Wednesday, August 19, 2015

भारतीय राजनीति में वित्त मंत्रालय का बढ़ता हुआ दबदबा 




पिछले कुछ वर्षो से मैं यह अनुभव कर रहा हूँ की भारतीय  राजनीति में वित्त मंत्रालय बाकी मंत्रालयों की तुलना में ज़रूरत से ज़्यादा मज़बूत और भारी होता जा रहा है । मेरा केहने का यह मतलब बिलकुल नहीं है की वित्त मंत्रालय पहले बहुत कमज़ोर हुआ करता था, लेकिन जितना मैंने पढ़ा और समझा है , उस हिसाब से मुझे ऐसा लगता है की राजीव गांधी के काल तक गृह मंत्रालय बाकी मंत्रालयों की तुलना में ज़्यादा मज़बूत था । उसके पश्चात रक्षा मंत्रालय और फिर विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय। इसके पश्चात वित्त मंत्रालय का विभाग आता था , लेकिन यह क्रम ऊपर - नीचे भी हो सकता है । लेकिन यह तय है की ग्रह मंत्रालय , रक्षा मंत्रालय , विदेश मंत्रालय के बाद ही वित्त मंत्रालय का क्रम आता था । ग्रह मंत्रालय , विदेश मंत्रालय, आदी के मंत्री , वित्त मंत्रालय के मंत्री से राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से ज़्यादा मज़बूत माने जाते थे । लेकिन , इधर विदित कई वर्षो से, वित्त मंत्रालय बाकी मंत्रालयों को पीछे छोड़ता  हुआ अब नंबर 2 की स्तिथि में आ गया है । पिछले वर्षो के अनुभवों से मैं यह कह सकता हूँ की कई बार प्रधान मंत्री भी वित्त मंत्रालय को अपने पास रखने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए । जहा तक मुझे विदित होता है , यह सिलसिला पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी के कार्यकाल से ज़्यादा सशक्त हुआ । पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी की कोई राजनीतिक चाल थी या मज़बूरी थी , इसके बारे में तो मैं नहीं कह सकता लेकिन, यह अवश्य कहूँगा की उन्होंने उस समय के वित्त मंत्रालय या उनके काल के वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी को बहुत अधिक महत्त्व दिया, जिसको राजनीती में free hand कहा जाता है, अपने सभी प्रतिद्वंदियों को राजनैतिक शक्तियाँ देकर भी मनमोहन सिंह जी के बाद के क्रम में डाल दिया । 


चूँकि मनमोहन सिंह जी अर्थशास्त्री थे, एवं उस समय के प्रधान मंत्री नरसिम्हा राओ जी बहुत वरिष्ठ एवं धुरंदर नेता थे , अर्थशास्त्री होने एवं अपने विषय में पकड़ रखने की वजह से वह कब नंबर 2 की स्तिथि में पहुंच गए , तत्कालीन नेताओ को समझ ही नहीं आया । नरसिम्हा राओ जी की राजनीतिक चाल कब सफल हो गई और उनके राजनितिक प्रतिद्वंदी उनकी चाल में फस कर कब असफल हो गए , यह उनके राजनितिक प्रतिद्वंदी खुद नहीं समझ पाये । इस पूरे खेल को, पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी ने आर्थिक सुधार या उदाहरीकरण का नारा दे दिया। इसके पश्चात जो भी प्रधान मंत्री आये उन्होंने इस प्रयोग को आगे बढ़ाया । जैसे : अडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी एवं अन्य  नेताओं को , यशवंत सिन्हा जी को उनके समकक्ष खड़े कर देना , मनमोहन सिंह जी का पी. चिदंबरम जी को वित्त मंत्रालय देकर मज़बूत कर देना , एवं  तत्कालीन प्रमुख नेता जैसे शिवराज पाटिल , अर्जुन सिंह , प्रणव मुखर्जी  के मंत्रालयों को वित्त मंत्रालय के समकक्ष पीछे धकेल देना । और अब यही प्रयोग , वर्तमान के  प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को करते हुए देख रहा हूँ । नरेंद्र मोदी जी , दो कदम और आगे बढ़कर सामने आये , इन्होने तो हद ही कर दी , इन्होने भाजपा के वरिष्ठ नेताओ को (लाल कृष्णा अडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, यशवंत सिन्हा जी , आदि को) सीधे घर ही बिठा दिया एवं अपने समकालीन राजनितिक प्रतिद्वंदियों को ग्रह मंत्रालय - राजनाथ सिंह , विदेश मंत्रालय - सुषमा स्वराज , रक्षा मंत्रालय - मनोहर पर्रिकर , जैसे सर्वोच्च मंत्रालय देकर, लोकसभा चुनाव में हारे हुए अरुण जेटली को वित्त मंत्रालय देकर वही पी. व्ही नरसिम्हा राओ की स्टाइल में free hand देकर सभी मंत्रालयों से ऊपर कर दिया , यानी नंबर 2 । 


यह राजनितिक सुधार का खेल या फिर अपने प्रतिद्वंदियों को शह और मात देने का नायाब  तरीका कब तक चलेगा , पता नहीं । लेकिन यह निश्चित है की पी. व्ही नरसिम्हा राओ से शुरू हुआ यह खेल अभी तक चल रहा है । राजनितिक गलियारे में इस खेल को (वित्त मंत्री) संकट मोचन के रूप में जाना जाता है । जब सरकार के ऊपर प्रतिद्वंदियों द्वारा संकट खड़ा किया जाता है तब यह वित्त मंत्री महोदय अपना वित्त मंत्रालय भूल कर संकट मोचन का रोल निभाते है । आजकल यह कार्य, भारत देश के वित्त मंत्री, श्री अरुण जेटली बखूबी निभा रहे है। जिन वित्त मंत्रियो के बारे में मैंने लिखा है , इनमे कुछ समानताये है : यह संकट मोचन का कार्य तो करते ही है लेकिन , अपनी उपस्थिति को मज़बूत  बनाये रखने के लिए यह  डीजल , पेट्रोल , गैस के दामो में हंगामा खड़ा करवा देते है , महंगाई एवं भ्रष्टाचार का नारा बुलंद कर देते है एवं खाद्य वस्तुओं के दामो में , भारी उथल - पुथल मचा कर , देश की जनता का ध्यान इन सब पर केंद्रित कर देते है, सरकार को बचने के लिए संकट मोचन का रोल निभाने लगते है।      


भईया इसी को तो राजनीति कहते है - एक तीर से कई शिकार वाली कहावत सार्थक हो गई ना.....


LUCKY BABA

Om Sai....
       

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