,बिना पूर्व के परिणामों को सोचे विचारे। इस सुपर स्टार शाहरुख़ खान एवं अनुपम खेर की टकराहट ने या अनुपम खेर की स्वाभाविक मानसिकता ने, अति संवेदनशील आंदोलन को दिग भ्रमित करने का प्रयास किया । ऐसा इस कलाकार ने , अपने सम्पूर्ण सुख - साधनों के बावजूद पुरूस्कार में पाये हुए , नारियल - शॉल एवं कुछ पदकों को, धन , सुख साधनो के लालच से परे साहित्यकारों के दर्द को समझे बिना , राजपथ जैसे प्रतिष्ठित मार्ग से होकर , देश के सर्वोच्च पद -महामहीम राष्ट्रपति तक  इन साहित्यकारों के खिलाफ एक प्रेस विज्ञप्ति लेकर क्यों गया , मैं समझ नहीं पा रहा । मैं, अपने दिमाग पर बहुत ज़ोर देने के बावजूद भी समझ नहीं पाया ।   

एक कलाकार, चाहे वह फ़िल्मी हो , नाटक मंच का हो , संगीत का हो , नृत्य का हो या फिर किसी भी क्षेत्र का कलाकार हो, इस स्तर तक संवेदनहीन होगा यह मानने को मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , एक साधारण भारतीय नागरिक , बहुत प्रयास करने के बाद भी स्वीकार नहीं कर पा रहा हूँ । सम्पूर्ण सुख - सुविधाओं से भरा हुआ, मर्सिडीज़ कार में बैठा हुआ यह फिल्मी कलाकार किसी भी बस स्टॉप पर खड़े हुए साधारण कुरता - पजामा पहने हुए , कंधे पर झोला लटकाये हुए , पैरों में आड़ी - टेढ़ी चप्पल पहने हुए , उस इंसान को जो साहित्य की सेवा कर रहा है, जो साहित्यकार कहलाता है, जो अपनी पत्नी के लिए राजनेताओं से लोक सभा की टिकट नहीं माँग रहा है, नौकरी नहीं मांग रहा है, व्यवसाय में विशेष मदद नहीं मांग रहा है , बल्कि - देश वासियो के लिए असहिष्णुता का मुद्दा उठा रहा है, भारतीय संस्कृति को बचाने का प्रयास कर रहा है, सत्ता में बैठे हुए सत्ता शील मंत्रियों एवं पार्टी से असहिष्णुता जैसे मुद्दे पर टकराने का प्रयास कर रहा है, अपने जीवन भर की कमाई ,नारियल शॉल एवं सम्मान के रूप में मिले हुए कुछ पारितोषक, देश की मूल धरोहर, सहिष्णुता को बचने के प्रयास में , सरकार में बैठे हुए मंत्रियों एवं सांसदों की धमकीयों से टकरा रहा है । 

आज की तारीक़ में भारत सरकार में नंबर दो की स्थिति पा चुके वित्त मंत्री - अरुण जेटली जैसे अति शक्ति शाली कैबिनेट मंत्री की धमकी  - "अगर पुरूस्कार लौटाना है तो लिखना छोड़ दो" - से बिना डरे हुए अपने आंदोलन को आगे बढ़ा रहें हैं ।  हाथ में पत्थर ले कर किसी राजनितिक आंदोलन की तरह सरकार एवं देश की संपत्ति को नुक्सान नहीं पंहुचा रहा ,अग्नि काण्ड नहीं कर रहा, जाती एवं धर्म के द्वारा भारतीय जन मानस को लड़ाने का प्रयास नहीं कर रहा , बल्कि इस सब के विपरीत - देश के सबसे अनमोल गुण (स्वभाव) - सहिष्णुता (Tolerance) को बचाने के लिए , उसके पास जो सबसे बहुमूल्य चीज़ है - राष्ट्रीय पुरूस्कार एवं सामान्य पुरूस्कार निछावर करने को तैयार है , जिसे सत्ता रुपी भस्मासुर एवं सत्ता के मद में डूबे हुए सांसद एवं मंत्री, यह कह कर तिरस्कृत कर रहे हैं की अगर साहित्यकारों को अपना आंदोलन चलाना है तो वह पाकिस्तान चले जाए , बांग्लादेश चले जाए, कह कर , अपना राष्ट्र प्रेम या फिर सत्ता सुख ज़ाहिर कर रहे हैं और इन साहित्यकारों को जन मानस में , राष्ट्र द्रोही साबित करने का प्रयास कर रहे हैं , बिना यह सोचे समझे की साहित्यकार राष्ट्र का दर्पण होता है, किसी सत्ता का भांड या चाटुकार नहीं । अनुपम खेर जैसे संवेदनहीन कलाकार , महामहीम जैसे गरिमा मई एवं सर्वोच्च पद को ठेस पहुचाने का यह कुकृत्य क्यों कर रहे है - समझ में नहीं आ रहा है - या वह समझ रहे हैं तो हमें समझाने का प्रयास करें। 

मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , अपने ज्ञान अज्ञान की इस लेखनी से अगर किसी को दुःख दे रहा हूँ या दुखी कर रहा हूँ , तो इस लेख के साथ ही उन ज्ञान के देवताओ से माफ़ी भी मांग रहा हूँ। यह लाइन मैं इसलिए लिख रहा हूँ - अभी दूरदर्शन में लोकतंत्र के महापर्व - बिहार के विधान सभा चुनाव के परिणाम के बाद , सहिष्णुता (Tolerance) के इस मुद्दे को जीवन्त रूप में, राजनेताओं की भाषाओं को सुनने के पश्चात और ख़ास कर तब , जब एक ही दल के नेता अपने ही दल के नेताओं के प्रति जिन घटिया शब्दों एवं मुहावरों का इस्तेमाल कर रहें है , या फिर अनुपम खेर की राष्ट्रपति भवन तक की पद यात्रा में , पत्रकारों से हुए दुर्र्व्यवहार का मुद्दा ही क्यों ना, मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , अंतर मन से दुखी होकर यह चंद लाइन, देश के साहित्यकारों के चरणों में अपने समर्थन का इज़हार करते हुए रख रहा हूँ ।                   


Lucky Baba
Om Sai....




 

Saturday, November 7, 2015

दर्द के अहसास के साथ न जाने क्यों में जिन्दा हूँ
बड़ा दर्द है दिल में मेरेमगर फिर भी में जिन्दा हूँ 
उनका मुझे पता नही लेकिन वो बहुत खामोश हैं
दर्द के अहसास के साथ नजाने क्यों में जिन्दा हूँ
एक एक पल में केसे उसकी यादो में  जी रहा हु
जीना है अभी मुझे इस दर्द के साथ और कितना
और उनकी याद आती है  दर्द  सहना है कितना



Tuesday, October 27, 2015

दाल तुम क्यों महंगी हो गईं ? 

भाजपा एवं बिना फीस के वैद्य नाराज़ हो गए 


अब मेरे खाने की थाली , में राजमा होगा , छोले होंगे , बैंगन का भरता होगा , किसी प्रकार की चटनी होगी , या सबसे अहम सवाल है की दाल होगी । मेरे भारतीय जनता पार्टी के मित्र : मुझे और मेरे परिवार को क्या खाना है इसका निर्णय मेरे यह भाजपाई नेता करेंगे । मुझे सलाह देते है बाबा रामदेव , की इनकी पतंजलि का शुद्ध देसी घी ऊँगली से चाट - चाट के खाऊ  मगर दाल में ना खाउ क्यूंकि मेरे घुटने कमज़ोर हो जायेंगे । 


और भाजपाई मित्र बताते है की भारतीय थाली का मूल तत्व : दाल और प्याज खाना बंद कर दो । अंडा खाओ मांस खाओ , राजमा खाओ , छोले खाओ लेकिन दाल मत खाओ । पांच साल में , अभी तो सिर्फ डेढ़ साल बीता है, मेरी अपनी मेहनत की कमाई से जो मैं अपने परिवार का लालन - पालन , भरण - पोषण करता था , उसमे बिना फीस का वैद्य (बाबा रामदेव) और बिन मांगी सलह (भाजपाई मित्र )…… 


Lucky Baba
Om Sai....


Friday, October 23, 2015

सरकार और साहित्यकार 




किसी भी समाज का आईना होता है - साहित्य । किसी भी देश का इतिहास हो , वर्तमान हो , भविष्य हो - समाज की कल्पना साहित्य की कलम ही उकेरा करती है । किसी भी देश का साहित्य , या किसी भी देश के साहित्यकारों द्वारा या उनकी सफ़ेद पन्नों पर चली हुई कलम से ही उस देश का मानस , जन - मानस , देश की नीतियाँ , न्याय - प्रणाली , कार्य करने का तरीका , इन साहित्यकारो की ही कलम से निकल कर जन - मानस तक पहुँचता है । यहीं पर साहित्यकार , जनता में हुए परिवर्तन को भी स्वीकारता है । पुरानी कुरितियों और आती हुई संभावनाओं का सामंजस्य बनाता है । शासक को दिशा देता है। प्रजा , या आम जनता को शासक से बहुत सारी संभावनाएं देता है , उनसे सामंजस्य बिठाने की मानसिकता को समझदारी देता है । विचारकों के, वैज्ञानिकों के , भविष्य के प्रति होने वाले मनुष्य द्वारा गतिविधियों को यह साहित्यकार , अपनी विशेष भाव - भंगिमा से, वेश - भूषा धारण कर , अपने कलम द्वारा समाज को सूचित करता है । यह तो मैं , वर्तमान , और भविष्य को मिला कर , वह क्या कर रहे है लिख रहा हूँ - भूतकाल के बारे में , मैं क्या बोलूँ ? 

साहित्य की कलम से ही वर्तमान की नीव रखी है और भविष्य की कल्पना रखी है - यह कर्म चलता था और चलता रहेगा । साधारणतः यह लोग हसमुख और खुशमिजाज़ होते है , गंभीरता के आवरण में इनके रंगों का क्या कहना!!कभी - कभी क्रोध में भी आ जाता हैं । हाँ , एक बात मैं कहना भूल रहा हु की - इनमें एक छोटी - मोटी आदत होती है जिनको लोग व्यसन कहते हैं , यह लोग उस आदत से जुदा नहीं होना चाहते । अपने व्यसन  को सहजना इनकी मनोवृत्ति होती है।               

यह लोग कभी - कभी क्रोधित भी  हो जाते  हैं , और इनका साधारणतः क्रोध जन मानस पर होते हुए अत्याचार या समाज में बढ़ती हुई किसी कुरीति के खिलाफ होता है । यह बहुत कम उत्तेजित होते है , और खासकर समूह में , लेकिन इनके उत्तेजित होने के परिणाम दूरगामी होते हैं । शासक और प्रशासन साधारणतः इनके इस क्रोध को अपनी नीतियों से जोड़ लेते हैं , जिससे टकराव की स्तिथि उभर आती है , कमोबेश यही स्तिथि इस समय मेरे राष्ट्र (प्रजातान्त्रिक हिंदुस्तान) में उभर आई है, जो की दूर गामी परिणामों के बारे में संकेत दे रही है । मुह में काली पट्टी बांधना , ख़ामोशी से अपने विरोध को जाहिर करना , या फिर अपने शासन द्वारा उत्कृष्ट कार्यो के किये हुए पारितोषक को वापस कर देना है । मुझे जितना समझ में आ रहा है - शासन को इनके क्रोध के द्वारा दिया हुआ संकेत समझ लेना चाहिए । मैं तो यहाँ तक कहूँगा की, शासक के मुखिया को (प्रधान मंत्री) इन् निहत्ते शूरवीरो से दो - दो हाथ करने की जगह , पूर्ण सम्मान के साथ इनसे विचार विमर्श करना चाहिए एवं , इनके सम्मान तथा प्रतिष्ठा को ध्यान में रख कर , इनके द्वारा दिए हुए सुझाव पर , तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए । अगर ऐसा नहीं होता है , तो मैं - लक्ष्मीकांत मिश्रा , दावे से कहता हूँ की आने वाले दिनों में देश किसी भयानक संघर्ष की तरफ बढ़ रहा है । शायद, लक्ष्मीकांत मिश्रा ने , अपने 50 साल की उम्र में , साहित्यकारों को समूह में  इकठ्ठा हो कर , इस तरीके से सरकार को सचेत करने का , साहित्यकारों को पहली बार देखा है । 

इसके छोटे - मोटे अंश , मैंने भारतीय प्रधान मंत्री - इंदिरा गांधी के इमरजेंसी काल के दौरान देखे । उस समय भी साहित्यकारों ने , अपने - अपने तरीकों से इंदिरा गांधी एवं उनके प्रशासन का विरोध किया था । उस समय की प्रधान मंत्री - इंदिरा गांधी एवं उनके प्रशासन ने इनसे सुलह और समझने की जगह , इनका विरोध किया था , एवं इनकी आवाज़ को दबाने के लिए नीतियों का सहारा लेकर , प्रशासन के द्वारा इनके मार्गदर्शन को ठुकरा कर , इन पर तरह - तरह के दबाव डालने का या फिर इन्हे दण्डित करने का प्रयास किया गया था, जिसका परिणाम यह हुआ की इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता खोनी पड़ी थी एवं , सफलतम प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के उस काल को इस प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में (हिन्दुस्तान में) एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है । मैं(लक्ष्मीकांत मिश्रा ) वर्तमान में , भारत के लोकप्रिय जन नेता एवं प्रधान मंत्री से निवेदन करूँगा - इस विरोध स्वरूपी आहट को पहचाने , अपने स्वर्णिम काल को बचाएँ एवं इतिहास के पन्नों तक अपने इस स्वर्णिम काल जाने दें ।   

कई - कई सालों के पश्चात इस राष्ट्र को इतना लोकप्रिय नेता , प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में मिला है , जो की पार्टी , नीतियों , विचारधाराओं से ऊपर उठ कर , अपने व्यक्तित्व से, जिसने भारतीय जन मानस में अपना स्थान बनाया है । इन सत्ता के चाटुकारों , दलालो , एवं सत्ता से चिपके रहने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को कड़ी फटकार लगा कर , एक शाम के कुछ घंटे , इनके साथ व्यतीत करें । इनके द्वारा दिए हुए इशारों से देश की नीतियों में जो भी परिवर्तन हो सकता है उसको करें । मैं , लक्ष्मीकांत मिश्रा -  निवेदन करूँगा इस देश के लोकप्रिय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से की, यह लोग (साहित्यकार) किसी भी सत्ता या प्रशासक के प्रतिद्वंदी नहीं - यह समाज के दर्पण हैं, इन्हें समझ कर अपनी नीतियों में परिवर्तन कर , प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के इस काल को स्वर्णिम काल में बदलने का प्रयास करें । 

मैं , प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के राजनितिक प्रतिद्वंदी - राहुल गांधी से यह निवेदन करूँगा - एक शाम के कुछ घंटे इन साहित्यकारों के साथ जरूर से गुज़ारे ।  बात मैं इसलिए कह रहा हूँ - प्रजातंत्र में विपक्ष एक प्रमुख स्तम्भ है । मैं किसी व्यक्ति विशेष , किसी भी विशेष पार्टी को , किसी विशेष समुदाय या दल को मानसिक रूप से व्यथित करने का प्रयास नहीं कर रहा हूँ । अगर किसी को कुछ आघात लगा हो तो अपने इस लेखन के साथ ही माफ़ी भी मांग रहा हूँ । यह मेरे - लक्ष्मीकांत मिश्रा के व्यक्तिगत विचार है ।

Note : मैं (लक्ष्मीकांत मिश्रा) , अपने व्यक्तिगत विचार प्रकट कर रहा हूँ । देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से की यह देश का वह मुद्दा है , जिसमे शाम के कुछ घंटे आप (नरेंद्र मोदी ) एवं आपके प्रतिद्वंदी विपक्ष के नेता राहुल गांधी , समाज के इस दर्पण के साथ एक साथ गुज़ारें । देश को एक सफल दिशा देकर नई परिपाटी की शुरुआत करे । 



Lucky Baba 
Om Sai.... 

Tuesday, October 20, 2015

दाल की बढ़ती क़ीमतें और भारतीय जान मानस 



भारतीय भोजन में या यूँ कहें की भोजन की थाली, बिना दाल की अधूरी होती है । दाल और प्याज़ - अमीर - ग़रीब , धर्म , जातिवाद , उम्र , इन सभी बंधनों को तोड़ देती है । दाल का भारतीय भोजन की थाली में होना उतना ही ज़रूरी है जितना पाँच साल से छोटे बच्चे को दिन में कम से कम एक गिलास दूध । राजनीति करने वाले नेता को भीड़ , किसी वाहन चलाने वाले driver को किसी भी गाडी का steering , पति - पत्नी के नोक - झोंक , दोस्तों के समूह में अपने - अपने ग्रुप - ठीक उसी प्रकार, भारतीय भोजन की थाली में दाल ।      

दाले भी कई प्रकार की होती हैं और दाल का order करने का अंदाज़ भी सबका अलग अलग होता है । दाल का आर्डर करते वक़्त एक विशेष अंदाज़ आ जाता है । माँ से दाल मांगते वक़्त , घर में बच्चा बड़ी नज़ाकत से कहता है - "मम्मा दाल और देना " , और जब माँ जब दाल परोस रही होती है तो , अपनी चमचमाती आँखों से कहता है - "क्या दाल बनी है माँ " , hotel में दाल के बारे में बताते वक़्त ,waiter एक विशेष अंदाज़ में आ जाता है और ग्राहक भी किसी विशेष प्रकार की दाल का order ही करता है । ढाबे में दाल के अंदाज़ का क्या कहना , ग्राहक बड़ी अदा से waiter से कहता है "ज़रा जोर का तड़का मार के ला यार" । दाल की यही स्थिति , कमोबेश हर शुभ और अशुभ कार्य के भोज में रहती है । नौ दुर्गों का कन्या भोजन हो , भंडारा हो , ईद की दावत हो , दाल की जगह भारतीय थाली में निश्चित रहती है ।   

आज कल यह दाल अपने मूल्य से , अपनी लोकप्रियता का एहसास करा रही है । विशेष बात तो यह है , और किसी देश के बारे में, मैं बोल पाऊ या न बोल पाऊ , लेकिन भारत जैसे देश में दालों का राजा तुअर दाल (Yellow दाल) है । और इसी ने (Yellow दाल) , मूल्य वृद्धि में बेलगाम दाल के मुखिया का रूप धारण कर लिया। माँ का दाल परोसते वक़्त , इस बेलगाम मूल्य वृद्धि ने , माँ को, पत्नी को , waiter को, विभिन्न प्रकार के भोजन आयोजनों को बड़ी असमंजस की स्थिति में डाल दिया है । और सबसे ज़्यादा , इस सबके ऊपर, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय सरकार एवं प्रादेशिक सरकार के मुखिया कटघरे में आ गए हैं । और ऊपर से बिहार में लोकतंत्र का महा पर्व "चुनाव" शुरू हो गया है। विकास का मुद्दा, गौ माँस का मुद्दा, जातिवाद और धर्म का मुद्दा , इस दाल के मुद्दे के सामने बौने और छोटे पड़ गए । दाल के सबसे प्रीय मित्र - प्याज़ ने भी मूल्य वृद्धि में , दाल से कंधे से कन्धा मिला लिया । दोनों ही भारतीय थाली के प्रमुख व्यंजन , सरकार की सफलताओ और असफलताओ का मापदंड हो गया । चूँकि भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार चला रही है , इस वजह से , बिहार में भी वह अपने नेतृत्व में सरकार बनने का सपना देख रही थी । लेकिन इस दाल ने , उनके मुख्य मुद्दा -  विकास के मुद्दे को , काफी  पीछे छोड़ दिया। इन पंक्तियों को लिखने की इच्छा तब जाग्रत हुई जब समाचार माध्यमों से यह पता चला की बिहार के चुनाव में , भारतीय प्रधान मंत्री,  श्री नरेंद्र मोदी जी , जो की भारतीय जनता पार्टी के सबसे प्रमुख star प्रचारक भी है , की जन सभाएँ भी cancel होने लगीं ।

भाजपा के दिग्गज नेता, twitter के द्वारा या फिर सभाओं में , दाल के मूल्यों पर बहस (लड़ाई) करते हुए देखे जाने लगे । हद तब हुई जब , इन्ही समाचार माध्यमों से यह ज्ञात हुआ की भारतीय प्रधान मंत्री, श्री नरेंद्र मोदी जी एवं अन्य राष्ट्रीय नेताओं के पोस्टर से फोटो गायब होने लगे ।

वाह दाल.…वाह री दाल.…… जो भारतीय राजनीति में विगत वर्षों में कोई नहीं कर सका , वह कारनामा तूने कर दिखाया । सरकार लज्जित , जन मानस अचंभित ,माँ लज्जित , पुत्र परेशान,  waiter लज्जित , ग्राहक संकोच में, शादी ब्याहों के पंडाल लज्जित, बाराती अचंभित , नौ दुर्गो में कन्या भोज में उपासक लज्जित, कन्याओ  की कौतुहल भरी दृष्टी , दुकानदार लज्जित , खरीदार अचंभित ।

वाह री दाल. . . . .वाह.. . तूने वह कर दिखाया जो राजीनीति के बड़े - बड़े सूरमा नहीं कर सके      

पिछले दो साल से , भारतीय नेता जन मानस के बीच या फिर जन सभाओं में सम्बोधन करना भूल कर , गरजा या दहाड़ा करते थे , इन  सबको मिमयाने पर विवश कर दिया। हे दाल - तेरी महिमा अपरम्पार है , मैंने अभी तक तो बड़े बुज़ुर्गों की बात नहीं मानी की , भोजन शुरू करने या समाप्त करने के पश्चात थाली को थाली को हाथ से छू कर माथे पे लगाना चाहिए (थाली के पैर छूना चाहिए ) । लेकिन हे दाल - तेरी मूल्य वृद्धि ने मुझे पचास साल की आयु में यह कार्य करने के लिए  (थाली के पैर छूकर माथे से लगाने के लिए ) विवश कर दिया । आखिर यह कहावत सिद्ध हो गई - की शेर  को सवा शेर मिल ही गया । मैं लक्ष्मीकांत मिश्रा , तुझे शत - शत प्रणाम करता हूँ।


Lucky Baba
Om Sai...



  

Thursday, October 15, 2015

चक्षु निर्बलता योग (दॄष्टि के कमज़ोर होने का योग)

यदि सूर्य, द्वितीय स्थान या फिर द्वादश स्थान में स्थित हो और उस पर किसी पापी ग्रह की दॄष्टि हो तो , दॄष्टि शक्ति में बहुत निर्बलता आ जाती है , और कई बार यह अंधत्व की स्तिथि देता है । सूर्य प्रकाश है, और मेरे विचार से आँखों का कारक भी सूर्य ही होगा । द्वितीय (दूसरा) तथा द्वादश स्थान (१२ वां भाव) - दोनों स्थानों को ज्योतिष शास्त्र में आँखों का स्थान माना जाता है । सूर्य का इनमे से किसी भी स्थान में स्थित होने से अर्थ यह निकलेगा - जहा सूर्य प्रकाश या आँख के रूप में स्वयं स्थित हों और ऊपर से पापी ग्रहों की दॄष्टि से पीड़ित हो या ग्रह से पीड़ित हों ,तब दृष्टी के दोनों ही कारक को निर्बलता प्राप्त होगी एवं दृष्टी कमज़ोर होने का वजह निर्मित हो जाएगी । मैं साथ में दिए चार्ट से इसे समझाने का प्रयास करता हूँ -


यह जिस व्यक्ति की कुंडली है , उस व्यक्ति की दाई आँख की ज्योति बहुत छोटी आयु में ही चली गई । यहाँ सूर्या १२ वें भाव (द्वादश भाव )में स्थित है, जिसके ऊपर तुला राशि के प्रबल शनि की तीसरी सीधी दृष्टी पड़ रही है , और यह केतु के प्रभाव में भी है । द्वादश भाव (१२ वें भाव) के स्वामी , गुरु पर दो पापी ग्रह - शनि तथा मंगल की सीधी 7 वीं दृष्टी पड रही है, जिसकी वजह से इस मनुष्य की दाई आँख की रौशनी बचपन से ही चली गई थी ।

-- सम्पूर्ण अंधत्व , दिए हुए चार्ट में --


यह जिस व्यक्ति की कुंडली है , उसकी दोनों आँखों की दृष्टी बचपन में ही चली गई थी । यह बाल अवस्था से ही अंधे हैं । इसकी वजह - द्वितीय स्थान में सूर्य का शनि की नीच राशि में  होना , सूर्य और केतु का शत्रु युक्त हो जाना है , और उस पर परम क्रूर, महाबली मंगल की चौथी दृष्टी का पड़ना है । इस दृष्टी के कारण , सूर्य तथा द्वितीय भाव , जो की दृष्टी के कारक हैं , जिसकी वजह से यह इंसान अँधा है ।   

Lucky Baba

Om Sai... 


Wednesday, October 14, 2015

 International Court of Justice में भारतीय प्रधान मंत्री पर मानहानि का मुकदमा 




आज शहर में कई जगह बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा का एक आम विषय - भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर South Africa की सरकार के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर करने की चर्चा बहुत ज़ोरो से थी । कही यह बहस गरम - गरम चाय या कॉफ़ी के साथ थी या फिर ,आज से नौ दुर्गा महोत्सव शुरू होने से पंडालों के आस - पास चर्चा आम थी । मुझे किसी भी समाचार माध्यम से इस समाचार की जानकारी नहीं मिली , खासकर news channel एवं newspaper में यह खबर कही नहीं मिली । मैं इन चर्चाओ को सुन रहा था और आजु - बाजू के अपने साथियो से बार - बार पूछ रहा था की यह समाचार कहा से प्राप्त हुआ ? क्यूंकि मुझे (लक्ष्मीकांत मिश्रा को) अपने ज्ञान के अनुसार किसी भी प्रधान मंत्री पर साधारणतः अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने के पहले एक सरकार का दूसरी सरकार से सफाई या फिर उसपे लिखित वजह जाने बिना अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में सरकारें  जाना पसंद नहीं करतीं । अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाना, दो देशों की सरकारों के बीच का सम्बन्ध ही नहीं होता बल्कि, दो देशो के आम नागरिकों की जन - भावनाए, सांस्कृतिक सम्बन्ध , व्यापारिक सम्बन्ध , आपस में भाई - चारा आदि, बहुत सारी  चीज़े , सम्मिलित होती हैं । 

ऐसे विवादों पर अभी तक यह परिपाटी रही है की ,अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाने की जगह, आपस में चर्चा करके एक दूसरे को विश्वास में लेकर विषय को समाप्त कर दिया जाता है । यह मेरा (लक्ष्मीकांत मिश्रा) का सिर्फ ज्ञान मात्र है । ऐसी ही परिपाटियों को मैंने आज तक देखा एवं सुना है । ख़ैर , वजह कोई भी हो , मैं उस माध्यम को जानना चाहता था या फिर अपनी आदत के अनुसार , सत्यता बिना जाने, मैं कोई चर्चा नहीं कर पाता । आदरणीय राजेन्द्र कोठारी जी एवं अपने मित्र - मनोज गौतम से इस समाचार का स्त्रोत पूछा। ज्ञात हुआ , की इंटरनेट पर यह समाचार आ रहा है। कौतुहल वश , मैंने internet खोला जिसमे www. worldnewsexpress.com में इन् lines को पढ़ा - 

"Cape Town: After Indian Prime Minister Modi’s tweet comparing Parkash Singh Badal, an Indian politician with South Africa’s father of nation, Nelson Mandela, the Government of South Africa filed defamation case against the leader of India in the International Court of Justice, Hague.
PM Modi said: “There is a special family about whom pages are  written in history even if their fingernails break. Very few people know that Badal Saheb is Nelson Mandela of India, who has spent nearly two decades in jail only because of political differences.”

After tweet, Twitterati started trending ##YoBadalSoMandela to protest against the Prime Minister of India’s statement.
“It’s an insult to our Father of Nation by comparing India’s ordinary politician”, a netizen from South Africa tweeted.
To calm down the protest situation in South Africa, the Government of South Africa filed a defamation case against the Indian Prime Minister Modi in the International Court of Justice, Hague for the insulting father of the nation of our country." 

जिसका तात्पर्य , मैंने अपने ज्ञान से यह निकाला - की , भारतीय प्रधान मंत्री , नरेंद्र मोदी के दिए उपरोक्त tweet से आहत होकर South Africa की सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में , भारत देश के सबसे लोकप्रिय नेता ही नहीं बल्कि , देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी पर अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मुकदमा लगा दिया । मरे दिमाग में यह सवाल बार - बार आ रहा है की साउथ अफ्रीका की सरकार को आखिर किस बात की इतनी हड़बड़ी थी या जल्दबाज़ी थी जिससे वह सीधे भारतीय प्रधान मंत्री के खिलाफ मुकदमा दायर करने पर उतर आई, या फिर , हमारा विदेश मंत्रालय इस पूरे घटना क्रम पे कोई संज्ञान नहीं ले सका, और हालात की गंभीरता को क्यों नहीं समझ पाया? एक आम भारतीय होने के नाते , देश के प्रधान मंत्री पर इस तरह अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में मुकदमा लगाने से मन व्यथित हो गया । यह, भारत की मान - मर्यादा का विषय है , और मैं, लक्ष्मीकांत मिश्रा, इस खबर से मानसिक रूप से आहत भी हुआ और परेशान भी । आखिर , भारत का  विदेश मंत्रालय इस प्रकार की चूक (गलतियाँ) से हम जैसे साधारण नागरिको को कैसे संतुष्ट करेगा ? इस देश की स्मिता को कैसे बचाएगा ?   

यह सवाल शायद , जाती , धर्म , राजनितिक प्रतिद्वंदिता - इन सब से उठ कर है । यह पूरे राष्ट्र का विषय है । यह किसी पर व्यक्तिगत आरोप - प्रत्यारोप का समय नहीं है । भारतीय विदेश मंत्रालय को एवं भारतीय सरकार को अब अपना कड़ा रुख़ एवं विरोध साउथ अफ्रीकन सरकार के ख़िलाफ़ तुरंत दर्ज करना चाहिए, जिससे किसी भी राष्ट्र को इस तरीके से भारतीय प्रधान मंत्री को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में खीचने की परिपाटी की शुरुआत ना हो सके , एवं , मुझ जैसे हर एक आम भारतीय नागरिक को इस बात की जानकारी से अवगत भी करना चाहिए । इस समाचार को दबाने की जगह , इससे हमारे देश की प्रतिष्ठा पर जो आंच आई है , उसकी हर नागरिक को जानकारी होनी चाहिए । ऐसे समय में , देश का हर नागरिक भारत के प्रधान मंत्री से कंधे से कन्धा लगा कर लड़ने को तैयार है । 


Lucky Baba 
Om Sai