Wednesday, July 15, 2015

व्यापम की बिल्डिंग को क्यों ना स्मारक बनाया जाए 



पूरी दुनिया में इतिहास को धरोहर के रूप में रखने के कई उपाय किये जाते हैं, उनमें से कुछ लेखन और किताबों के द्वारा रखे जाते हैं, कुछ साक्षों को एकत्रित करके अपने - अपने तरीके से रखा जाता है। कई जगह इतिहासकार या उस समय के भाँडो (चाटुकार) द्वारा महिमा मंडित करके लिखा जाता है , और कही चित्रकारी द्वारा रखा जाता है, पुरातत्व सामग्रियों को संगठित करके उस काल के बारे में समझाने की कोशिश की जाती है । लेकिन, मेरे अनुसार : पुराने भवनों को यथा स्तिथि में रख कर इतिहास को सहेजना सबसे उचित है । जब भी में किसी शहर या दिल्ली जाता हू तो इस तरीके की इतिहासिक बिल्डिंगों को देखने की इच्छा ज़रूर ज़ाहिर करता हू जिससे उस समय विशेष की या फिर उस वस्तु स्थिति के बारे में जानने का और अपने कौतुहल को शांत करने का, इतिहासिक चीज़ों को संगठित करने का यह सबसे अच्छा उपाय लगता है । 

VYAPAM घोटाला मेरे विचारों से एक इतिहासिक कुकृत्य है । इतिहासिक इसलिए की  इस कुकृत्य में सभी प्रकार का कुकृत्य शामिल है जैसे की , बालक एवं बालिकाओ का भविष्य, धन एवं भ्रष्टाचार , सत्ता एवं सत्ता का दुरूपयोग, सत्ता के गलियारों के दलालो का (भांडो का) VYAPAM पर वीर रस की कविताओं के सामान VYAPAM का महिमा मंडल करना एवं सत्ता प्रमुख (राज्यपाल एवं मुख्य मंत्री) द्वारा इस कुकृत्य में शामिल सभी लोगो को पारितोषक (इनाम) देना और इन सब घटनाओ के अलावा इतहिासिक घटना होने के लिए एक चीज और प्रमुख होती है कि उस इतिहास्कि घटना में कितने लोग मारे गए । तो इस VYAPAM की घटना में भी जितना समाचार माध्यमों से ज्ञात हो रहा है की 45 - 48 के  बीच जानें जा चुकी हैं । ऊपर बताई उपलब्ध सामग्री इतिहासिक घटना साबित करने के लिए , मेरे विचार से पर्याप्त है । 

मेरे विचार से सरकार को और किसी तथ्य की ज़रुरत नहीं पड़ेगी, सरकार इस व्यापम की बिल्डिंग को धरोहर के रूप में स्वीकार लेगी । VYAPAM की बिल्डिंग भी भोपाल में 10 रुपये 5  रुपये की टिकट देकर इतिहासिक घटना देखने योग्य हो जाएगी । इससे मध्य प्रदेश की सरकार को अपनी आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ करने का मौका मिलेगा। मुझे आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है की भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी, प्रधान मंत्री बनने के बाद पर्यटन को उद्योग के रूप में जो स्थापित करना चाहते थे उस दिशा में भी मध्य प्रदेश की सरकार अपना योगदान दे सकेगी।जिस प्रकार की सफाई अभियान, योग अभ्यास अभियान में मध्य प्रदेश सरकार ने प्रधान मंत्री की योजनाओं को बड़ - चड़  कर क्रियान्वित किया।    

कुछ इतहास कार , कुछ पत्रकार एवं कुछ सत्ता के दलाल मेरे इस लेखन से सहमत ना हो और मुझ पर भड़कने की कोशिश करेंगे । में तो भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से प्रार्थना करूँगा की एक कमेटी बनाये जिसमें सभी वर्ग के लोगो का प्रतिनिधित्व हो जैसे की : राजनेता , कार्य कर्ता , वैज्ञानिक तथ्यों के प्रामाणिक कर्ता और भारत के विशेष इतिहासकार अगर यह सभी लोग निष्पक्ष या पूर्ण बहुमत से मेरी  बात से सहमत हो, तभी VYAPAM भवन को सरकार के द्वारा इतिहासिक शिक्षा मंडल (VYAPAM) घोषित किया जाए । इन सभी लोगो से बस निवेदन इतना रहेगा की बिल्डिंग की जो वस्तु स्थिति है, साक्ष है , उनको जाँच के पश्चात पूर्व  स्थिति में रख दिया जाए , जैसे की : जितने अधकारी है उनके कमरो की यथा स्थिति, उनके name plate के साथ।        

जिन लोगो ने इस भ्रष्टाचार को उजागर करके की भूमिका निभाई है उनकी इतिहासिक फोटोए , जिन - जिन तारीखों में कोर्ट के निर्णय आये है उन इतिहासिक तारीखों की पेपर की कटिंग से : कहने का तात्पर्य यह है की इस घटना से सम्बंधित जो भी सामग्री है उस सारी सामग्री को वैज्ञानिक तकनिकी के द्वारा वास्तु स्थिति में रखा जाए ।  मेरा अंतर मन बार - बार कह रहा है की व्यावसायिक शिक्षा मंडल भवन को सरकार के द्वारा इतिहासिक शिक्षा भवन करके सुरक्षित किया जाए जिससे आने वाली पीढ़ी को भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के पर्यटन व्यापार (tourism business) में मध्य प्रदेश का सहयोग जैसी अविस्मर्णीय घटना साक्शो के साथ हमेशा जीवित रहेगी । धन्यवाद । 



LUCKY BABA

Om Sai....




भारत के दो रत्न : आगरा का ताज महल और अब भोपाल का व्यापम  




विश्व  के 8 अजूबों में अपनी पहचान बना चुका आगरे का ताज महल अपनी खूबसूरती और मुमताज - शाहजहां के असीम प्यार की निशानी है , वही दूसरी तरफ अब विश्व में अपने कारनामों से प्रसिद्धी प्राप्त कर रहा  है मध्य प्रदेश की राजधानी, भोपाल में स्थित व्यावसायिक परीक्षा मंडल (VYAPAM)। एक कहावत है "सिक्के  के दो पहलू " , एक खरा एक खोटा । VYAPAM की माया ने इस कहावत को भी शकल दे दी ।

एक है ताज महल, जिसकी खूबसूरती  निहारने दुनिया भर से सैनानी भारत के आगरा शहर आते है, और एक है मध्य प्रदेश की आन - बान और शान को मिटटी में मिला रहा सर्व - व्याप्त : व्यावसायिक परीक्षा मंडल - Vayapam. 

सच मुच , किसी ने सही  कहा है : M.P. अजब है , सबसे गजब है !!!  


LUCKY BABA

Om Sai....


Tuesday, July 14, 2015

केंद्र के ग्रहों का महत्त्व 

ज्योतिष की भाषा में केन्द्रस्त ग्रहों का मतलब होता है : प्रथम भाव यानी लग्न , चतुर्थ भाव यानी सुख भाव,  सप्तम भाव यानी की partner house , दशम भाव यानी की कर्म भाव। जब इन चारों भावों पर या इन में से किसी भाव पर कोई गृह  होते हैं तब उन्हें केन्द्रस्त गृह कहा जाता है । जो केंद्र में गृह होते हैं, उनका विशेष महत्त्व इसलिए होता है क्यूंकि यह माना गया है की , केन्द्रस्त ग्रहों में एक दुसरे को ताक़त देने की विशेष शक्ति होती है । उदहारण के लिए : यदि दशम भाव यानी कर्म भाव में कोई शुभ अथवा अशुभ गृह उपस्थित है तो उस शुभ अथवा अशुभ ग्रह का प्रभाव लग्न पर अवश्य पड़ेगा । इसे  अंग्रेज़ी में square aspect कहते हैं । साधारणतः पाश्चात्य ज्योतिष में इसे बुरा माना जाता है , चाहे केंद्र में स्थित गृह शुभ गृह ही क्यों ना हो , जैसे की बृहस्पति अथवा शुक्र गृह ही क्यों ना हो । परन्तु, भारतीय ज्योतिष शास्त्र इसे सही नहीं मानते । हमारे शास्त्रों के अनुसार, केन्द्रस्त स्थित गृह का लग्न पर शुभ अथवा अशुभ प्रभाव, उसके शुभत्व अथवा अशुभत्व पर निर्भर करता है । उदहारण के लिए : यदि कुंडली में शनि दशम भाव में स्थित हो तो उसकी दृष्टि लग्न पर नहीं पड़ने पर भी शनि का पूर्ण प्रभाव लग्न में माना जायेगा । शनि एक अशुभ गृह या पापी गृह माना जाता है , इस वजह से वह लग्न को हानि पहुचायेगा ।

 इस दशम स्थान के नियम को अन्य केन्द्रस्त भावो पर भी इसी प्रकार से लगा कर देखना चाहिए । जैसे की : बृहस्पति किसी कुंडली के द्वितीय (2) स्थान में है और शनि एकादश (11) में है , यहाँ शनि चूंकि बृहस्पति से दशम स्थान में विद्यमान है अतः उसका पाप अथवा मूल प्रभाव (पृथकता जनक) बृहस्पति यानी , द्वितीय भाव पर पड़ेगा ही ।

इस तथ्य के आधार पर वाहन प्राप्ति का योग मैं समझाता हूँ : जब लग्न  तथा चतुर्थ (4) भाव के स्वामी परस्पर एक दूसरे से केंद्र में स्थित हों या फिर लग्नाधिपति (लग्न का स्वामी) अत्यंत बलवान हो तो , घर में या फिर  ऐसे इंसान के द्वारा को वाहन सुख की प्राप्ति होता है । कहने का तात्पर्य यह है : की परस्पर एक दूसरे से केंद्र में होने का कारण लग्न के स्वामी का सम्बन्ध वाहनाथिपति (चतुर्थ भाव से) जाता है जिससे उसे विशेष ताक़त मिल जाती है ।  चूँकि लग्न का सम्बन्ध चतुर्थ भाव से होगा तो मनुष्य को वाहन की प्राप्ति होगी ।

यदि कमज़ोर या पाप गृह का चन्द्रमा 12 वे स्थान में हो, लग्न में तथा अष्टम भाव में पापी गृह हो  में कोई भी सुख गृह ना हो तो, पैदा हुए बालक की आयु ज़्यादा नहीं होती । और जब - जब यह स्थिति किसी भी मनुष्य की गोचर कुंडली में बनती है तब - तब उसे मृत्यु तुल्य कष्ट या फिर उसकी मृत्यु होने की सम्भावनाये बढ़ जाती है । इस सबके के लिखने से मेरे  है कहने का मतलब यह है की , केंद्र में जब कोई शुभ गृह नहीं होगा तो लग्न को ताक़त नहीं मिलेगी । जिससे लग्न बल विहीन हो जायेगा । और लग्न के कमज़ोर होने से और केन्द्रस्त कमज़ोर होने से कष्ट प्राप्त होगा ।




LUCKY  BABA

Om Sai…


Sunday, July 12, 2015

भारत के गौरव को श्री नरेंद्र मोदी ने ठेस क्यूँ पहुंचाई ? 




























भारतीय इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जिसमे भारत के प्रधान मंत्री ने किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अकेले बैठ कर किसी दूसरे देश के प्रधान मंत्री का इंतज़ार किया हो। यह घटना भारतीय समाचार माध्यमो में देख कर मुझ जैसे एक साधारण भारतीय का सर शर्म से झुक गया । किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मैंने अपने भारत देश के प्रधान मंत्री को इतना लाचार नहीं देखा। शायद मैंने पहली बार अपने जीवन में किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ( BRICS Sumit ) किसी दूसरे देश में (रूस ), 125 करोड़ भारतीयों का नेतृत्व करने वाले देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को कुर्सी पर अकेले बैठ कर दूसरी पड़ी खाली कुर्सी को निहारते हुए देखा । मेरा सर शर्म से झुक गया । 

शायद ऐसी ही हर उस भारतीय को शर्मिंदगी महसूस हुई होगी जिसने भी टी.वी चैनेलो पे देश के प्रधान मंत्री को सूट बूट पहने हुए अकेले एक कुर्सी पर बैठ कर दूसरी खाली  कुर्सी को निहारते हुए देखा होगा । और हद तो तब हुई जब उस खाली  कुर्सी पे बैठने वाला पडोसी देश के प्रधान मंत्री को सूट टाई पहने हुए , छाती फुलाकर,  तेज़ तेज़ कदमो से उस कमरे में आते हुए देखा । नवाज़ शरीफ़ अपनी मदमस्त चाल से अपनी कुर्सी की तरफ चलते हुए आगे बढ़ा और 125 करोड़ देशवासिओं का नेतृत्व करने वाले प्रधान मंत्री आगे बढ़ कर उनका स्वागत कर रहे थे । मेरा सर और मेरे ख्याल से हर भारतवासी का सर, जिसमे ज़रा सा भी राष्ट्र प्रेम है, शर्म से झुक गया होगा ।

आखिर, 56 इंच के सीने वाले , 125 करोड़ देशवासियो का नेतृत्व करने वाले श्री नरेंद्र मोदी जी: ऐसी कौन सी लाचारी थी, ऐसी किस चीज़ से हम शर्म सार थे जो किसी दूसरे देश में और वह भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आपको यह सब करने के लिए मज़बूर किया ? मेरे ख्याल से , मेरे जैसे स्वाभिमानी, हर भारतीय नागरिक के दिमाग में यह सवाल आया होगा : चलिए आपने यह सब  किस मज़बूरी से किया, किस लाचारी से किया , यह आप जाने और आपके साथ गए हुए साथी - संगत  जाने । लेकिन, हम भारतीयों को यह अधिकार तो है की अपने मतों  से चुने हुए प्रधान मंत्री से यह पूछे कि यह करने से भारत देश को किस चीज़ की उपलब्धि हुई ? आपकी इस दरियादिली से राष्ट्र का सम्मान तो गायब हो गया , लेकिन प्राप्त क्या हुआ ? यह भारत जैसे राष्ट्र को आपको अवश्य बताना चाहिए, यह मैं निवेदन कर रहा हूँ । हम जैसे भारतीयों को तो, लाल बहादुर शास्त्री के 1965 के वह फोटो और वादे याद हैं जिसमे पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष सर झुकाये है और शास्त्री जी सीना तान के चल रहे हैं ।          

1971 - 72 का शिमला समझौता याद है , जिसमे इंदिरा गांधी गर्व से अपना सर उठाये हुए हैं और पाकिस्तानी प्रधान मंत्री जुल्फिकार खान भुट्टो सर झुका कर भारतीय शर्तो पर समझौते कर रहे हैं। या फिर , भारतीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की वह गरजती हुई आवाज़ याद, है जब कारगिल में पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मज़बूर करते हुए उन्होंने कहा था - की पाकिस्तान को अपने किये की सज़ा भुगतनी होगी और उन्होंने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को मुँह के बल पटक के दिखाया था । हमें यह भी याद है की भारतीय प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने , पाकिस्तान के राष्ट्र पति परवेज़ मुशर्रफ को अपने राष्ट्र भारत में आने पर भारतीय परम्पराओं के अनुसार उनके स्वागत एवं सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। इस स्वागत सत्कार से हम भारतीयों ने बहुत गौरव शाली महसूस किया था । लेकिन , नरेंद्र मोदी जी - ध्यान से सुनिए , जैसे ही परवेज़ मुशर्रफ ने अनर्गल बातें करना शुरू की और ऊट पटांग शर्ते भारत के सामने रखी , तब उस समय के प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने दो टूक शब्दों में इन् सारी  बातों को सिरे से नकार दिया था। और उस समय के तत्कालीन पाकिस्तान के राष्ट्र पति, परवेज़ मुशर्रफ को मुह छुपा कर भारत छोड़ने के लिए मज़बूर होना पड़ा था ।  

कहाँ यह गौरवशाली परम्पराएँ, और कहाँ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत जैसे राष्ट्र के प्रधान मंत्री का अकेले  कुर्सी पर बैठ कर दूसरी खाली कुर्सी को निहारते हुए देखना एवं छाती फुलाकर लम्बे - लम्बे  डग भरते हुए नवाज़ शरीफ का स्वागत करते हुए देखना, मुझ जैसे अधनेय से भारतीय को शर्मसार  कर गया । तब उस भारतीय सैनिक पर क्या गुज़री होगी जो भारतीय सीमाओं पर किन्ही भी परिस्थितियों में 24 घंटे प्रहरी की तरह खड़ा है ?  या, उस सैनिक के परिवार वालों पर क्या गुज़री होगी , जिसके शव को  उसी दिन उसके घर लाया गया था , जो की पाकिस्तानी सैनिकों के द्वारा मारा गया था ? उस भारतीय किसान पर क्या गुज़री होगी, जो दिन और रात एक करके भारत के गौरव को बचाये रखने के लिए अन्न पैदा करता है ? उस भारतीय बेरोज़गार युवक पर क्या गुज़री होगी जो भूख से सोने को तो तैयार है , लेकिन भारत के गौरव से समझौता करने को तैयार नहीं है ? कृपया इस शर्मसार घटना से , इस भारत  जैसे गौरव शाली राष्ट्र को क्या मिला, बताने का कष्ठ करें । 


LUCKY BABA

Om Sai …… 


अपने मूल भाव पर स्वयं की गृह की दृष्टी का प्रभाव 


साधारणतः ज्योतिष शास्त्र के जानकार कुंडली देखते वक़्त एक बहुत साधारण सी भूल करते हैं , जो उनकी निगाह में मामूली होती है या फिर गढ़ना योग्य नहीं होती है । लेकिन मेरा मानना यह है कि ज्योतिष  शास्त्र के फलादेश में ज़रा - ज़रा सी चूकें परिणामों में आने लगती हैं । शायद मैं ज्योतिष शास्त्र को गणित की तरह देखता हूँ , जैसे कि गणित में एक साधारण सी भूल से उसके परिणाम में फरक आता है, उसी तरह ज्योतिष में भी छोटी सी गणना की भूल, भविष्य के परिणाम में काफी अंतर दे देती है । यहाँ मैं अपनी तरफ से पहले ही माफ़ी मांग रहा हू कि मैं किसी की भावनाओं को या ज्योतिष शास्त्र के ज्ञानियो को दुःख देने लिए या नीचा दिखने के लिए नहीं कह रहा हू । जो बात मैं अब लिख रहा हू वह मनुष्य की कुंडली से है । उसके स्वभाव , उसके कार्य करने की क्षमता, कहा सबसे अधिक होगी , वह दृढ़ प्रतिज्ञ होगा की नहीं होगा , वह स्वाभाविक रूप से किन - किन चीज़ो में , उसकी अपनी क्षमता से कितने प्रतिशत कार्य कर पाएगा … आदी.… आदी। मैं यहाँ गृह किन मूल घरों में बैठे हैं , उनका दृष्टी सम्बन्ध कहाँ - कहाँ है , उसकी महादशा और दशा कौन सी चल रही है ,इस सब पर कोई चर्चा नहीं कर रहा हू । 


एक ज्योतिष का बहुत छोटा सा नियम बताने का प्रयास कर रहा हू जिसका असर ज्योतिष के फलादेश पर बहुत असर डालता है । अपने मूल भाव पर स्वयं की गृह की दृष्टी का प्रभाव - इसका शीर्षक दिया है मैंने । 


मैं अपनी बात दावे से शुरू करता हूँ........ 


जब कोई भाव या घर कुंडली में अपने स्वामी द्वारा दृष्ट होता है या उसके नरसेंगिक स्वामी की दृष्टी पड़ती है तो उस भाव के परिणाम में एक विशेष प्रकार की वृद्धि हो जाती है । यह दृष्टी बाकी गृह जैसे की : मंगल , शनि या फिर देव ग्रहों की ही क्यूँ ना हो यह उस भाव पर पूर्ण वृद्धि करते हैं । शर्त यह है: कि यह गृह अपने मूल भाव पर कौन सी दृष्टी से और कितनी ताक़त से (कितनी डिग्री का गृह है) देख रहा है या दृष्टी डाल रहा है । परिणाम देखते वक़्त इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि गृह पापी गृह है या देव गृह है । यह वृद्धि तब और अधिक हो जाती है जब दृष्ट भाव पर शुभ गृह के प्रभाव अथवा युति की दृष्टी या पापी ग्रहों के प्रभाव की युति की दृष्टी हो। मैं यहाँ पर एक उदहारण भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की कुंडली से देकर समझाना चाहता हूँ । इस कुंडली में कई विशेषताओं के अलावा मेरा यह विचार भी इनको महान बनाने में मेरे अनुसार काफी प्रमुख भूमिका निभा रहा है ।



 मैं जब इस कुंडली को ध्यान से देखता हूँ तो , इनमे दृढ बुद्धि होने का , अपने कार्य को परिणाम तक पहुचाने की वजह, मैं मूल रूप से यह मानता हूँ की , दशम भाव पर अगर आप दृष्टि डालें, जो की कर्म , पिता, कार्य आदि का स्वभाव भाव होता है , तो आप पाएंगे कि मंगल दसवें भाव में अपनी स्वयं की राशि मेष को पूर्ण अष्टम (8 वीं ) दृष्टी से  देख रहा है । चौथी दृष्टी (4 थी ) से वह नवीं (9 वीं ) राशि धनु को देख रहा है जो की छटवें (6  वे ) भाव में विराजित है । छटवें (6 वें ) घर पे बृहस्पति और केतू, जिनकी युति स्वाभाविक मित्रता की है , बृहस्पति अपनी स्वयं की राशि में हैं , केतू उनका स्वाभाविक मित्र युति के साथ है ।  मंगल अपनी चौथी (4 थी ) दृष्टि से अपनी मैत्री पूर्ण दृष्टि इस युति पर डाल रहा है । छटवें  (6 वें ) भाव से साधरणतः शत्रु पक्ष , बीमारी (रोग) आदि को देखा जाता है । मंगल गृह को सेनापति के रूप में भी जाना जाता है । मंगल की गुरु और केतु से विशेष मैत्री सम्बन्ध होने से इस दृष्टि से विशेष ताक़त मिली  जिससे उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में एवं अपने समकालीन नेताओं को अपने से पीछे छोड़ने में सफलता पाई। मंगल अपनी 7 वीं दृष्टि से गुरु की ही दूसरी राशि मीन (12 वीं ) को सम्पूर्ण मैत्री दृष्टि से  देख रहा है । कुंडली में नवे (9 वे ) घर को भाग्य , धर्म , आस्था , आदि का माना जाता है । मंगल का बारवी (12 वीं ) राशि पर सम्पूर्ण मैत्री का दृष्टि सम्बन्ध उनके भाग्य , आस्था एवं धर्म के प्रति रूचि को विशेष रूप से बढ़ा रहा है जिसने इस दृष्टि सम्बन्ध में भी दृढ प्रतिज्ञ होकर स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने में एवं अपने समकालीन नेताओ को पीछे छोड़ कर प्रधान मंत्री बनने में अहम भूमिका निभाई । 


अब मैं आपको मंगल की अष्टम (8) दृष्टी , जिसके बारे में मैंने ऊपर लिखा है , के बारे में बता रहा हूँ। मंगल स्वाभाविक रूप से मेष राशि (प्रथम) एवं वृश्चिक राशि (8, अष्ठम ) का स्वामी है । और पंडित जी की कुंडली में तीसरे भाव  (पराक्रम) में बैठ कर अपनी स्वाभाविक अष्टम दृष्टी से मंगल की प्रथम राशी मेष को देख रहा है।  कितना अद्भुद दृष्टी सम्बन्ध मंगल का दसवें भाव पर हो रहा है जो की कर्म , पिता , दृढ प्रतिज्ञता आदि का भाव है । इन तीनों दृष्टियों में मंगल अपने मित्र और अपने स्वयं को देख रहा है , विशेष रूप से आठवी दृष्टी से , जो अद्भुद दृष्टी दशम भाव में मेष राशि पर डाल रहा है, देश के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के व्यक्तित्व को निखारने एवं सफलता दिलाने में एक विशेष भूमिका , मेरे विचार से प्रकट हो रही है । 


तो मेरा यह मानना है की अगर मैत्री, पूर्ण दृष्टि भाव पर पड़े या फिर अपनी स्वयं की राशि पर पड़े तो जातक को अपने समकक्ष साधारण इंसानो में विशेष दर्जा निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


NOTE : यहाँ पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की कुंडली में अगर ध्यान से देखें , दशम भाव को (10) और अधिक  बल इसलिए मिल रहा है क्यूंकि दशम भाव को तीन  ग्रहों की भी दृष्टि प्राप्त हो रही है: शुक्र, बुध की सीधी सातवी दृष्टि दशम भाव पर पढ़ रही है एवं सबसे पुण्य गृह गुरु की पांचवी दृष्टी दशम भाव पर पढ़ रही है जिससे दशम भाव को विशेष शक्ति मिल रही है । 

                      

LUCKY BABA 

Om sai… 

ऊल - जुलूल टिप्पणी से बचते रहे श्री नरेंद्र मोदी  



रूस के शहर ऊफ़ा में हो रहे  BRICS Summit  में एवं कई देशों की यात्रा कर के पहुंचे देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अभी तक भारतीय इतिहास एवं congress के शासन काल पर कोई ऊल - जुलूल टिप्पणी नही की । अपने पूर्व के अनुभवों से या फिर यू कहुँ कि मनुष्य के जीवन में अनुभव सबसे बड़ी धरोहर में से एक है, जो की इस यात्रा में अभी तक कम से कम उनकी वाणी से या फिर उनके वक्तव्यों से प्रतीत हो रहा है की वो भारत के इतिहास पर या फिर congress के शासन कालो पर अपनी टिप्पणी देने से बचते रहे । 

वह भारत के प्रधान मंत्री हैं , किसी पार्टी के मुखिया नहीं: इस बात की गरिमा को ध्यान में रख कर भारतीय प्रधान मंत्री पद के गौरव को बनाये रखा है । मैं भगवान से दुआ करूँगा की उनका ये वाणी सैयम यात्रा की समाप्ति तक बना रहे ।    

LUCKY  BABA

Om sai…।    

Sunday, July 5, 2015

बुध का मिथुन राशी में प्रवेश


सुर्य और मंगल पहले से ही मिथुन राशी में हैं । आज दोपहर में बुध, मिथुन राशी में प्रवेश कर गए हैं । सुर्य और बुध की युती को बुद्धादित्य योग केहते हैं । सुर्य और बुध का संबंध राजा और युवराज का है , दोनो में मैत्री संबंध भी हैं । बुध जिस ग्रह के साथ रहते हैं उस ग्रह को ताक़त देते हैं । यहां  पर सुर्य के मित्र होने  के नाते सुर्य को विशेष ताक़त प्रदान करेंगे । मंगल पहले से ही  सुर्य के साथ हैं , मंगल संघर्ष का भी कारक हैं , सुर्य को राजा और मंगल को सेनापती कहा जाता है । बुध के आने  से सुर्य एवं मंगल को विशेष शक्ती प्राप्त होगी । 




आजकाल राजा का तात्पर्य सरकार के मुखिया से निकाला जाता है। कही सरकार का मुखिया प्रधान मंत्री है , कही मुख्य मंत्री है, कही राष्ट्र पति के रूप में जाना जाता है , या फिर कई देशो में इन्हे अलग अलग उपाधियो से जाना जाता है। जहां कही भी यह लोग संघर्ष में थे अब ,17 July  तक यह संघर्ष पर काबू पाएंगे या सफलता पूर्वक उसका सामना करेंगे। यही स्थिति कमोबेश सूर्य , बुध और मंगल का 9 वी  राशि धनु पर सीधा दृष्टी सम्बन्ध होने से मिथुन एवं धनु राशि को भी विशेष ताक़त मिलेगी। मिथुन एवं धनु राशि 17 July तक विशेष शक्ति प्राप्त करेंगे । मंगल का पहला दृष्टी सम्बन्ध कन्या राशि में  होगा। 7 वा दृष्टी सम्बन्ध धनु राशि में होगा। और 8वा मकर राशि में  होगा। इन राशियों को मंगल की विशेष शक्ति मिलेगी।       

यह राष्ट्राध्यक्षों के अलावा किसी भी संगठन के प्रमुख या मुखिया या किसी भी प्रकार के मुखिया को विशेष शक्ति देगा चाहे वह व्यापारिक प्रतिष्ठान का मुखिया हो या घर का ही मुखिया क्यों ना  हो । जिन लोगो के मिथुन लग्न है उन्हें भी विशेष लाभ प्राप्त होगा । मिथुन लग्न वालों को खासकर वह लोग जिनके मिथुन लग्न में सूर्य और बुध हो या फिर धनु राशि में सूर्य और बुध हो , सूर्य गृह को मज़बूत करने के लिए अपने पिता के चरण छूने चाहिए बल्कि , मै यह कहूँगा की अपने सर को अपने पिता के चरणो में रखना चाहिए जिससे विशेष लाभ प्राप्त होगा। 

LUCKY BABA.... 

Om Sai....