Tuesday, August 25, 2015

भारत देश के स्वर्ग लोक (गुजरात) में हिंसा 









पिछले कई सालों से गुजरात को हिंदुस्तान का सबसे समृद्ध , सबसे सुखी, सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला , बल्कि मैं सीधे अपने विषय पर आते हुए यह कहता हूँ की , जिस प्रकार स्वर्ग लोक की कल्पना की जाती है उसी प्रकार भारत देश में गुजरात को बाकी राज्यों की तुलना में स्वर्ग लोक की उपाधि से नवाज़ा गया था । आज उस स्वर्ग लोक में एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा अपने हक़ की मांग को लेकर 22 - 23 साल के एक लड़के - हार्दिक पटेल ने धरना देने का प्रयास किया जिसमे समाचार माध्यमो के द्वारा ज्ञात हुआ की 5 से 7 लाख लोग अपने आक्रोश को दिखाने के लिए इस युवा के साथ खड़े हो गए । मुझे यह जातीय विशेष का आंदोलन कतई नहीं दिखाई देता क्यूंकि इतनी बड़ी भीड़, जातीय विशेष के आंदोलन में, मैंने नहीं सुना की कभी आई हो । मुझे तो ऐसा लगता है की, यह गुजरात की जनता का आक्रोश है जो अवसर मिलते ही आंदोलन के रूप में स्वर्ग लोक (गुजरात)  में हिंसक हो उठा ।  यह आंदोलन जो किसी जाती विशेष से उठा है ऐसा ना हो , होली की आग की  तरह बनकर देश के कई हिस्सों में फ़ैल ना जाए । स्वर्ग लोक (गुजरात) के मुखिया देश की समस्याओं से जूझ रहे हैं और गुजरात हिंसा का पहला पायदान आज दिनांक रात्रि 9 बजे तक लांघ चूका है ।         



LUCKY BABA 

Om Sai 

Wednesday, August 19, 2015

भारतीय राजनीति में वित्त मंत्रालय का बढ़ता हुआ दबदबा 




पिछले कुछ वर्षो से मैं यह अनुभव कर रहा हूँ की भारतीय  राजनीति में वित्त मंत्रालय बाकी मंत्रालयों की तुलना में ज़रूरत से ज़्यादा मज़बूत और भारी होता जा रहा है । मेरा केहने का यह मतलब बिलकुल नहीं है की वित्त मंत्रालय पहले बहुत कमज़ोर हुआ करता था, लेकिन जितना मैंने पढ़ा और समझा है , उस हिसाब से मुझे ऐसा लगता है की राजीव गांधी के काल तक गृह मंत्रालय बाकी मंत्रालयों की तुलना में ज़्यादा मज़बूत था । उसके पश्चात रक्षा मंत्रालय और फिर विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय। इसके पश्चात वित्त मंत्रालय का विभाग आता था , लेकिन यह क्रम ऊपर - नीचे भी हो सकता है । लेकिन यह तय है की ग्रह मंत्रालय , रक्षा मंत्रालय , विदेश मंत्रालय के बाद ही वित्त मंत्रालय का क्रम आता था । ग्रह मंत्रालय , विदेश मंत्रालय, आदी के मंत्री , वित्त मंत्रालय के मंत्री से राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से ज़्यादा मज़बूत माने जाते थे । लेकिन , इधर विदित कई वर्षो से, वित्त मंत्रालय बाकी मंत्रालयों को पीछे छोड़ता  हुआ अब नंबर 2 की स्तिथि में आ गया है । पिछले वर्षो के अनुभवों से मैं यह कह सकता हूँ की कई बार प्रधान मंत्री भी वित्त मंत्रालय को अपने पास रखने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए । जहा तक मुझे विदित होता है , यह सिलसिला पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी के कार्यकाल से ज़्यादा सशक्त हुआ । पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी की कोई राजनीतिक चाल थी या मज़बूरी थी , इसके बारे में तो मैं नहीं कह सकता लेकिन, यह अवश्य कहूँगा की उन्होंने उस समय के वित्त मंत्रालय या उनके काल के वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी को बहुत अधिक महत्त्व दिया, जिसको राजनीती में free hand कहा जाता है, अपने सभी प्रतिद्वंदियों को राजनैतिक शक्तियाँ देकर भी मनमोहन सिंह जी के बाद के क्रम में डाल दिया । 


चूँकि मनमोहन सिंह जी अर्थशास्त्री थे, एवं उस समय के प्रधान मंत्री नरसिम्हा राओ जी बहुत वरिष्ठ एवं धुरंदर नेता थे , अर्थशास्त्री होने एवं अपने विषय में पकड़ रखने की वजह से वह कब नंबर 2 की स्तिथि में पहुंच गए , तत्कालीन नेताओ को समझ ही नहीं आया । नरसिम्हा राओ जी की राजनीतिक चाल कब सफल हो गई और उनके राजनितिक प्रतिद्वंदी उनकी चाल में फस कर कब असफल हो गए , यह उनके राजनितिक प्रतिद्वंदी खुद नहीं समझ पाये । इस पूरे खेल को, पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी ने आर्थिक सुधार या उदाहरीकरण का नारा दे दिया। इसके पश्चात जो भी प्रधान मंत्री आये उन्होंने इस प्रयोग को आगे बढ़ाया । जैसे : अडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी एवं अन्य  नेताओं को , यशवंत सिन्हा जी को उनके समकक्ष खड़े कर देना , मनमोहन सिंह जी का पी. चिदंबरम जी को वित्त मंत्रालय देकर मज़बूत कर देना , एवं  तत्कालीन प्रमुख नेता जैसे शिवराज पाटिल , अर्जुन सिंह , प्रणव मुखर्जी  के मंत्रालयों को वित्त मंत्रालय के समकक्ष पीछे धकेल देना । और अब यही प्रयोग , वर्तमान के  प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को करते हुए देख रहा हूँ । नरेंद्र मोदी जी , दो कदम और आगे बढ़कर सामने आये , इन्होने तो हद ही कर दी , इन्होने भाजपा के वरिष्ठ नेताओ को (लाल कृष्णा अडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, यशवंत सिन्हा जी , आदि को) सीधे घर ही बिठा दिया एवं अपने समकालीन राजनितिक प्रतिद्वंदियों को ग्रह मंत्रालय - राजनाथ सिंह , विदेश मंत्रालय - सुषमा स्वराज , रक्षा मंत्रालय - मनोहर पर्रिकर , जैसे सर्वोच्च मंत्रालय देकर, लोकसभा चुनाव में हारे हुए अरुण जेटली को वित्त मंत्रालय देकर वही पी. व्ही नरसिम्हा राओ की स्टाइल में free hand देकर सभी मंत्रालयों से ऊपर कर दिया , यानी नंबर 2 । 


यह राजनितिक सुधार का खेल या फिर अपने प्रतिद्वंदियों को शह और मात देने का नायाब  तरीका कब तक चलेगा , पता नहीं । लेकिन यह निश्चित है की पी. व्ही नरसिम्हा राओ से शुरू हुआ यह खेल अभी तक चल रहा है । राजनितिक गलियारे में इस खेल को (वित्त मंत्री) संकट मोचन के रूप में जाना जाता है । जब सरकार के ऊपर प्रतिद्वंदियों द्वारा संकट खड़ा किया जाता है तब यह वित्त मंत्री महोदय अपना वित्त मंत्रालय भूल कर संकट मोचन का रोल निभाते है । आजकल यह कार्य, भारत देश के वित्त मंत्री, श्री अरुण जेटली बखूबी निभा रहे है। जिन वित्त मंत्रियो के बारे में मैंने लिखा है , इनमे कुछ समानताये है : यह संकट मोचन का कार्य तो करते ही है लेकिन , अपनी उपस्थिति को मज़बूत  बनाये रखने के लिए यह  डीजल , पेट्रोल , गैस के दामो में हंगामा खड़ा करवा देते है , महंगाई एवं भ्रष्टाचार का नारा बुलंद कर देते है एवं खाद्य वस्तुओं के दामो में , भारी उथल - पुथल मचा कर , देश की जनता का ध्यान इन सब पर केंद्रित कर देते है, सरकार को बचने के लिए संकट मोचन का रोल निभाने लगते है।      


भईया इसी को तो राजनीति कहते है - एक तीर से कई शिकार वाली कहावत सार्थक हो गई ना.....


LUCKY BABA

Om Sai....
       

Tuesday, August 18, 2015

दिग्बल योग



जब ग्रहों को दिशा की अनुकूलता प्राप्त होती है, तो उनमें एक विशेष प्रकार के बल की सृष्टि होती है । ग्रह जब बलि होते है , तब मनुष्य को धन ,मान , पदवी सब कुछ देते है ।

  • लग्न में स्थित होने से बुध तथा गुरु को दिग्बल की प्राप्ति होती है ।

  • शुक्र तथा चन्द्र यदि चतुर्थ स्थान में स्थित हो , तो इनको दिग्बल प्राप्त होता है ।

  • शनि यदि कुंडली में सप्तम स्थान में स्थित हो तो , उसे वहाँ  पर दिग्बली माना जाता है ।

  • इसी प्रकार, दशम भाव में (दसवें स्थान ) मंगल एवं सूर्य स्थित हो , तो इनको उस स्थान पर दिग्बली माना जाता है ।

जिस कुंडली में जितने गृह दिग्बली होंगे, उस जातक को उतना ही ज़्यादा दिग्बली माना जाएगा । चार, पांच या इससे ज़्यादा गृह दिग्बली हो जाते है तब , ऐसे जातक का जीवन काफी ऊंचाइयों को छूता है, राज योग या फिर दिग्बल की प्राप्ति होती है ।    

पूर्व दिशा गुरु एवं बुध  के लिए , उत्तर दिशा चन्द्र एवं शुक्र के लिए , पश्चिम दिशा शनि के लिए , एवं दक्षिण दिशा मंगल तथा सूर्य के लिए अति शुभ होती है ।   

कुंडली में , प्रथम , चतुर्थ, सप्तम , दशम , इन्ही दिशाओ को क्रमशः दर्शाते है । दो या तीन गृह यदि दिग्बल से युक्त हो तो, राजवंश में पैदा हुए व्यक्ति को राजा के समान सुख मिलता है । अगर , पाँच या पाँच से अधिक गृह दिग्बल हो कर अगर किसी कुंडली में है , तो वह मनुष्य साधारण कुल में भी उत्पन्न हो कर राजा की पदवी प्राप्त कर लेता है ।    


इस बारे में , मैं उदहारण सहित आगे विस्तृत चर्चा करूँगा......




LUCKY BABA

Om Sai....

Monday, August 17, 2015


पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ,आज आपकी तस्वीर को निहारने का बड़ा मन किया ….. आज आप बहुत याद आए



समझ में नहीं आ रहा , श्री नरेंद्र मोदी जी के बारे में कहा से लिखू और क्या लिखू । मेरी स्थिति गाडी चलाने वाले उस ड्राइवर की तरह है जो की बड़ी मजबूरी में U - TURN भरता है और जिस स्थान (जगह) से चला होता है फिर उसी की तरफ U - TURN लेकर उसी गंतव्य स्थान की तरफ मुड जाता है । मंज़िल पर ना पहुचने का जो दर्द उस ड्राइवर को होता है वह भी एक असहनीय पीड़ा जैसा ही है । आज, श्री नरेंद्र मोदी जी को UAE में मस्जिदो में घुमते हुए देख कर , पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी बहुत याद आए । उन्होंने, अपने प्रधान मंत्रित्व काल में नरेंद्र मोदी जी को (तत्कालीन गुजरात के मुख्य मंत्री ) एक सबक दिया था , और वह जाती वाद, समाज ,धर्म से उठ कर था, और वह था बड़े ही कड़े शब्दों में : अपने राज धर्म का निर्वाहन करो । तत्कालीन भाजपाई - विश्व  हिन्दू परिषद नेताओं ने आपके दिए हुए इस मन्त्र का भरपूर मजाक उड़ाया था या,  शालीनता से कहु तो गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन, धीरे - धीरे जिस प्रकार महापुरुषों की कही हुई बातें धीरे - धीरे समझ में आती है , वही स्थिति कमोबेश आज कल भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपाई नेताओ में भी दिखाई दे रही है । आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी : कई देशो का लगातार दौरा करते है , जैसे की : America , Germany , Japan , China , लेकिन , अमेरिका , जर्मनी एवं फ्रांस जैसे देशो में ये वहां के धार्मिक स्थलों में नहीं गए। नेपाल गए और पशुपति नाथ जी के दर्शन किये , और जापान में quetta गए और वह भी इस लिए की हिन्दुओ के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक, बनारस को quetta बना देने के लिए ।    

भारत देश में जब प्रजातंत्र पर्व की सबसे मुख्य पूजा "मतदान " का समय था , उस समय तत्कालीन गुजरात के मुख्य मंत्री एवं प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी जी ने हिन्दू भावनाओ को उत्तेजित करने के लिए, या अपने पक्ष में करने के लिए, या अपनी आस्था दिखाने के लिए सार्वजनिक रूप से, गोल टोपी लगाने से मना कर दिया था और जिसे समाचार माध्यमो से बहुत प्रचारित भी किया गया था । जिससे वह बहुसंख्यक समुदाय में  सर्वमान्य नेता बनकर उभरे थे । आज , श्री नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधान मंत्री हो गए है और UAE दौरे पर है , इस UAE दौरे में मस्जिद जाना अनिवार्य है , प्रसन्नचित मुद्रा में मस्जिद का भ्रमण कर रहे है एवं selfie खींच रहे है । बड़े बुजुर्गो की कहावत - गुड़ खाए और गुलगुले से परहेज़ - सत्य साबित हो गई । प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ,  ऐसी क्या मजबूरी थी की एक राष्ट्रीय दौरे पर हो कर , कट्टर हिन्दू वादी नेता हो कर, धर्म विशेष का नेता हो कर , राज धर्म निभा रहे है ?

अटल जी , आज आप बहुत याद आए.....अटल जी, आज आपका यह शब्द "राज धर्म " क्या होता है यह समझ में आ गया । में, उस U - TURN वाले ड्राइवर को समझाने का प्रयास अवश्य करूँगा की , मंजिल पर पहुचना ज्यादा ज़रूरी होता है , ना की गलत दिशा पर आगे बढना। अभी देखिये , भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी , मस्जिद में भ्रमण कर के, मुस्कुराते हुए selfie खीच कर , अभी और क्या - क्या राज धर्म दिखाएंगे ।  


LUCKY BABA

Om Sai ....

Monday, August 10, 2015

द्वादश शुक्र योग (बाहरवाँ भाव)

यदि  शुक्र द्वादश स्थान (12 वे घर) में स्थित हो तो , धन एवं स्त्री (महिला) दोनों ही के लिए बहुत शुभ हो जाता है, और इस योग को द्वादश शुक्र योग कहा गया है । शुक्र को भोगात्मक गृह कहा जाता है , या यह एक भोगात्मक गृह है। द्वादश भाव को भोग स्थान माना गया है , 12 राशि मीन में शुक्र को उच्च का माना जाता है । शायद यह वजह भी होगी की शुक्र को द्वादश भाव में कारक  गृह माना गया है । इस वजह से भी शुक्र की द्वादश भाव में स्थिति बहुत अनुकूल बनती है । अब चूँकि शुक्र को स्त्री का भी कारक गृह मानते है इस वजह से स्त्री का दीर्घायु होना युक्ति कारक माना जाता है और शुक्र को भोग की प्राप्ति का गृह माना गया है , इस वजह से द्वादश (12 वे) भाव में शुक्र को द्वादश शुक्र योग कहते हैं ।

 द्वादश भाव में साधारणतः शुक्र के होने से पुरुष या स्त्री सभी प्रकार के संपूर्ण भोगात्मक सुख भोगने की आकांक्षा रखते है एवं प्रयत्न करते है जिसे वह साधारणतः प्राप्त कर लेते है । यह योग तब और फलित हो जाता है जब लग्न मेष हो । मैंने कई कुंडलियो में शुक्र को अपनी राशि से 12 वा होने पर बहुत फलदाई (असरदार) होता हुआ देखा है । 


वृष (२ नंबर ) एवं तुला (7 नंबर ) राशि:  


वृष राशि एवं तुला राशि जो शुक्र की मूल राशियाँ  है, इनसे भी शुक्र कुंडली में अगर 12 वां है तो , द्वादश शुक्र योग का फल विशेष रूप से प्राप्त होता है । इसी प्रकार से , अगर गुरु (बृहस्पति) से शुक्र 12 वां हो जाता है या द्वादश भाव हो जाता है तब यह विशेष शुभत्व प्राप्त करता है । 



इस योग के उदहारण के लिए ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की कुंडली में यह योग स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है , जिन्होंने 40 वर्ष तक राज्य किया । इनकी कुंडली में, तीनो लग्नो में  शुक्र अपने से 12 वां है , एवं उनकी मूल कुंडली में भी शुक्र 12 वे घर में बैठा है, जहा वह 12 वें घर में होने की वजह से बली (मजबूत) हो गया है, अपनी राशि (वृष , 2  नंबर ) से भी 12 वां हो गया है ।  


  • तीन लग्नो का तात्पर्य यह है की , कुंडली में मूल लग्न को । 
  • महारानी विक्टोरिया की कुंडली वृष लग्न की है।
  • राशि लग्न जिसको चन्द्र से देखते है (moon sign ) वह भी वृष में ही  बैठा है , यानी महारानी विक्टोरिया की राशि वृष हुई। 
  • सूर्य लग्न (sun sign ): महारानी विक्टोरिया की कुंडली में , सूर्य लग्न में बैठा है , यानी वृष राशि में ही बैठा हुआ है । 


तो तीनो ही लगन वृष राशि की हो गई । और शुक्र , महारानी विक्टोरिया की कुंडली में मेष राशि का होकर द्वादश भाव (12 वें घर )में बैठा है। इससे यह अति बलशाली हो गया है ।   मेष राशि पर बैठने से , अपनी सीधी  7 वीं  दृष्टी से तुला राशि (7 वीं ) को भी देख रहा है । इस वजह से महारानी विक्टोरिया  दीर्घायु एवं बहुत लम्बे समय तक ब्रिटेन  की  महारानी बनकर राज्य किया ।     


Note : अगर किसी इंसान की कुंडली में बहुत अच्छे फल प्राप्त न हो रहे हो और उसका जीवन सुखो से  नहीं गुजर रहा हो या उसके पास सुख के साधन ना हो , ज्योतिषाचार्यो को दिखने के बाद दिमाग भ्रमित होता हो या शंकित रहता हो तो उस इंसान से में निवेदन करूँगा की वह अपने शुक्र की गणना मेरे लिखे अनुसार अवश्य करें । उसका मानसिक भ्रम या शंका दूर हो जायेगी ।

 

Lucky Baba 

Om Sai....  

    

Friday, August 7, 2015





शनि का वृश्चिक राशि में मार्गी होना 




शनि वृश्चिक राशि में 15 मार्च 2015 से दिन के 8: 31 मिनिट से वक्री थे । हिंदी पंचांगों में वक्री होने की तारीख अलग - अलग है । साधारणतः सारे पंचांगों की तारीख निकालु तो 10 मार्च से 18 मार्च के बीच शनि वक्री हुए ।और दिनांक 2 अगस्त 2015 की रात 1:58 से मार्गी हो गए हैं ।सभी पंचांगों की गणनाएं देखे तो 27 जुलाई से 6 अगस्त के बीच में करीब - करीब सभी पंचांगों में शनि मार्गी हो गए हैं । शनि चूँकि वृश्चिक राशि में विराजित हैं , वृश्चिक एवं मेष राशि दोनों ही मंगल की राशि हैं । मंगल की राशि में शनि को , खासकर मेष में नीच का माना जाता है । वृश्चिक राशि में भी शनि की उग्रता या उनका मूल स्वभाव बहुत उग्र हो जाता है । शनि को मूल रूप से शरीर में पैरों में माना जाता है । मंगल अग्नि का कारक होता है , इस वजह से शनि और मंगल से सम्बंधित वस्तुएं , इंसान , प्रकृति , राजनीति एवं धार्मिक स्थितियों में भारी उथल - पुथल होने के सम्भावना है । जैसा मैंने पूर्व में भी कहा था की , 3 तारीख़ के पश्चात वाहन  दुर्घटनाएं , जीवन के प्रति संघर्ष काफी बढ़ जायेगा । कहने का तात्पर्य यह है की मंगल से सम्बंधित ज़मीन एवं ज़मीन से नीचे की वस्तुओं के मूल्यों में भारी उठा - पठक होगी । उदाहरण : सोना , चाँदी , लोहा, पेट्रोल । इसी प्रकार, जो,जमीन के नीचे की  खाने - पीने की सामग्री होती है उनके  मूल्यों  में भी भारी उठा - पठक होगी ।   

शनि को लोहा, चक्का (wheel ), कर्म के न्याय का देव कहा गया है, इस वजह से दुर्घटनाये खासकर : ट्रैन , बस , प्राकृतिक विपदायें , २ तरीक से लगातार बढ़ेंगी । खासकर 15 सितंबर तक यह स्तिथि ज्यादा उग्र रहेगी , क्यूंकि , 15  सितंबर तक मंगल कर्क राशि में रहेंगे जहा पर मंगल को नीच का या खराब माना जाता है। इन स्तिथियों की वजह से प्राकृतिक विपदायें वाहन दुर्घटनाये बहुत अधिक मात्रा में बढ़ी रहेंगी । मंदी का दौर एवं दुर्घटनाये जो 15 मार्च से 27 जुलाई तक जो थोड़ा कमज़ोर पड़ा था या वह अब 27 जुलाई से फिर उग्र हो जायेगा । राजनितिक अस्थिरता काफी तेज़ी से आगे  बढ़ेगी । धार्मिक उन्माद उग्र रूप धारण करेगा । शनि के वृश्चिक राशि में रहते - रहते लगातार जातीय दंगे होने की सम्भावनाये है ।



सूर्य दिनांक 17 अगस्त की रात से सिंह राशि में पहुंच जाएंगे, जहा वह मंगल से अलग हो जायेंगे । कहने का तात्पर्य यह है की सूर्य ग्रहों के राजा है , और आज की तरीक में राष्ट्र अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष सरकार के मुखिया होते है । जिन - जिन मुखियाओं के सूर्य कमज़ोर है या शत्रु ग्रहो की दृष्टी में आते हैं उन्हें विशेष रूप से सत्ता संघर्ष करना पड़ेगा । राजनितिक, सामाजिक एवं आर्थिक  उथल - पुथल , प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्टार पर ज़्यादा रहेगी। यह स्तिथि 4 सितम्बर 2015 तक उग्र रूप धारण किये रहेगी ।     



LUCKY BABA 

Om Sai…   









  

Thursday, August 6, 2015

केमन्द्रम योग 


केमन्द्रम योग को अगर किसी कुंडली में पाया जाता है तो साधारणतः ऐसे मनुष्य को अपने किये हुए कृत्यों से बहुत परेशानी उठानी पड़ती है । कई बार उसके जीवन में उसकी ज़रूरत के हिसाब से उसके पास जो चीज़े होती है वह निर्धनता के करीब ले जाती है , जीवन में बहुत उतार - चढ़ाव आते हैं : मानसिक रूप से, सामाजिक रूप से और खासकर आर्थिक रूप से । इस योग का मुख्य कारक चन्द्रमा होता  है। चन्द्रमा से सम्बंधित सारी तकलीफें तो आती ही है जीवन में , जैसे की मानसिक रूप से पीड़ित होना ,या इस पीड़ा से गुज़रना। 


केमन्द्रम होता क्या है :


1. किसी की कुंडली में चन्द्रमा से दूसरा घर (द्वितीय भाव) एवं बारवां घर (द्वादश भाव) में अगर कोई गृह न हो तो केमन्द्रम नाम का दरिद्र पूर्ण योग उस कुंडली में बन जाता है । 


 2. जब चन्द्र किसी गृह से युत ना हो और ना उससे अगले तथा पिछले केंद्र में कोई गृह स्थित हो तब केमन्द्रम नाम का दरिद्रता योग बनता है । 


चन्द्र जहाँ स्थित होता है उसको चन्द्र लग्न कहते हैं । या जिन देशो में चन्द्र से राशि निकाली जाती है वहाँ पर चन्द्र जिस राशि पर बैठा होता है उस जातक को उस राशि के नाम से जाना जाता है (moon  sign ) और कई देशो में राशि सूर्य से देखी जाती है (Sun Sign) । भारत में साधारणतः ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र राशि देखी (moon sign) जाती है।  जब भारत में राशि कुंडली बनाई जाती है तो चन्द्र लग्न होता है जिसे चन्द्र लग्न कहते है । धन प्राप्ति , मानसिक स्थिति , एवं व्यवहार में चन्द्र लग्न का बड़ा महत्त्व होता है ।इसीलिए साधारण इंसान अपनी राशि से अपने दिनों का एवं भविष्य का आंकलन कर लेता है।


चन्द्र के विषय में इस सिद्धांत को स्वीकार लेना चाहिए की अगर चन्द्र पर किसी भी गृह का प्रभाव ना हो तो उसे निर्बल या कमज़ोर चन्द्र मानना चाहिए । निर्बल चन्द्र का अर्थ चन्द्र लग्न का कमज़ोर होना या फिर राशि का कमज़ोर होना माना जायेगा। इसका तात्पर्य यह है कि जिस मनुष्य की कुंडली में यह स्थिति होगी वह धन, स्वास्थ्य यश , बल आदि से वर्जित होगा या कमज़ोर होगा।  में यहाँ यह भी थोड़ा सा समझाएं चाहता हूँ कि कैसे चन्द्र पर कोई प्रभाव नहीं होगा या नहीं माना जाएगा ।  पहला : एक स्थिति तो यह है की चन्द्र के द्वादश स्थान में कोई गृह ना हो । दूसरी स्थिति यह है : कि चन्द्र ना तो किसी गृह से युक्त हो अथवा उसपे किसी गृह की दृष्टी पड़ती हो, ना ही इसके केंद्र में कोई गृह स्थित हो । कहने का मतलब यह है कि चन्द्र पूर्ण रूप से निर्बल हो ।  तब सम्पूर्ण केमन्द्रम योग लगेगा ।       

लेकिन यहाँ पर एक चीज़ का ध्यान रखना चाहिए की लग्नकुंडली  में अगर चन्द्र केंद्र में है तो केमन्द्रम योग की तीव्रता में कमी आ जायेगी । इसकी तीव्रता में कमी और भी कई वजहों से आयगी जिसके बारे में मैं बाद में लिखूंगा । 


उपरोक्त कुंडली जो मैंने बताई है इस मनुष्य को केमन्द्रम योग लगा हुआ है । इनका  विवाह नहीं हो पाया।इनके जीवन में कई महिलाओं से सम्बन्ध होने के बावजूद भी विवाह नहीं हुआ ।धीरे - धीरे इनका करोड़ों का व्यापार समाप्त हो गया ।भाई - बंधुओं से इनकी नहीं निभी । अंत में बीमारी से ग्रसित होकर साधारण जीवन गुज़ार रहे है ।     


NOTE : इस योग को में आगे और विस्तृत तरीके से समझाऊंगा । 

LUCKY BABA 

Om sai…