अपने मूल भाव पर स्वयं की गृह की दृष्टी का प्रभाव
साधारणतः ज्योतिष शास्त्र के जानकार कुंडली देखते वक़्त एक बहुत साधारण सी भूल करते हैं , जो उनकी निगाह में मामूली होती है या फिर गढ़ना योग्य नहीं होती है । लेकिन मेरा मानना यह है कि ज्योतिष शास्त्र के फलादेश में ज़रा - ज़रा सी चूकें परिणामों में आने लगती हैं । शायद मैं ज्योतिष शास्त्र को गणित की तरह देखता हूँ , जैसे कि गणित में एक साधारण सी भूल से उसके परिणाम में फरक आता है, उसी तरह ज्योतिष में भी छोटी सी गणना की भूल, भविष्य के परिणाम में काफी अंतर दे देती है । यहाँ मैं अपनी तरफ से पहले ही माफ़ी मांग रहा हू कि मैं किसी की भावनाओं को या ज्योतिष शास्त्र के ज्ञानियो को दुःख देने लिए या नीचा दिखने के लिए नहीं कह रहा हू । जो बात मैं अब लिख रहा हू वह मनुष्य की कुंडली से है । उसके स्वभाव , उसके कार्य करने की क्षमता, कहा सबसे अधिक होगी , वह दृढ़ प्रतिज्ञ होगा की नहीं होगा , वह स्वाभाविक रूप से किन - किन चीज़ो में , उसकी अपनी क्षमता से कितने प्रतिशत कार्य कर पाएगा … आदी.… आदी। मैं यहाँ गृह किन मूल घरों में बैठे हैं , उनका दृष्टी सम्बन्ध कहाँ - कहाँ है , उसकी महादशा और दशा कौन सी चल रही है ,इस सब पर कोई चर्चा नहीं कर रहा हू ।
एक ज्योतिष का बहुत छोटा सा नियम बताने का प्रयास कर रहा हू जिसका असर ज्योतिष के फलादेश पर बहुत असर डालता है । अपने मूल भाव पर स्वयं की गृह की दृष्टी का प्रभाव - इसका शीर्षक दिया है मैंने ।
मैं अपनी बात दावे से शुरू करता हूँ........
जब कोई भाव या घर कुंडली में अपने स्वामी द्वारा दृष्ट होता है या उसके नरसेंगिक स्वामी की दृष्टी पड़ती है तो उस भाव के परिणाम में एक विशेष प्रकार की वृद्धि हो जाती है । यह दृष्टी बाकी गृह जैसे की : मंगल , शनि या फिर देव ग्रहों की ही क्यूँ ना हो यह उस भाव पर पूर्ण वृद्धि करते हैं । शर्त यह है: कि यह गृह अपने मूल भाव पर कौन सी दृष्टी से और कितनी ताक़त से (कितनी डिग्री का गृह है) देख रहा है या दृष्टी डाल रहा है । परिणाम देखते वक़्त इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि गृह पापी गृह है या देव गृह है । यह वृद्धि तब और अधिक हो जाती है जब दृष्ट भाव पर शुभ गृह के प्रभाव अथवा युति की दृष्टी या पापी ग्रहों के प्रभाव की युति की दृष्टी हो। मैं यहाँ पर एक उदहारण भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की कुंडली से देकर समझाना चाहता हूँ । इस कुंडली में कई विशेषताओं के अलावा मेरा यह विचार भी इनको महान बनाने में मेरे अनुसार काफी प्रमुख भूमिका निभा रहा है ।
मैं जब इस कुंडली को ध्यान से देखता हूँ तो , इनमे दृढ बुद्धि होने का , अपने कार्य को परिणाम तक पहुचाने की वजह, मैं मूल रूप से यह मानता हूँ की , दशम भाव पर अगर आप दृष्टि डालें, जो की कर्म , पिता, कार्य आदि का स्वभाव भाव होता है , तो आप पाएंगे कि मंगल दसवें भाव में अपनी स्वयं की राशि मेष को पूर्ण अष्टम (8 वीं ) दृष्टी से देख रहा है । चौथी दृष्टी (4 थी ) से वह नवीं (9 वीं ) राशि धनु को देख रहा है जो की छटवें (6 वे ) भाव में विराजित है । छटवें (6 वें ) घर पे बृहस्पति और केतू, जिनकी युति स्वाभाविक मित्रता की है , बृहस्पति अपनी स्वयं की राशि में हैं , केतू उनका स्वाभाविक मित्र युति के साथ है । मंगल अपनी चौथी (4 थी ) दृष्टि से अपनी मैत्री पूर्ण दृष्टि इस युति पर डाल रहा है । छटवें (6 वें ) भाव से साधरणतः शत्रु पक्ष , बीमारी (रोग) आदि को देखा जाता है । मंगल गृह को सेनापति के रूप में भी जाना जाता है । मंगल की गुरु और केतु से विशेष मैत्री सम्बन्ध होने से इस दृष्टि से विशेष ताक़त मिली जिससे उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में एवं अपने समकालीन नेताओं को अपने से पीछे छोड़ने में सफलता पाई। मंगल अपनी 7 वीं दृष्टि से गुरु की ही दूसरी राशि मीन (12 वीं ) को सम्पूर्ण मैत्री दृष्टि से देख रहा है । कुंडली में नवे (9 वे ) घर को भाग्य , धर्म , आस्था , आदि का माना जाता है । मंगल का बारवी (12 वीं ) राशि पर सम्पूर्ण मैत्री का दृष्टि सम्बन्ध उनके भाग्य , आस्था एवं धर्म के प्रति रूचि को विशेष रूप से बढ़ा रहा है जिसने इस दृष्टि सम्बन्ध में भी दृढ प्रतिज्ञ होकर स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने में एवं अपने समकालीन नेताओ को पीछे छोड़ कर प्रधान मंत्री बनने में अहम भूमिका निभाई ।
अब मैं आपको मंगल की अष्टम (8) दृष्टी , जिसके बारे में मैंने ऊपर लिखा है , के बारे में बता रहा हूँ। मंगल स्वाभाविक रूप से मेष राशि (प्रथम) एवं वृश्चिक राशि (8, अष्ठम ) का स्वामी है । और पंडित जी की कुंडली में तीसरे भाव (पराक्रम) में बैठ कर अपनी स्वाभाविक अष्टम दृष्टी से मंगल की प्रथम राशी मेष को देख रहा है। कितना अद्भुद दृष्टी सम्बन्ध मंगल का दसवें भाव पर हो रहा है जो की कर्म , पिता , दृढ प्रतिज्ञता आदि का भाव है । इन तीनों दृष्टियों में मंगल अपने मित्र और अपने स्वयं को देख रहा है , विशेष रूप से आठवी दृष्टी से , जो अद्भुद दृष्टी दशम भाव में मेष राशि पर डाल रहा है, देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के व्यक्तित्व को निखारने एवं सफलता दिलाने में एक विशेष भूमिका , मेरे विचार से प्रकट हो रही है ।
तो मेरा यह मानना है की अगर मैत्री, पूर्ण दृष्टि भाव पर पड़े या फिर अपनी स्वयं की राशि पर पड़े तो जातक को अपने समकक्ष साधारण इंसानो में विशेष दर्जा निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
NOTE : यहाँ पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की कुंडली में अगर ध्यान से देखें , दशम भाव को (10) और अधिक बल इसलिए मिल रहा है क्यूंकि दशम भाव को तीन ग्रहों की भी दृष्टि प्राप्त हो रही है: शुक्र, बुध की सीधी सातवी दृष्टि दशम भाव पर पढ़ रही है एवं सबसे पुण्य गृह गुरु की पांचवी दृष्टी दशम भाव पर पढ़ रही है जिससे दशम भाव को विशेष शक्ति मिल रही है ।
LUCKY BABA
Om sai…

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