Monday, May 27, 2013

                      
                              मानवता     पे    घ्रणइत    हमला
प्रजातांत्रिक भारतीय इतिहास में इस तरह की निदनीय एवमं घ्रडित घटना शायद ही पहले कभी घटी होगी मुझे भूलने की बिमारी है लेकिन फिर भी मै दावे से कहं सकता हूँ
की मेरे देश में इतनी घ्रडित घटना पहले कभी नहीं घटी होगी जिस देश की आजादी में अहिंसा मूल मन्त्रं
रहा हो जिस मूल मन्त्रं ने अपने को साबित ही न किया हो बल्की विश्व को एक नई राह दिखाई हो जिसका जनक भारत देश हो जिसे पूरा विश्व शिविकार चुका हो जो आज विश्व के लिए मूल मन्त्रं का कार्य
कर रहो उस देश में हजार बारह सोंव लोग बदूकं लेकर एवमं रोड माइन्स बिछाकर एक साधारण् से राजनीतिक जुलुस को जो की शुद्ध रूप से शान्तिय पिर्य एवमं हलचल मात्रं था सोंव डेढ सोव लोग रहे होगें
कुझ गाड़ियां होगीं कुझ अति उत्साह में रहे होगें कुझ बुजुर्ग भी रहे होगें जो शाररिक रूप से भले थके रहे हो
चुकीं राजनेतिक मूमेंट था लोगो में जोश भरने के लिए अपनी थकान भुलाकर इस असहनीय गर्मी में भी अपनी
गरिमामय उपस्थिति दर्ज करा रहे थे किसी भी प्रजातांत्रिक  शान्तिय प्रिय देश की राजनेतिक गतिविधियों की आदर्श हलचल की मिसाल प्रस्तुत कर रहे थे विश्व के किसी भी देश का बड़े से बड़ा नेता नागरिक
या फिर सामन्य सा इन्सान भी जिसे देख कर हम से इर्षा कर लेता या अपने देश में जाकर बताता की राजनीतिक
हलचल क्या होती है इससे अझा उधारण क्या होता ! ये राजनेता एवम कार्यकर्ता   अपने गरिमामय इतिहास को ही तो दिखा रहे थे याँ यूँ कहे उसका पालन कर रहे थे इसमें इनका क्या दोष था इन्हें
क्या मालूम था जिस व्यवस्था से इनके बुजोर्गो ने विश्व के सबसे ताकत वर देश को इस देश से खदेड़ दिया था
वही वयवस्था इन्हें अपनों के द्वारा मोत दिलाएगी या फिर मोत से बदतर कष्ट ! जिस घटना से पूरा विश्व परेशान है दुखी है उस कुक्र्त्य को करके ये नाच गा रहे थे ये साधारण सामान्य इंसान नहीं हो सकते
ऐसे लोगो को सभ्य  समाज का नागरिक केसे कहा जा सकता है ये या तो पाषंड युग के हो
सकते हैं याँ फिर जिन्हें आधुनिक विज्ञान नहीं मानता भूत पिशाच की दुनिया के लोग हो
सकते है उसी दुनिया की जो कहानिया सुनी है उसमे ही इस तरह का कभी कभी जिक्र सूना है लेकिन वहां
भी सुना है की भूत पिशाच भी निर्दोष लोगो को या फिर सामान्य लोगो के साथ इस तरह का
घण्इत कार्य नहीं करते कहानियो में जितना पढ़ा या फिर सुना है उसमे एक चीज समझ में
आई की उस दुनिया के लोग उन्ही से बदला लेते है जो उन्हें तगं करते है या फिर जाने अनजाने में कोई
इंसान उस वयवस्था के खिलाफ कुझ गलत कर दे तब बदला लेते है लेकिन ये तथा कथित नक्सलाइड
तो इस दूसरी दुनिया से भी बदतर लोग निकले मुझ से अगर कहाँ जाय की भूत पिशाच और नकस्लाईड
में किसी एक को तुम्हे चुनन्ना है या फिर पूजना है और कोई रास्ता नहीं है तो मै बिना देर किये भूत पिशाच
को चुनुगाँ क्योकि उनको चुनने के लिए मेरे पास बहुत से तर्क है नक्सलाईड की तुलना में,
कोई इसकी वजह पूझेगा तो इसकी कई वजह गिना सकता हूँ उसमे एक दो ऊपर लिख भी चूका हूँ
मै तथाकथित नक्सलाईडो से एक नम्र निवेदन करूंगा की वो अपने को नक्सलाइड कहना बंद कर दे
क्योकि मैंने नक्सलाइड आन्दोलन के बारे में सूना है कुझ थोड़ा बहुत पढ़ा भी है और मेरा ये मानना है
की आन्दोलन शब्द जहाँ कही भी आता हैं उसमे कोई न कोई सिद्धांत अवश्य होता है जिनसे कोई सहमत  होता है और कोई सहमत नहीं होता लेकिन ये तैय है की सिद्धांत पिशाचिक से भी बदतर नहीं होते
लोगो को मारना मारने के बाद नाचना गाना जो बच जाय उनको उठा ले जाना वो भी दो चार नहीं सत्तर
अस्सी लोगो को ! नरभ्झी भी घ्रणा करने लगेगा तुमसे, नक्सलाईड आन्दोलन के जनक और उनके
सिद्धन्त मानने वालो की तो बात ही  अलग है ! मुझे तुम दिल पे हाथ रख के बताव की कही तुम
अती महत्वाकंझी नेता की राजनीती का शिकार तो नहीं हो गए किसी राज नेता ने कही तुम्हें अपने षडंयंत्र
में तो नहीं फसाया था और अगर ये सही है तो अब तुम्हें केसा लग रहा हैं एक तो इतना घ्रडित कार्य वो भी
किसी के षडंयत्रं का शिकार हो के ऐसा कुक्र्त्य कर देना जिस को तुम खुद को  माफ़ करना तो झोड़ो  कही ज्यादा अपने आप से विचार किया तो मानसिक इस्थिति ठीक रख पावोगे इस्पे भी मुझे शक है ऊपर वाला
तुम्हे क्या सजा देगा ये बाद की बात है आत्मग्लानी बहुत ही खतरनाक बीमारी होती हैं ये अगर दिमाग में घर
कर जाये तो शरीर एवमं दिमाग दोनों को ही बड़ा नुक्सान पहुचाती है ! और जिस दिन तुम्हे ये लगे की
तुम जिस विध्यां में माहिर थे ब्रेन वास करने की कला में उसी विध्यां का इस्तेमाल किसी राज नेता ने
तुम्हारे ऊपर कर दिया और अपना उल्लू सीधा करने के लिए तुम्हारा ब्रेन वास करके तुम्हीं से इतना घ्रडित कार्य करा दिया जिसको तुम जब भी सोचोगे तो मानसिक और शारारिक रूप से बी बहुत पीड़ा होगी एवमं
आत्म ग्लानि से मन भर जाएगा जिसके बहुत वीभत्स परीडाम होते मैंने देखे है ..........बाबा          

                             

Wednesday, May 15, 2013

आज मन फिर क्यू  उदास है ये  मन फिर क्यू रोया हैआज 
कहने को तो  हर रिश्ता हैं मेरे आस पास और साथ साथ  
फिर इन्ही  रिश्तो ने क्यू कर  अकेला कर दिया है आज
था इंतजार जिनका वो मिले तो मुझे  पर मिलकर रुला गए
आज मन फिर क्यू उदास है ये  मन फिर क्यू रोया है आज
                 हम बड़ें सब्र से उनसे मिलने  का ज़तन कर रहे थे आज
                जाने किस बात से नाराज थे वो की मिलते ही रूठ  गये आज
                ये रिश्ते होते है क्या और क्यू कर परेशा करदेते है इस कदर
                अजीब बातहैं रिश्तो में वो रूठ गए और  हम परेशा हो गए इस कदर
                  आज मन फिर क्यू उदास है ये मन फिर क्यू रोया है आज
था उनपे बड़ा नाज़ हमे की रिश्तो का सहारा हमे मिल गया
दर्द के  अहसास को  बड़ी बेरूखी से आज रिश्तो ने हमें सिखा दिया
क्यू मै ये रिश्तेऔर इन रिश्तो के दर्द से भी रिश्ता निभा रहा हूँ में
ये भी  अजीब जिदहै मेरी  सब जान कर भी क्यू नहीं मानता हूँ  मै 
में जानता हूँ फिर भी दुश्मनों में अपने रिश्ते क्यू  ढूढ़ता रहताहूँ में
आज मन फिर क्यू उदास है ये मन फिर क्यू रोया है आज
  
       बाबा 

                           
                

Saturday, January 5, 2013

इस तरह इंसान क्यू कर परेशान होगा
देख कर समाज के ये हालात अपने से ही क्यों कोई सवाल करेगा
कल तक जो आइना दिखाते थे किसी और को
उसी आईने में अपने को निहार कर अपनी ही सकल से इस कदर परेशान होगा
खुद को बचाकर किसी और पे उगली उठाने की आदत से खुद को निकालना बड़ा मुश्किल होगा
अब सवाल के घेरे में वो खुद है शवालो  सेखुद परेशान केसे होगा
आईने में शक्ल भी तेरी है शवाल भी तेरे अपने है हालत से हारने की आदत भी तो तेरी अपनी हैं
बाते तू हिमालय की ही करता है शेर को पछाड़ने का दम भी तू खुद दिकाता है
आंधियो से लड़ने की बाते भी तेरी अपनी है तूफ़ान को ललकारने के होसले भी तू ही बताता है
ख़ामोश क्यों हो जाता है या फिर जोर जोर से चिलाने क्यों लगता है ज़रा हालात बिगड़ते ही
तेरे खुद कहे  अंदाज ये कहने के लिए मजबूर क्यों हो जाते है लिखने को लिख कुछ भी दे
सच्चाई से लड़ने के वक्त  

Monday, December 3, 2012

                                             दर्द 

ग़ैरों से भला मुझे क्या गिला, पत्थर पे सर पटके हैं मैंने 
मेरे अपनों ने ही दिये ये दर्द हैं फूलो से मेनें जख्म खाए हैं
                                                 ये अपने मुझे हद तक तो तोड़ देते हैं देकर कोई शब्दों का ज़ख्म                                                                      कई कई बार सन्न रह जाता हूँ मेरे अपनों के शब्दों के तीर खाकर
वो भला क्या जाने और क्यू जाने मेरे इस अथाह दर्द को
दर्द देकर मुझे,सताने के बाद रुलाने की आदत पड़ गई हो जिनको  

                                                है इंतहा इस बात की कि दर्द भी दिये मेरे अपनों ने और दर्द भी मेरे अपने हैं                                                       उसकी इस इंतहा तक की नादानी को जी रहा हूँ में,इस दर्द को पी रहा हूँ में  

हर बात बिगाड़ कर अपनी मुझपे वो तोहमत लगा देते है 
खुश हूँ में इस बात पर की वो कुछ तो सजा देते है

                                               मुझे सताने का उनका अंदाज ही निराला हैं वो खुद को दर्द देते हैं             
                                               दर्द से हम जब परेशा हो न जाने क्यूँ इठलानेऔर इतराने लगते है    
                                                                                                                         


बाबा लकी 

Saturday, November 24, 2012

                                                         नरेंद्र मोदी की शेर की सवारी
भरतीय राजनीति में आज कल सबसे चर्चित नामो में से एक है नरेंद्र मोदी ये नाम पिछले दस बारह सालो में जिस तेजी से आगेआया वो भी कम दिल चस्प नही है कई लोग इसकी वजह नरेंद्र मोदी के भाग्य को देते है कई लोग उनकी कार्य शेली को कई लोग उनके मीडिया मेनेजमेंट को कई लोगो का मानना की किसी भी कार्य को करने से जादा उसके श्रेय को अर्जित करने की कला में मोदी आज के राजनितिक परिद्रश्य में सबसे प्रमुख राजनेता माने जाते है मोदी की कार्य शेली अहंकारी भी प्रतीत होती है जिससे भी कई नेतावो को तकलीफ होती है जिसका उपयोग मोदी कई बार मंच पर बेठे नेतावो के स्वाभिमान को बिना कुझ बोले परेशान करने में करते   है इस लिए भी मोदी अपनों के बीच में भी कुछ कुछ  अहंकारी दिखाई देते हैं मोदी मंच हो या फिर केमरा लोगो को असहज कर देते है उन पर प्रतिक्रिया जरुर आती हैं मोदी के कुरते पयजामे भी आम नेतावो से अलग होते है कहने का मतलब ये है की वो आम नेतावो में अपने को खाश या फिर अपनी अलग पहचान के साथ दिखाई देने में जादा सुकून महसूस करते है ओर उनकी ये सारी हरकते उनके समकक्झ नेतावो में एक विशेष प्रकार का द्वेष उनके प्रति पैदा कर देती है उस पे सोने में सुहागा उनके भाषण  देने का अंदाज, वो म्रदु भाषी होने में भी  अपने आत्म सम्मान को पूरी ताकत से बचाकर मंच में बेठे अपने किसी भी सम्कक्छ  नेता के ऊपर कटाक्झ देने से नही चूकते और अगर वो अकेले ही मंच में हैउनके समकक्झ का कोई नेता उनकी पार्टी का नही है तो विरोधी दल के नेतावो की नक़ल करने और उनका मजाक उड़ाने में उनको विशेष आनद आता हैं मोदी ने अपनी इस तरह की ब्राड इमेज खुद बड़ी मेहनत से बनाई हैंये वो इमेज है जिसे अब मोदी को खुद संम्भाल ना होगां याँ यूँ कहें की मोदी ने खुद अपनी सवारी शेर की चुनी हैं और जब उन्होंने ही खुद शेर को चुना है तो मेरा ये   मानना हैं की मोदी को इसके परिणाम भी पता हगें !में जितना शेर की सवारी के बारे में जानता हूँ या अब तक इस कहावत को जितना समझ पाया हूँ वो ये हैं की अब शेर को चलावो और फिर चलावो जब तक आप इसको चलावोगे तब तक आप का कोई शानी नही आप एक साह्शी और सफल इंसान है सब आपके रोब और रूतबे की कद्र करते है विरोधी भी आपको सम्मान देते है किन्तुं जिस दिन आप इससे उतरे उस दिन ये भूखा शेर सबसे पहले आपको खाने का प्रयास करता हैं या फिर छोटी सी भूल भी आपको उसके पेट में पहुचा देती हैं कहने का मतलब ये है की सत्ता रुपी शेर को मोदी जी अब आप चलाते रहिये आपकी परीझा की घड़ी काफी पास आ गई हैं इस शेर को चलाने में आप को जो भी कसरत करनी है वो करिए लेकिन ध्यान रखिये कसरत आपको शेर के ऊपर बेठ के ही करनी हैं जरा सी चूक आपकी आपको अपने ही शेर के भूक को  शांत करने के काम आ जायेगी इस कहावत को पढ़ा सुना तो कई बार था लेकिन वो मजा नही आता था या यूँ कहे की इसका उपियोग जिन लोगो से मेनें सूना उसमे शेर तक तो ठीक लगता था किन्तुं शेर चलाने वाला ना जाने क्यूँ मुझे ठीक नही लगता था इसीलिये ये कहावत मेरे लिए बेमानी साबित होती थी शायद दिमाग में कही बेठा होगा की शेर चलाने वाले में कुझ खाश गुड होने चाहिएऔर उसमे सबसे पहला गुण ये होना चाहिए की ये निर्णय वो खुद ले और लेने के बाद किसी की परवाह ना करे कुझ कुझ आपमें वो गुण दिखे तो बस लिखने का मन बन गया और लिख दिया !शेर के शवार में एक गुण ना जाने कहाँ से आ जातां हैं और वो गुण होतां हैं की वो सबसे ऊपर है उसकी योग्यता का कोई भी इन्शान नही है अगर वो किसी को सम्मान देता है तो समझो की उसपे बड़ा भारी अह्शान कर रहा है और जिस को सम्मान मिला है ऐसा लगता हैं जेसे उसको पहले से ये हिदायत दे दी जाती है की इस सम्मान के एवज में अब तुमको जीवन भर इस शेर के सवार की तारीफ़ करनी हैं क्रतग्य रहना है जाहिर हैं की शेर के सवार की क्या इस्तिती होगीं इसी अवस्थां में वो अपने आपको सर्वप्रमुख मानने लगता हैं इस कार्य में धीरे धीरे वो अपने चारो तरफ चाटुकारों का समूह बना लेता हैं ये चाटुकार हमेशा इस बात का ध्यान रखते है की सवार की कार्य प्रणाली से लेकर उनके चलने बेठने तक की सभी लोग तारीफ करते वक्त इस बात का ध्यान रखे की ये विशेषता सिर्फ शेर के सवार में ही हैं और जिस किसी में अगर है भी तो वो शेर के सवार की नकल हैंऔर इस में उनको तथा उनके समर्थको को विशेष आनदं आता हैं   इस तरह शेर सवार  {मोदी}अपनी तथा विरोधी पार्टीयो में एक अह्कारीं नेता के रूप में जाने जाते है ये इस्थिति जब तक आप सफल है सत्ता में है  तब तक तो लोगआप का लिहाज करते है  सम्मान में खड़े होते है चाटुकारों की फोज हमेशा आपके अहंकार को बढाने में लगी रहती है ये वो फोज है जिसने नजाने कितने लायक और समझदार शासको को धीरे धीरे निकम्मा बना दिया हैं ! मोदी जी एक और गुण अहकारीं शासक में देखा जाता है और वो मेरे ख़याल से ये है की वो हमेशा अपने को विरोधी खेमे के सर्व प्रमुख के बराबर का मानता है वो लड़ाई कोई भी लड़ रहा हो उसमे विरोधी दल का मुखिया हो या ना हो लेकिन वो अह्कारं में बार बार विरोधी दल के मुखिया को ललकारते हुए दिखता है शायद वो अपने अहकार की वजह से ऐसा हो या फिर हो सकता है की चाटुकारों की सलाह से ऐसा करता हो लेकिन होता ऐसा ही है ऐसी इस्थिती अह्कारी शासक के लिए बड़ी ही हास्यपद हो जाती है मेरे ख़याल से इस इस्थिति से बचना चाहिए ख़ास कर आप को जब ये पता हो की विरोधी दल के प्रमुख के लिए दुएम दर्जे से भी निचे का युद्द हैं ! बल्कि में तो ये कहुगां की ऐसे युद्द का अगर आपको अहशास भी हो जाए तो किसी तरह से अपने को झोकने की बजाय अपने किसी समकक्झ के नेता को मैदान में उतार देना चाहिए और खुद को रणनीतिकार के रूप में लाना चाहिए इससे कई फायदे होते है आपकी साख बची रहती है आप विरोधी दल के नेता के समकक्झ के नेता के बराबर के माने जाने लगते हो और अगर हार भी गए तो सीधे आपको को कोई दोष नहीं देता है याने की अगर शेर के ऊपर से गिर भी गए तो शेर के मूह में जाने से बच  जाते हो और अगर जीत गए तो आपका कद बहुत बढ जाता हैं और आप स्वमेव विरोधी दल के नेता के समकक्झ आ जाते हो याने बिना किसी भय के शेर को चलाने के मास्टर माने जाने लगते हो !ये सब तो मेरे दिमाग की उपज मात्र है आप शेर की सवारी कर रहे है आप मुझ से बेहतर समझते है भगवान से तो में येही दुआ करूगां की बड़ी मुश्किल से तो शेर का सवार मिला है ना मंजिल तक सही कुझ दूर तक तो इसे किसी भी हालत में शेर की सवारी करने दी जाए
.............................................................बाबा लकी          

















Friday, November 23, 2012

                                   पैरों की आहट 

मेरा तेरे पेरो की तारीफ़ करने से तेरे शरमाने  की वो खामोश अदा
धीरे धीरे मुशकुराना फिर जोर से खिल खिलाने की अदा
वो तेरे सुन्दरं से पैरो का जरूरत से भी ज्यादा सुन्दरं होना
मेरा तेरे पैरो की तारीफ़ करना तेरी खामोशी से निहारने की अदा
अगूठे से जमी को कुरेदना और मासूमियत से मुझे निहारने की अदा
किस लिए है और क्यूँ है तेरे इस तरह बला के हसीन पैर
मेरा तेरे पैरो की तारीफ़ करने  से तेरे शरमाने की वो खामोश अदा
धीरे धीरे मुस्कुराना फिर जोर से खिल खिलाने की अदा
                                  बड़ी खूब सूरती से पैरो को छूपाने की और कभी दिखाने की अदा                            
                                  तेरे पेरो को देखते वक्त मेरी निगाहोंको पढने की तेरी मासूम सीअदा
                                  न जाने क्यूं मेरी किसी भी ख़ामोशी पे वो तेरे  पैर हिलाना की अदा
                                 मेरा धीरे से  थोड़ा सा मुशकुराना तेरा जोर से खिल खिलाने की अदा
                                 मेरा तेरे पैरो की तारीफ़ करने से तेरे शरमाने की वो खामोश अदा
                                   धीरे धीरे मुशकुराना फिर जोर से खिल खिलाने की अदा
तेरे  सजने सवरने में पैरो को, बड़े ही करीने से सजाने की अदा
मेरे कुछ न बोलने पर तमतमा के बारबार मुझे देखने की अदा
जरा सी मेरी तारीफ़ में वो जी भर के मुझ से लिपटने की अदा
मेरा घबराके सहमना तेरा मुझ से इतराके के लिपटना की अदा
मेरा तेरे पैरो की तारीफ़ से तेरे शरमाने की वो खामोश अदा
धीरे धीरे मुशकुराना फिर जोर से खिल खिलाने की की अदा
                                  बड़ी खूब थी तेरी पुरानी वो यादे उन यादो को सुनाने की तेरी वो अदा
                                   किसी के आ जाने पे वो आ गया कहके तेरे खामोश हो जाने की वो अदा
                                  खामोशी में आखे झुकाकर धीरे से उसे देख कर मुश्कुराने की तेरी वो अदा
                                किस कदर खामोश हो जाया करती थी तू उसके आने भर की आह्ट  से
                                   जाते ही उसके पैरो को पटके जमी पे वो जोर से ठहांका लगाने की अदा
                                   मेरी तेरे पैरो की तारीफ़ करने से तेरे शरमाने ने  की वो खामोश अदा 
                                    धीरे धीरे  मुशकुराना फिर जोर से खिल खिलाने की अदा                                      
                                 
         बाबा लकी                                    
















                    
                                

Sunday, November 11, 2012

                                  हर पल न जाने क्यू मुझे फिर याद आ रहा है

                                  बीते हुए पलो मे क्याअब भी कुझ बचा है

                                                        किस से कहूँ की किस कदर दिल है मेरा दुखा

                                                        दिल बचाता हूँ अगर में,तो सासें रूकती है मेरी   

                                 सासें समेट कर न जाने क्यूँ जीये जा रहा हूँ में  

                                 हर पल न जाने क्यू मुझे फिर याद आ रहा है 

                                                        बीते हुए पलो में क्या अब भी कुझ बचा है  

                                                        दुखता है दिल मेरा और यादे भी कम नही है

                                 क्या करूगां में भला यादो को उनकी संजो कर 

                                 यादे सताती है उनकी और दिल है मेरा रोता 

                                                        पलो को बचाने की जिद में बरस खो गया है मेरा 

                                                        हर पल न जाने मुझे क्यूँ फिर याद आ रहा हैं 

                                बीते हुए पलो में क्या अब भी कुझ बचा है