Tuesday, August 18, 2015

दिग्बल योग



जब ग्रहों को दिशा की अनुकूलता प्राप्त होती है, तो उनमें एक विशेष प्रकार के बल की सृष्टि होती है । ग्रह जब बलि होते है , तब मनुष्य को धन ,मान , पदवी सब कुछ देते है ।

  • लग्न में स्थित होने से बुध तथा गुरु को दिग्बल की प्राप्ति होती है ।

  • शुक्र तथा चन्द्र यदि चतुर्थ स्थान में स्थित हो , तो इनको दिग्बल प्राप्त होता है ।

  • शनि यदि कुंडली में सप्तम स्थान में स्थित हो तो , उसे वहाँ  पर दिग्बली माना जाता है ।

  • इसी प्रकार, दशम भाव में (दसवें स्थान ) मंगल एवं सूर्य स्थित हो , तो इनको उस स्थान पर दिग्बली माना जाता है ।

जिस कुंडली में जितने गृह दिग्बली होंगे, उस जातक को उतना ही ज़्यादा दिग्बली माना जाएगा । चार, पांच या इससे ज़्यादा गृह दिग्बली हो जाते है तब , ऐसे जातक का जीवन काफी ऊंचाइयों को छूता है, राज योग या फिर दिग्बल की प्राप्ति होती है ।    

पूर्व दिशा गुरु एवं बुध  के लिए , उत्तर दिशा चन्द्र एवं शुक्र के लिए , पश्चिम दिशा शनि के लिए , एवं दक्षिण दिशा मंगल तथा सूर्य के लिए अति शुभ होती है ।   

कुंडली में , प्रथम , चतुर्थ, सप्तम , दशम , इन्ही दिशाओ को क्रमशः दर्शाते है । दो या तीन गृह यदि दिग्बल से युक्त हो तो, राजवंश में पैदा हुए व्यक्ति को राजा के समान सुख मिलता है । अगर , पाँच या पाँच से अधिक गृह दिग्बल हो कर अगर किसी कुंडली में है , तो वह मनुष्य साधारण कुल में भी उत्पन्न हो कर राजा की पदवी प्राप्त कर लेता है ।    


इस बारे में , मैं उदहारण सहित आगे विस्तृत चर्चा करूँगा......




LUCKY BABA

Om Sai....

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