Lucky Baba
प्रादेशिक राजनीति एवं राष्ट्रीय राजनीति में अहम फ़र्क
मेरा अपना यह अनुभव है की भारत जैसे राष्ट्र में जहा संघीय प्रणाली है (राज्यों का समूह) जहा पर विभिन्न - विभिन्न प्रांतो में वहाँ के मुखिया (मुख्य मंत्री) अपने प्रदेश की कार्यव्यवस्था एवं प्रदेश की प्रगति एवं अव्यवस्था के लिए उत्तरदाई होता है, जिसका साधारणतः उसके प्रदेश की जवाबदेही के अलावा अन्य राज्यों की स्थिति से बहुत ज्यादा सम्बन्ध नहीं रहता वह साधारणतः अपने प्रदेश की राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं जातीय समीकरणों से प्रदेश के उत्थान के लिए कार्य करता है । कहने का तात्पर्य यह है की प्रदेश की स्थिति के अलावा देश की स्थिति में वह ज्यादा असर नहीं डालता । इस वजह से प्रादेशिक नेता बहुत लम्बे समय तक राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित होने में एवं राष्ट्रीय सोच लाने के लिए , अपनी सोच को राष्ट्रीय सोच बनाने के लिए संघर्षरत रहते हैं । करीब - करीब यही स्थिति वर्त्तमान में देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी में दिखाई दे रही है । उनके और उनके मंत्री मंडल में जो सामंजस्य स्थापित नहीं हो पा रहा है या फिर राष्ट्रीय मुद्दो पर निर्णय नहीं ले पाते है, एवं लोक सभा जो की प्रजातंत्र का सर्वोच्च मंदिर या यु कहे की सर्वोच्च मंच है , उससे या तो वह अनुपस्थित रहते है या फिर चुप्पी साधे लेते है।
अपनी चुनावी सभाओं में जो साधारणतः सम्बोधन की जगह दहाड़ा करते थे या गरजा करते थे (ऐसा समाचार माध्यमों द्वारा लिखा जाता था) , वह या तो लोकसभा में अनुपस्थित रहते है या फिर उपस्थिति के बावजूद भी अनुपस्थित से दिखाई देते हैं । मैंने जब भी दूरदर्शन में उन्हें लोक सभा में बैठे देखा है तब उन्हें साधारणतः राष्ट्रीय राजनीति में जो लोग शुरू से सक्रीय रहे है (जेटली जी, नायडू जी, सुषमा जी ) से खुसुर - पुसुर करते हुए ही देखा है । कहने का तात्पर्य यह है की चुनावी सभा में गरजना , दहाड़ना अपनी जगह है लेकिन जब भी प्रादेशिक नेता राष्ट्रीय राजनीति में आता है तो बड़ा असहज सा दिखाई देता है । राष्ट्रीय मुद्दो पर चुप रहना (खामोश), राजनैतिक चाल भले ही हो सकती हो किन्तु, राष्ट्र बहुत असहज हो जाता है जिसके दुष परिणाम राष्ट्र एवं राष्ट्र की जनता को काफी लम्बे समय तक भोगने पड़ते हैं । कमोबेश यही स्थिति पूर्व प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी की चुप्पी भी थी, जिसे देश एवं उनकी पार्टी भोग रही है । प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी , जिस तरह आप गुजरात चलाया करते थे यह मान कर चलिए की राष्ट्र उस तरीके से नहीं चलेगा ।
मुझे अच्छे से याद हैं , गुजरात दंगो के पश्चात आप ने जिस खूबी से गुजरात की प्रशासनिक व्यवस्था को अपने अधीन कर लिया था या पंगु बना दिया था एवं, समाचार माध्यमो के द्वारा यह साबित कर दिया था की गुजरात हिंदुस्तान में स्वर्ग है , वैसे ही अब आप इस पूरे राष्ट्र को (भारत देश को) प्रादेशिक नेता की छवि से उठ कर या फिर हिन्दू वादी नेता की छवि से उठ कर, राष्ट्रीय मुद्दो पर, प्रजातंत्र के सर्वोच्च मंच लोक सभा में गरजे या दहाड़े : कहने का तात्पर्य है की राष्ट्रीय मुद्दो पर खासकर भाजपा पार्टी से सम्बंधित राष्ट्रीय एवं राजकीय मुद्दो पर निर्णय लेने की आदत डाले । क्यूंकि , अब आप प्रदेश के मुख्य मंत्री नहीं है, इस राष्ट्र के प्रधान मंत्री हैं । जहा राज्य एवं राष्ट्र दोनों ही संविधान के द्वारा आपको जवाबदेह बनाते है । कृपया करके, जवाबदेही के वक़्त आप खामोश न रहा करे , राष्ट्र एवं राष्ट्र के नागरिक अपने आप को असहज महसूस करने लगते हैं ।
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी : गुजरात के मुख्य मंत्री पद से उठ कर देश के प्रधान मंत्री पद की गरिमा के अनुरूप, राष्ट्रीय मुद्दो पर जवाब दे । अब प्रदेश नहीं राष्ट्र आपके हाथ में है ।
LUCKY BABA
Om Sai....


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