Tuesday, July 14, 2015

केंद्र के ग्रहों का महत्त्व 

ज्योतिष की भाषा में केन्द्रस्त ग्रहों का मतलब होता है : प्रथम भाव यानी लग्न , चतुर्थ भाव यानी सुख भाव,  सप्तम भाव यानी की partner house , दशम भाव यानी की कर्म भाव। जब इन चारों भावों पर या इन में से किसी भाव पर कोई गृह  होते हैं तब उन्हें केन्द्रस्त गृह कहा जाता है । जो केंद्र में गृह होते हैं, उनका विशेष महत्त्व इसलिए होता है क्यूंकि यह माना गया है की , केन्द्रस्त ग्रहों में एक दुसरे को ताक़त देने की विशेष शक्ति होती है । उदहारण के लिए : यदि दशम भाव यानी कर्म भाव में कोई शुभ अथवा अशुभ गृह उपस्थित है तो उस शुभ अथवा अशुभ ग्रह का प्रभाव लग्न पर अवश्य पड़ेगा । इसे  अंग्रेज़ी में square aspect कहते हैं । साधारणतः पाश्चात्य ज्योतिष में इसे बुरा माना जाता है , चाहे केंद्र में स्थित गृह शुभ गृह ही क्यों ना हो , जैसे की बृहस्पति अथवा शुक्र गृह ही क्यों ना हो । परन्तु, भारतीय ज्योतिष शास्त्र इसे सही नहीं मानते । हमारे शास्त्रों के अनुसार, केन्द्रस्त स्थित गृह का लग्न पर शुभ अथवा अशुभ प्रभाव, उसके शुभत्व अथवा अशुभत्व पर निर्भर करता है । उदहारण के लिए : यदि कुंडली में शनि दशम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टि लग्न पर नहीं पड़ने पर भी शनि का पूर्ण प्रभाव लग्न में माना जायेगा । शनि एक अशुभ गृह या पापी गृह माना जाता है , इस वजह से वह लग्न को हानि पहुचायेगा ।

 इस दशम स्थान के नियम को अन्य केन्द्रस्त भावो पर भी इसी प्रकार से लगा कर देखना चाहिए । जैसे की : बृहस्पति किसी कुंडली के द्वितीय (2) स्थान में है और शनि एकादश (11) में है , यहाँ शनि चूंकि बृहस्पति से दशम स्थान में विद्यमान है अतः उसका पाप अथवा मूल प्रभाव (पृथकता जनक) बृहस्पति यानी , द्वितीय भाव पर पड़ेगा ही ।

इस तथ्य के आधार पर वाहन प्राप्ति का योग मैं समझाता हूँ : जब लग्न  तथा चतुर्थ (4) भाव के स्वामी परस्पर एक दूसरे से केंद्र में स्थित हों या फिर लग्नाधिपति (लग्न का स्वामी) अत्यंत बलवान हो तो , घर में या फिर  ऐसे इंसान के द्वारा को वाहन सुख की प्राप्ति होता है । कहने का तात्पर्य यह है : की परस्पर एक दूसरे से केंद्र में होने का कारण लग्न के स्वामी का सम्बन्ध वाहनाथिपति (चतुर्थ भाव से) जाता है जिससे उसे विशेष ताक़त मिल जाती है ।  चूँकि लग्न का सम्बन्ध चतुर्थ भाव से होगा तो मनुष्य को वाहन की प्राप्ति होगी ।

यदि कमज़ोर या पाप गृह का चन्द्रमा 12 वे स्थान में हो, लग्न में तथा अष्टम भाव में पापी गृह हो  में कोई भी सुख गृह ना हो तो, पैदा हुए बालक की आयु ज़्यादा नहीं होती । और जब - जब यह स्थिति किसी भी मनुष्य की गोचर कुंडली में बनती है तब - तब उसे मृत्यु तुल्य कष्ट या फिर उसकी मृत्यु होने की सम्भावनाये बढ़ जाती है । इस सबके के लिखने से मेरे  है कहने का मतलब यह है की , केंद्र में जब कोई शुभ गृह नहीं होगा तो लग्न को ताक़त नहीं मिलेगी । जिससे लग्न बल विहीन हो जायेगा । और लग्न के कमज़ोर होने से और केन्द्रस्त कमज़ोर होने से कष्ट प्राप्त होगा ।




LUCKY  BABA

Om Sai…


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