Friday, September 4, 2015






Lucky Baba



अर्थशास्त्र  का बदलता रूप



इस समय भारतीय अर्थशास्त्र (economic condition) अपने असमंजस की स्तिथि से गुज़र रहा है । पिछले कुछ महीनों से इस सब का मापदंड माने जाने वाले कुछ मुख्य तत्व हैं जो भारतीय जनमानस से अपना सीधा सम्बन्ध बनाते हैं, उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं :


1 . खाद्य पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी : पेट्रोलियम पदार्थो के दामों में ऊँच - नीँच होना 


2. धातू (Metal): मेटल पदार्थो में मूल्यों का ऊपर - नीचे जाना  

3. शेयर बाजार : शेयर बाजार का उतार - चढ़ाव से भरा होना 

4. भारतीय रुपये का अवमूल्यन : कुछ हद्द तक भारतीय रुपए में अस्थिरता आ जाना ।


भारतीय जनमानस मोटे तौर पर अर्थशास्त्र को इन्ही तत्वों पर आधारित मानता है । वह अर्थशास्त्र के छोटे - मोटे या बहुत भारी गणितों में नहीं उलझता और इधर कुछ दिनों से भारतीय राजनीति भी इसके बहुत करीब आ गई है। मैं तो यहाँ तक कहूँगा की भारतीय राजनीति ने अपना स्वरुप ही बदल लिया है । जो पहले कभी शिक्षा, सामाजिक ताना - बाना, सद्भाव , आपसी प्रेम , आपस में लोगो के सुख - दुःख में सम्मलित होना, भाई - चारा, एवं परिवार के लालन - पालन पर आधारित थी, कहने का तात्पर्य यह है  -  समाजवाद पर आधारित राजनीति अब अर्थशास्त्र एवं जातीय - धार्मिक उन्माद पर आ कर टिक गई है । पिछले कुछ वर्षो से विकास का मुद्दा नाम का एक शब्द देकर इन सभी मूल व्यवस्थाओ से राजनीतिज्ञों ने अपने - अपने तरीके से सत्ता शील होने के लिए हथ कंडे अपनाना शुरू कर दिए हैं । जिसके तहत वह अर्थशास्त्र के सबसे मुख्य नियम - मंदी एवं तेज़ी के नियम को भूल जाते हैं।  

भारतीय अर्थशास्त्र पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों , विशेष रूप से अमेरिका के अर्थशास्त्र से प्रभावित होता है । अमेरिकन अर्थशास्त्र जितना मुझे समझ आता है, तेज़ी और मंदी को समझता है। वह, रबर (rubber) की खिचाव (elasticity) पर आधारित है । मैंने पूर्व के वर्षों में अमेरिकी अर्थशास्त्र से जो समझा है वह यह है की , महंगाई (मूल्य वृद्धि) को एक निश्चित दायरे से आगे नहीं जाने देते हैं । जैसे ही यह दायरा उठता है , वह अपने प्रयास से इस पर अंकुश लगाना शुरू कर देते हैं, जिसे विश्व का अर्थशास्त्र मंदी कहता है । इसीलिए आप अभी भी वहाँ देखें तो, महीने का मेहनताना पिछले कई वर्षो से एक सा है , या उसमे ज़्यादा उतार - चढ़ाव नहीं आया । वह अपने डॉलर (रूपया) एवं मंदी पर हमेशा चौकन्ने रहते हैं । अमेरिका का मेहनताना अभी भी 8 - 10 हज़ार डॉलर, को बहुत अच्छा माना जाता है । लेकिन, भारतीय अर्थव्यवस्था - अमेरिका की इस मूल सिद्धांत को भूल जाती है । में तो यहाँ तक कहूँगा की कमोबेश यही स्तिथि सम्पूर्ण एशियाई देशों में है । 

एशियाई अर्थव्यवस्था और मूल रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी को ही सम्पन्न आर्थिक व्यवस्था समझती है।और  जब भी तेज़ी पर अर्थशास्त्र का नियम काम करना शुरू करता है - यानी की, तेज़ी के बाद मंदी , घबराहट के दौर से गुज़रने लगती है । भारतीय अर्थशास्त्रियों ने इस घबराहट या फिर यूँ कहुँ की उतार - चढ़ाव के कुछ नाम दिए है , जैसे की - GDP growth का रुक जाना या नीचे जाना , विकास के कार्यो में मंदी आना या स्थिर हो जाना, रुपये के मूल्यों पर ज़रूरत से ज़्यादा अवमूल्यन हो जाना , आदि - आदि ।               


इसी दौर से इस समय भारतीय अर्थशास्त्र या अर्थव्यवस्था गुज़र रही है जिससे भारतीय अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ अपने आप को असहाय एवं लाचार दिखाने का प्रयास करने लग गए । वित्त मंत्री अपनी जवाब देहि भूल कर RBI के गवर्नर को टकटकी बाँध कर देखने लगे है । अच्छे - बुरे का दोष वह अपनी जवाब देहि भूल कर RBI गवर्नर के ऊपर थोप देते हैं । जान मानस , घबराहट के दौर से अपने आप को  सँभालने में पस्त हो जाता है । कभी वह शेयर बाजार में अपनी , पसीने की कमाई लूटा बैठता है , कभी घर में रखे गहनों के अवमूल्यन से गरीब हो जाता है , कभी प्रॉपर्टी के गिरते हुए रेटों से अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है - कहने का तात्पर्य यह है की सरकार को भारतीय नागरिको से जब जो चाहिए होता है , राष्ट्र प्रेम का नारा देकर , राष्ट्र के विकास की बात कह कर , राष्ट्रीयता पर आधारित कोई भी जुमला बोल कर, उसे बेबस और लाचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। और जब देने की बारी आती है तो अपने टैक्स रुपी हथियार लगा कर उसे फिर से लूटना शुरू कर देती है । 

सरकार इस सिद्धांत को मानने को तैयार ही नहीं है की तेज़ी और मंदी दोनों जगह अगर सामान रूप से नहीं चले तो विश्व , फिर से विश्व युद्ध की तरफ बढ़ जायेगा । बस फर्क यह होगा की , यह विश्व युद्ध अर्थव्यवस्था पर आधारित होगा , जैसे की - भुखमरी का आ जाना , मूल्यों का ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ना या घटना , राष्ट्रों का आतंरिक युद्ध में फ़स जाना आदि ।     




Lucky Baba

Om sai....
     

   


Wednesday, September 2, 2015

American Stock Market 

अमेरिकन शेयर बाजार पर मंदी आने के तीन मुख्य कारक 




पिछले सप्ताह के उन्माद और इस आशा से की अमेरिका में labor day (Monday, September 7 , 2015) तक की समयावधि या निर्धारित समय में अमेरिकन मार्किट की स्तिथि में सुधार आ जायेगा , यह लाज़मी है । इन सब तथ्यों या अनुमानों के अलावा एक भारी समस्या यह भी है की अमेरिकी मार्किट को बहुत सी अन्य बातें प्रभावित कर रही है । केवल अमेरिकी मार्किट ही नहीं बल्कि ग्लोबल इक्विटी (Global Equity ) को भी यही बातें प्रभावित कर रही है। इसके चलते यह कहना की अभी मार्किट में सुधार की उम्मीद है -   कुछ उचित नहीं लग रहा । अमेरिकन शेयर बाजार में आज की तारिक़ में तीन प्रमुख बाहरी प्रभाविक कारक है जो की stock prices पर इस सप्ताह अधिक व्यवधान पैदा करने की क्षमता रखते है। 


OIL : तेल बाजार के निवेशक तेल के दामो में आई अस्थिरता से परिचित है। WTI के लिए समर्थन स्तर का $42 से $40 के नीचे जाना अपेक्षित एवं यथायोग्य लगा तो था मगर उसी का bounce back होना या उछलना सभी निवेशकों को भौचक्का कर गया था ।इस विस्तृत पलटाव का कारण कुछ अन्य छोटी बड़ी बातों से निकला जा सकता है , लेकिन , इस बात को हमेशा आधार बना कर अनुमान लगाना चाहिए की Saudi देश की सेना का  यमन देश में जाना : यह प्रमुख कारणों में से एक है जिसने वैश्विक स्तर  पर तेल के दामो को प्रभावित किया या कर रहा है । Middle East हमेशा से अस्थिर रहा है और आने वाले समय में भारी अस्थिरता का सामना करेगा । व्यापारीयों  का भारी घबराहट एवं बाज़ार  की अस्थिरता : इन दोनों बातों ने तेल व्यापार को और भी अस्थिर कर दिया है , जिसके फलस्वरूप यह माना जा सकता है की Stock Market पर भी इसका भारी असर पड़ेगा । शेयर बाजार की तेल बज़ार पर जो प्रतिक्रिया है वह फिलहाल काफी अस्पष्ट है , पर तेल बाज़ार में अगली गिरावट निश्चित रूप से Stock Market को नीचे धकेल देगी।  


JOBS: आमतौर पर बाहरी प्रभावों की अनुपस्थिति  के चलते  U.S. Bureau of Labor Statictics, के अनुसार  अमेरिका का Job Market , Bonds एवं Equity Market में सामान्य रहा । फिलहाल U.S Bureau of Labor की रिपोर्ट शुक्रवार को आएगी। Private और साप्ताहिक jobsless दावों की रिपोर्ट बुधवार एवं गुरुवार को आना संभावित है । हालाँकि यह हफ्ता एक बार फिर कुछ अलग रहेगा । व्यापारियों और विश्लेषकों का ध्यान फिलहाल किन्ही भी आंकड़ों या फिर उनके द्वारा स्वयं बनाए हुए आंकड़ों पर (आर्थिक हालातों पर )केंद्रित करने की बजाये FED Policy द्वारा प्रकाशित आंकड़ों पर केंद्रित करता है । यह बात पूर्ण रूप से व्यक्तिपरक या subjective लगती है । अमेरिकन Job मार्किट से सम्बंधित किसी भी तरह के आंकड़े फलतः इस हफ्ते से बाजार के उतार - चढ़ाव और Bulls एंड Bears में एक नए सिरे से चिंगारी लगा सकते है । 


China: पिछले हफ्ते के बीते कुछ दिन  U. S  Stock Market को यह संकेत देते हुए नज़र आ रहे है की China की सामान्य से भी कम की वृद्धि सम्भवतः वैश्विक मंदी (Global Meltdown) का कारण बन सकती है। यह ध्यान देने योग्य बात है की , अमेरिकन  बाजार (Domestic Market) एशिया एवं चीन के Stock Market के हर पल की खबर एवं घटनाओं से लगातार जानकारी ले रहा है।



Lucky Baba

Om Sai…











Tuesday, August 25, 2015

भारत देश के स्वर्ग लोक (गुजरात) में हिंसा 









पिछले कई सालों से गुजरात को हिंदुस्तान का सबसे समृद्ध , सबसे सुखी, सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाला , बल्कि मैं सीधे अपने विषय पर आते हुए यह कहता हूँ की , जिस प्रकार स्वर्ग लोक की कल्पना की जाती है उसी प्रकार भारत देश में गुजरात को बाकी राज्यों की तुलना में स्वर्ग लोक की उपाधि से नवाज़ा गया था । आज उस स्वर्ग लोक में एक विशेष समुदाय के लोगों द्वारा अपने हक़ की मांग को लेकर 22 - 23 साल के एक लड़के - हार्दिक पटेल ने धरना देने का प्रयास किया जिसमे समाचार माध्यमो के द्वारा ज्ञात हुआ की 5 से 7 लाख लोग अपने आक्रोश को दिखाने के लिए इस युवा के साथ खड़े हो गए । मुझे यह जातीय विशेष का आंदोलन कतई नहीं दिखाई देता क्यूंकि इतनी बड़ी भीड़, जातीय विशेष के आंदोलन में, मैंने नहीं सुना की कभी आई हो । मुझे तो ऐसा लगता है की, यह गुजरात की जनता का आक्रोश है जो अवसर मिलते ही आंदोलन के रूप में स्वर्ग लोक (गुजरात)  में हिंसक हो उठा ।  यह आंदोलन जो किसी जाती विशेष से उठा है ऐसा ना हो , होली की आग की  तरह बनकर देश के कई हिस्सों में फ़ैल ना जाए । स्वर्ग लोक (गुजरात) के मुखिया देश की समस्याओं से जूझ रहे हैं और गुजरात हिंसा का पहला पायदान आज दिनांक रात्रि 9 बजे तक लांघ चूका है ।         



LUCKY BABA 

Om Sai 

Wednesday, August 19, 2015

भारतीय राजनीति में वित्त मंत्रालय का बढ़ता हुआ दबदबा 




पिछले कुछ वर्षो से मैं यह अनुभव कर रहा हूँ की भारतीय  राजनीति में वित्त मंत्रालय बाकी मंत्रालयों की तुलना में ज़रूरत से ज़्यादा मज़बूत और भारी होता जा रहा है । मेरा केहने का यह मतलब बिलकुल नहीं है की वित्त मंत्रालय पहले बहुत कमज़ोर हुआ करता था, लेकिन जितना मैंने पढ़ा और समझा है , उस हिसाब से मुझे ऐसा लगता है की राजीव गांधी के काल तक गृह मंत्रालय बाकी मंत्रालयों की तुलना में ज़्यादा मज़बूत था । उसके पश्चात रक्षा मंत्रालय और फिर विदेश मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय। इसके पश्चात वित्त मंत्रालय का विभाग आता था , लेकिन यह क्रम ऊपर - नीचे भी हो सकता है । लेकिन यह तय है की ग्रह मंत्रालय , रक्षा मंत्रालय , विदेश मंत्रालय के बाद ही वित्त मंत्रालय का क्रम आता था । ग्रह मंत्रालय , विदेश मंत्रालय, आदी के मंत्री , वित्त मंत्रालय के मंत्री से राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से ज़्यादा मज़बूत माने जाते थे । लेकिन , इधर विदित कई वर्षो से, वित्त मंत्रालय बाकी मंत्रालयों को पीछे छोड़ता  हुआ अब नंबर 2 की स्तिथि में आ गया है । पिछले वर्षो के अनुभवों से मैं यह कह सकता हूँ की कई बार प्रधान मंत्री भी वित्त मंत्रालय को अपने पास रखने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए । जहा तक मुझे विदित होता है , यह सिलसिला पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी के कार्यकाल से ज़्यादा सशक्त हुआ । पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी की कोई राजनीतिक चाल थी या मज़बूरी थी , इसके बारे में तो मैं नहीं कह सकता लेकिन, यह अवश्य कहूँगा की उन्होंने उस समय के वित्त मंत्रालय या उनके काल के वित्त मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी को बहुत अधिक महत्त्व दिया, जिसको राजनीती में free hand कहा जाता है, अपने सभी प्रतिद्वंदियों को राजनैतिक शक्तियाँ देकर भी मनमोहन सिंह जी के बाद के क्रम में डाल दिया । 


चूँकि मनमोहन सिंह जी अर्थशास्त्री थे, एवं उस समय के प्रधान मंत्री नरसिम्हा राओ जी बहुत वरिष्ठ एवं धुरंदर नेता थे , अर्थशास्त्री होने एवं अपने विषय में पकड़ रखने की वजह से वह कब नंबर 2 की स्तिथि में पहुंच गए , तत्कालीन नेताओ को समझ ही नहीं आया । नरसिम्हा राओ जी की राजनीतिक चाल कब सफल हो गई और उनके राजनितिक प्रतिद्वंदी उनकी चाल में फस कर कब असफल हो गए , यह उनके राजनितिक प्रतिद्वंदी खुद नहीं समझ पाये । इस पूरे खेल को, पी. व्ही नरसिम्हा राओ जी ने आर्थिक सुधार या उदाहरीकरण का नारा दे दिया। इसके पश्चात जो भी प्रधान मंत्री आये उन्होंने इस प्रयोग को आगे बढ़ाया । जैसे : अडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी एवं अन्य  नेताओं को , यशवंत सिन्हा जी को उनके समकक्ष खड़े कर देना , मनमोहन सिंह जी का पी. चिदंबरम जी को वित्त मंत्रालय देकर मज़बूत कर देना , एवं  तत्कालीन प्रमुख नेता जैसे शिवराज पाटिल , अर्जुन सिंह , प्रणव मुखर्जी  के मंत्रालयों को वित्त मंत्रालय के समकक्ष पीछे धकेल देना । और अब यही प्रयोग , वर्तमान के  प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को करते हुए देख रहा हूँ । नरेंद्र मोदी जी , दो कदम और आगे बढ़कर सामने आये , इन्होने तो हद ही कर दी , इन्होने भाजपा के वरिष्ठ नेताओ को (लाल कृष्णा अडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, यशवंत सिन्हा जी , आदि को) सीधे घर ही बिठा दिया एवं अपने समकालीन राजनितिक प्रतिद्वंदियों को ग्रह मंत्रालय - राजनाथ सिंह , विदेश मंत्रालय - सुषमा स्वराज , रक्षा मंत्रालय - मनोहर पर्रिकर , जैसे सर्वोच्च मंत्रालय देकर, लोकसभा चुनाव में हारे हुए अरुण जेटली को वित्त मंत्रालय देकर वही पी. व्ही नरसिम्हा राओ की स्टाइल में free hand देकर सभी मंत्रालयों से ऊपर कर दिया , यानी नंबर 2 । 


यह राजनितिक सुधार का खेल या फिर अपने प्रतिद्वंदियों को शह और मात देने का नायाब  तरीका कब तक चलेगा , पता नहीं । लेकिन यह निश्चित है की पी. व्ही नरसिम्हा राओ से शुरू हुआ यह खेल अभी तक चल रहा है । राजनितिक गलियारे में इस खेल को (वित्त मंत्री) संकट मोचन के रूप में जाना जाता है । जब सरकार के ऊपर प्रतिद्वंदियों द्वारा संकट खड़ा किया जाता है तब यह वित्त मंत्री महोदय अपना वित्त मंत्रालय भूल कर संकट मोचन का रोल निभाते है । आजकल यह कार्य, भारत देश के वित्त मंत्री, श्री अरुण जेटली बखूबी निभा रहे है। जिन वित्त मंत्रियो के बारे में मैंने लिखा है , इनमे कुछ समानताये है : यह संकट मोचन का कार्य तो करते ही है लेकिन , अपनी उपस्थिति को मज़बूत  बनाये रखने के लिए यह  डीजल , पेट्रोल , गैस के दामो में हंगामा खड़ा करवा देते है , महंगाई एवं भ्रष्टाचार का नारा बुलंद कर देते है एवं खाद्य वस्तुओं के दामो में , भारी उथल - पुथल मचा कर , देश की जनता का ध्यान इन सब पर केंद्रित कर देते है, सरकार को बचने के लिए संकट मोचन का रोल निभाने लगते है।      


भईया इसी को तो राजनीति कहते है - एक तीर से कई शिकार वाली कहावत सार्थक हो गई ना.....


LUCKY BABA

Om Sai....
       

Tuesday, August 18, 2015

दिग्बल योग



जब ग्रहों को दिशा की अनुकूलता प्राप्त होती है, तो उनमें एक विशेष प्रकार के बल की सृष्टि होती है । ग्रह जब बलि होते है , तब मनुष्य को धन ,मान , पदवी सब कुछ देते है ।

  • लग्न में स्थित होने से बुध तथा गुरु को दिग्बल की प्राप्ति होती है ।

  • शुक्र तथा चन्द्र यदि चतुर्थ स्थान में स्थित हो , तो इनको दिग्बल प्राप्त होता है ।

  • शनि यदि कुंडली में सप्तम स्थान में स्थित हो तो , उसे वहाँ  पर दिग्बली माना जाता है ।

  • इसी प्रकार, दशम भाव में (दसवें स्थान ) मंगल एवं सूर्य स्थित हो , तो इनको उस स्थान पर दिग्बली माना जाता है ।

जिस कुंडली में जितने गृह दिग्बली होंगे, उस जातक को उतना ही ज़्यादा दिग्बली माना जाएगा । चार, पांच या इससे ज़्यादा गृह दिग्बली हो जाते है तब , ऐसे जातक का जीवन काफी ऊंचाइयों को छूता है, राज योग या फिर दिग्बल की प्राप्ति होती है ।    

पूर्व दिशा गुरु एवं बुध  के लिए , उत्तर दिशा चन्द्र एवं शुक्र के लिए , पश्चिम दिशा शनि के लिए , एवं दक्षिण दिशा मंगल तथा सूर्य के लिए अति शुभ होती है ।   

कुंडली में , प्रथम , चतुर्थ, सप्तम , दशम , इन्ही दिशाओ को क्रमशः दर्शाते है । दो या तीन गृह यदि दिग्बल से युक्त हो तो, राजवंश में पैदा हुए व्यक्ति को राजा के समान सुख मिलता है । अगर , पाँच या पाँच से अधिक गृह दिग्बल हो कर अगर किसी कुंडली में है , तो वह मनुष्य साधारण कुल में भी उत्पन्न हो कर राजा की पदवी प्राप्त कर लेता है ।    


इस बारे में , मैं उदहारण सहित आगे विस्तृत चर्चा करूँगा......




LUCKY BABA

Om Sai....

Monday, August 17, 2015


पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ,आज आपकी तस्वीर को निहारने का बड़ा मन किया ….. आज आप बहुत याद आए



समझ में नहीं आ रहा , श्री नरेंद्र मोदी जी के बारे में कहा से लिखू और क्या लिखू । मेरी स्थिति गाडी चलाने वाले उस ड्राइवर की तरह है जो की बड़ी मजबूरी में U - TURN भरता है और जिस स्थान (जगह) से चला होता है फिर उसी की तरफ U - TURN लेकर उसी गंतव्य स्थान की तरफ मुड जाता है । मंज़िल पर ना पहुचने का जो दर्द उस ड्राइवर को होता है वह भी एक असहनीय पीड़ा जैसा ही है । आज, श्री नरेंद्र मोदी जी को UAE में मस्जिदो में घुमते हुए देख कर , पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी बहुत याद आए । उन्होंने, अपने प्रधान मंत्रित्व काल में नरेंद्र मोदी जी को (तत्कालीन गुजरात के मुख्य मंत्री ) एक सबक दिया था , और वह जाती वाद, समाज ,धर्म से उठ कर था, और वह था बड़े ही कड़े शब्दों में : अपने राज धर्म का निर्वाहन करो । तत्कालीन भाजपाई - विश्व  हिन्दू परिषद नेताओं ने आपके दिए हुए इस मन्त्र का भरपूर मजाक उड़ाया था या,  शालीनता से कहु तो गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन, धीरे - धीरे जिस प्रकार महापुरुषों की कही हुई बातें धीरे - धीरे समझ में आती है , वही स्थिति कमोबेश आज कल भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपाई नेताओ में भी दिखाई दे रही है । आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी : कई देशो का लगातार दौरा करते है , जैसे की : America , Germany , Japan , China , लेकिन , अमेरिका , जर्मनी एवं फ्रांस जैसे देशो में ये वहां के धार्मिक स्थलों में नहीं गए। नेपाल गए और पशुपति नाथ जी के दर्शन किये , और जापान में quetta गए और वह भी इस लिए की हिन्दुओ के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक, बनारस को quetta बना देने के लिए ।    

भारत देश में जब प्रजातंत्र पर्व की सबसे मुख्य पूजा "मतदान " का समय था , उस समय तत्कालीन गुजरात के मुख्य मंत्री एवं प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी जी ने हिन्दू भावनाओ को उत्तेजित करने के लिए, या अपने पक्ष में करने के लिए, या अपनी आस्था दिखाने के लिए सार्वजनिक रूप से, गोल टोपी लगाने से मना कर दिया था और जिसे समाचार माध्यमो से बहुत प्रचारित भी किया गया था । जिससे वह बहुसंख्यक समुदाय में  सर्वमान्य नेता बनकर उभरे थे । आज , श्री नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधान मंत्री हो गए है और UAE दौरे पर है , इस UAE दौरे में मस्जिद जाना अनिवार्य है , प्रसन्नचित मुद्रा में मस्जिद का भ्रमण कर रहे है एवं selfie खींच रहे है । बड़े बुजुर्गो की कहावत - गुड़ खाए और गुलगुले से परहेज़ - सत्य साबित हो गई । प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ,  ऐसी क्या मजबूरी थी की एक राष्ट्रीय दौरे पर हो कर , कट्टर हिन्दू वादी नेता हो कर, धर्म विशेष का नेता हो कर , राज धर्म निभा रहे है ?

अटल जी , आज आप बहुत याद आए.....अटल जी, आज आपका यह शब्द "राज धर्म " क्या होता है यह समझ में आ गया । में, उस U - TURN वाले ड्राइवर को समझाने का प्रयास अवश्य करूँगा की , मंजिल पर पहुचना ज्यादा ज़रूरी होता है , ना की गलत दिशा पर आगे बढना। अभी देखिये , भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी , मस्जिद में भ्रमण कर के, मुस्कुराते हुए selfie खीच कर , अभी और क्या - क्या राज धर्म दिखाएंगे ।  


LUCKY BABA

Om Sai ....

Monday, August 10, 2015

द्वादश शुक्र योग (बाहरवाँ भाव)

यदि  शुक्र द्वादश स्थान (12 वे घर) में स्थित हो तो , धन एवं स्त्री (महिला) दोनों ही के लिए बहुत शुभ हो जाता है, और इस योग को द्वादश शुक्र योग कहा गया है । शुक्र को भोगात्मक गृह कहा जाता है , या यह एक भोगात्मक गृह है। द्वादश भाव को भोग स्थान माना गया है , 12 राशि मीन में शुक्र को उच्च का माना जाता है । शायद यह वजह भी होगी की शुक्र को द्वादश भाव में कारक  गृह माना गया है । इस वजह से भी शुक्र की द्वादश भाव में स्थिति बहुत अनुकूल बनती है । अब चूँकि शुक्र को स्त्री का भी कारक गृह मानते है इस वजह से स्त्री का दीर्घायु होना युक्ति कारक माना जाता है और शुक्र को भोग की प्राप्ति का गृह माना गया है , इस वजह से द्वादश (12 वे) भाव में शुक्र को द्वादश शुक्र योग कहते हैं ।

 द्वादश भाव में साधारणतः शुक्र के होने से पुरुष या स्त्री सभी प्रकार के संपूर्ण भोगात्मक सुख भोगने की आकांक्षा रखते है एवं प्रयत्न करते है जिसे वह साधारणतः प्राप्त कर लेते है । यह योग तब और फलित हो जाता है जब लग्न मेष हो । मैंने कई कुंडलियो में शुक्र को अपनी राशि से 12 वा होने पर बहुत फलदाई (असरदार) होता हुआ देखा है । 


वृष (२ नंबर ) एवं तुला (7 नंबर ) राशि:  


वृष राशि एवं तुला राशि जो शुक्र की मूल राशियाँ  है, इनसे भी शुक्र कुंडली में अगर 12 वां है तो , द्वादश शुक्र योग का फल विशेष रूप से प्राप्त होता है । इसी प्रकार से , अगर गुरु (बृहस्पति) से शुक्र 12 वां हो जाता है या द्वादश भाव हो जाता है तब यह विशेष शुभत्व प्राप्त करता है । 



इस योग के उदहारण के लिए ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया की कुंडली में यह योग स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है , जिन्होंने 40 वर्ष तक राज्य किया । इनकी कुंडली में, तीनो लग्नो में  शुक्र अपने से 12 वां है , एवं उनकी मूल कुंडली में भी शुक्र 12 वे घर में बैठा है, जहा वह 12 वें घर में होने की वजह से बली (मजबूत) हो गया है, अपनी राशि (वृष , 2  नंबर ) से भी 12 वां हो गया है ।  


  • तीन लग्नो का तात्पर्य यह है की , कुंडली में मूल लग्न को । 
  • महारानी विक्टोरिया की कुंडली वृष लग्न की है।
  • राशि लग्न जिसको चन्द्र से देखते है (moon sign ) वह भी वृष में ही  बैठा है , यानी महारानी विक्टोरिया की राशि वृष हुई। 
  • सूर्य लग्न (sun sign ): महारानी विक्टोरिया की कुंडली में , सूर्य लग्न में बैठा है , यानी वृष राशि में ही बैठा हुआ है । 


तो तीनो ही लगन वृष राशि की हो गई । और शुक्र , महारानी विक्टोरिया की कुंडली में मेष राशि का होकर द्वादश भाव (12 वें घर )में बैठा है। इससे यह अति बलशाली हो गया है ।   मेष राशि पर बैठने से , अपनी सीधी  7 वीं  दृष्टी से तुला राशि (7 वीं ) को भी देख रहा है । इस वजह से महारानी विक्टोरिया  दीर्घायु एवं बहुत लम्बे समय तक ब्रिटेन  की  महारानी बनकर राज्य किया ।     


Note : अगर किसी इंसान की कुंडली में बहुत अच्छे फल प्राप्त न हो रहे हो और उसका जीवन सुखो से  नहीं गुजर रहा हो या उसके पास सुख के साधन ना हो , ज्योतिषाचार्यो को दिखने के बाद दिमाग भ्रमित होता हो या शंकित रहता हो तो उस इंसान से में निवेदन करूँगा की वह अपने शुक्र की गणना मेरे लिखे अनुसार अवश्य करें । उसका मानसिक भ्रम या शंका दूर हो जायेगी ।

 

Lucky Baba 

Om Sai....