भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश और बिहार का रुख अगर समझ में आ जाए तो कहते हैं कि , देश की सत्ता पर किस पार्टी का वर्चस्व होगा - कहना बहुत आसान हो जाता है । इसकी मुख्य वजह क्या है, यह एक यक्ष प्रश्न सा है। भारतीय राजनीति के परिदृश्य में यह बात लगातार प्रमाणित हो रही है । देश की प्रमुख पार्टियाँ यह मानती है कि, इन दो राज्यों में वर्चस्व जमा दिया जाए तो भारतीय राजनीति का क़िला वतह करने में बहुत मुश्किल नहीं आती । मेरे (लक्ष्मीकांत मिश्रा) के विचार से इसकी प्रमुख वजह कुछ इस प्रकार हो सकती है:
१. रोज़ी रोटी की तलाश में इन दोनों राज्यों से देश में ही नहीं, विदेश में भी सबसे ज़्यादा लोग इन दोनों राज्यों से ही जाते है । इसमें पढ़े - लिखे लोग और मेहनत (हुनर) से काम करके रोज़ी रोटी कमाने वाले , दोनों ही प्रकार के लोग होते है - कहने का तात्पर्य यह है कि , ज्ञान एवं मेहनती लोगो का संगम है ।
२. दूसरी वजह मैं यह मानता हूँ कि, इन दोनों ही प्रदेशो में राजनितिक ज्ञान (उत्सुकता), बाकी राज्यों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा है।शायद इसकी वजह - हिंदी एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान का सम्मिश्रण है । क्यूंकि - दिल्ली की सत्ता में काबिल होने के लिए हिंदी एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है ।
३. मैं यह कह सकता हूँ कि , यहाँ की जनसँख्या का अनुपात , यहाँ की भौगोलिक स्तिथि से ज़्यादा है , जिसकी वजह से इन दोनों राज्यों का भारत देश की होने वाली आय में इनका हिस्सा सबसे अधिक होता है।
४. चौथी वजह यह हो सकती है कि - भारत देश के जो चार प्रमुख धर्म पर आधारित जनसँख्या है - हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई - उनके प्रमुख धार्मिक स्थल एवं प्रमुख नदिया , जिनको माँ की तरह पूजा जाता है - इन्ही प्रदेशो में पाये जाते है।
५. पांचवी वजह - इन दोनों राज्यों से सबसे ज़्यादा जनप्रतिनिधियों का आना है - जो प्रजातंत्र में किसी भी सरकार की स्थिरता और अस्थिरता की प्रमुख वजह होती है। इन्ही में से एक राज्य बिहार में प्रजातंत्र का सबसे पवित्र त्यौहार - बिहार में होने वाला चुनाव है , जिसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है - जो की पांच चरणों में होगा , जिसका अंतिम चरण का मतदान 5 नवम्बर को होगा, एवं नतीजे 8 नवम्बर की देर शाम तक चुनाव आयोग के प्रोग्राम के अनुसार घोषित हो जायेंगे ।
इस बार, सत्ता का यह खेल बड़ा अजीब और रोचक सा दिखाई दे रहा है । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ - उसकी वजह यह है - जो पूर्व में प्रमुख राजनैतिक दुश्मन थे , वह साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे है , और जो मित्र थे वह प्रतिद्वंदी के रूप में आमने - सामने है । बिहार की राजनीति में इस समय दो प्रमुख गठबंधन चुनाव लड़ रहे हैं । एक तरफ - महा गठबंधन है , जिसमे इस चुनाव के पूर्व तक जो एक दुसरे के प्रतिद्वंदी थे अब एक साथ है - जैसे की Congress , RJD एवं JDU । दूसरी तरफ - NDA , जिसमे भाजपा , लोकजनशक्ति पार्टी एवं अन्य कई छोटे - छोटे दल सम्मलित हैं।
मैं भारतीय राजनीति में ,प्रदिद्वन्दियो को हारने के लिए एवं सत्ता में काबिल होने के लिए इस प्रकार का गठबंधन शायद पहली बार देख रहा हूँ । यह भारतीय राजनीति को कौन सी दिशा देने जा रहा है - आज की तारीक़ में कोई भी भविष्यवाणी करना निरर्थक साबित होगा । इसकी वजह शायद मैं यह मान रहा हूँ कि - बिहार राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री एवं केंद्रीय सरकार के पूर्व प्रमुख मंत्रियो में से एक लालू प्रसाद यादव की राजनितिक दूरदृष्टिता का परिणाम मानता हूँ । इस बात को कहने के लिए मेरे पास कुछ प्रमुख तथ्य भी है । उनमे से एक है - जब नितीश कुमार ने पिछले साल मांझी से अपना समर्थन हटाया तब भाजपा की तरफ से मांझी को सत्ता में बनाये रखने का प्रयास हुआ था , लगभग एक साल पूर्व लालू प्रसाद यादव की राजनैतिक दूरदृष्टि में भाजपा की बढ़ती हुई राजनितिक महत्वाकांक्षा को भाप लिया था । तब, अपने घनघोर विरोधी नितीश कुमार को RJD का समर्थन देकर सत्ता शील कर दिया था ।
इस घटना से राजनीति के सारे महापंडित एवं राजनीतिज्ञ हतप्रभ रह गए थे । सभी का यह मानना था - लालू प्रसाद यादव अपना राजनितिक अस्तित्व बचाये रखने के लिए, बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार को मझधार में धोखा ज़रूर देंगे । लेकिन, जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले यह दोनों ही नेता - नितीश कुमार एवं लालू यादव - फेविकोल की जोड़ की तरह एक साथ चिपके रहे । इसे, राजनीति की इस कहावत को माना जाए की , सत्ता में दोस्त का दोस्त, दोस्त होता है और दुश्मन का दुश्मन , दुश्मन होता है , या फिर सत्ता के खेल में इन दोनों नेताओं को अपने अस्तित्व को बचाये रखने की मजबूरी कहा जाए । ख़ैर , जो भी हो , लक्ष्मीकांत मिश्रा को इस सब से क्या लेना - देना ? हद्द तो तब हो गई जब इस नेता ने (लालू प्रसाद यादव) अपने गठबंधन में congress के साथ - साथ और कुछ दलों को शामिल कर एक महा रैली बिहार में सारे नेताओं के प्रमुखों को एक साथ करके, कर दिखाई ।
गठबंधन, अपने आप महा गठबंधन बन गया। इस महा गठबंधन में भारतीय राजनीति के सारे मूल तत्व विद्यमान है , सिवाय इसके की यह सब आपस में पूर्व में एक दूसरे के घनघोर विरोधी थे , इसी को कहते है - भारतीय राजनीति । प्रजातंत्र का यह अनोखा मेल विश्व में शायद ही कही देखने को मिले । इस महा गठबंधन के सामने, भारतीय राजनीति में आज के परिदृश्य में सबसे प्रमुख पार्टी या दिल्ली में सत्ता शील भाजपा एवं आम जनता के सबसे लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता की प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा कर आमने - सामने आ गए हैं । इसीलिए मैंने इस लेख का शीर्षक - मोदी versus लालू दिया है । लोकसभा चुनाव को अभी समाप्त हुए १८ महीने भी नहीं हुए है , नरेंद्र मोदी की लोप्रियता का जादू अपने शिखर पर था और उस जादू ने इस जादू ने बिहार पे भी अपना असर दिखाया था । अब, यह जादू अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई, हरियाणा एवं दिल्ली के बाद अपने को प्रतिष्ठित बनाये रखने की लड़ाई लड़ रहा होगा ।
बिहार एक राजनितिक रूप से प्रमुख राज्य है , इसलिए देश ही नहीं , विश्व की निगाह भी नरेंद्र मोदी के जादू का असर बरकरार है की नहीं - यह जानने को बेताब है। नरेंद्र मोदी जी , अमेरिका एवं अन्य राष्ट्रों का दौरा करके अपनी मान प्रतिष्ठा को बचाये रखने के लिए इस संग्राम के प्रमुख योद्धा के रूप में कूद पड़े है । वह शायद इंदिरा गांधी , या यूँ कहें की कांग्रेस के पूर्व प्रधान मंत्रियो या नेताओं से प्रभावित होकर , बल्कि में दो कदम आगे बढ़ कर यह कहूँगा की ,अपने आप से आत्म मुग्ध होकर भाजपा एवं उनके साथ मिल कर लड़ रही पार्टियो का नेतृत्व कर रहे हैं । आत्ममुग्ध मैंने इसलिए कहा है की यह पहले ऐसे प्रमुख सेनापति है जो अपने अस्तित्व के आगे अपनी ही पार्टी से ऊपर का दर्जा प्राप्त कर लेते है । नरेंद्र मोदी जी - अपने स्वयं का बखान करते वक़्त , अपनी ही पार्टी को नगण्य साबित कर देते है ।
देश के प्रधान मंत्री पद की गरिमा का विचार इनके ज़ेहन से बिलकुल निकल जाता है , यह प्रतिद्वंदियों पर अपनी वाणी का सैय्यम खो देते हैं । नरेंद्र मोदी - देश के पहले प्रधान मंत्री है जो चुनाव में राष्ट्रपति पद की गरिमा को भूल कर राष्ट्रपति के कहे शब्दों का चुनावी सभा में उपयोग कर रहे है । लक्ष्मीकांत मिश्रा नहीं समझ पा रहा है की यह आत्ममुग्ध प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी भारतीय राजनीति को कौन सी दिशा दे रहे हैं ? भारतीय राजनीति के सभी नागरिक जो थोड़ी भी राष्ट्रीयता अपने अंदर रखते हैं , संविधान को मानते हैं , धरम निरपेक्ष हैं , वह शायद मेरी बात से सहमत होंगे , ऐसा में इसलिए भी कह रहा हूँ की मैंने पूर्व में भारत के प्रधान मंत्रियो को भी राज्य की विधान सभाओं में जाकर भाषण देते हुए देखा और सुना है ।मुझे जितनी समझ है , मैं कह सकता हूँ की पूर्व के प्रधान मंत्रियो ने अपनी उपलब्धियों एवं अपने दाल की नीतियों एवं आगे की कार्य योजनाओं के द्वारा ही भारतीय जनमानस को सम्बोधित किया है ।
पूर्व के ज़्यादातर प्रधान मंत्रियो ने अपनी गरिमा के अनुरूप व्यक्ति विशेष पर कभी टिप्पणी नहीं की ,इन प्रधान मंत्रियों ने साधारणतः अपनी प्रतिद्वंदी राजनितिक दलों की नीतियों एवं इनके कार्य करने के आधार पर ही टीका टिप्पणी की। भारतीय राजनीति किस दिशा में जाएगी यह तो बाद का विषय है , लेकिन इस समय समाचारो के सारे प्रमुख चैनल भी अपनी मान - मर्यादा एवं जिम्मेदारी भूल कर , दोनों ही गठबंधनों की टीका - टिप्पणियों पर संगोष्ठियाँ कर रहे हैं । सोशल मीडिया , भारतीय राजनीति में बड़ा प्रमुख हथियार हो गया है। जितना मुझे याद आता है इसकी शुरुआत भाजपा के पूर्व स्वर्गीय नेता - प्रमोद महाजन ने अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधान मंत्री थे , को पुनः स्थापित करने के लिए Shining India को प्रचारित करने के रूप में किया था। इस लोकसभा के चुनाव में , नरेंद्र मोदी को सत्ताशील करने में इस हथियार का भरपूर उपयोग किया गया।
लालू प्रसाद यादव जैसे ख़लिश नेता ने भी इस हथियार को समझ लिया , या फिर यु कहे की लोहा ही लोहे को काटता है जैसी, कहावत को साबित करने के लिए उन्होंने इसका उपयोग शुरू कर दिया । नरेंद्र मोदी को जवाब देने के लिए आज शायद देश में लालू प्रसाद यादव सबसे अग्रणी नेता होंगे जो की नरेंद्र मोदी की भाषण (स्पीच) खतम होने के चंद मिनटों के पश्चात ही इस हथियार का उपयोग कर tweet के माधयम से जवाब दे देते हैं । देखना है इन दोनों गठबंधनों के किस मुखिया की - नरेंद्र मोदी या लालू प्रसाद यादव को 8 नवंबर , 2015 में सफलता प्राप्त होती है। बिहार की जनता , राष्ट्रीय नेतृत्व को स्वीकारती है - यानी की नरेंद्र मोदी (भाजपा) या फिर प्रादेशिक नेताओं को , यानी की लालू प्रसाद यादव को।
विशेष बात यह है की - दोनों ही गठबंधन के सेना प्रमुख, बिहार प्रदेश के मुख्य मंत्री दौड़ से बाहर हैं । नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हैं , और लालू प्रसाद यादव न्यायालय द्वारा किसी भी राजनितिक पद पर बैठने से प्रतिबंधित हैं।
वाह रे.…प्रजातंत्र !!
Lucky Baba
Om sai …







