Saturday, October 10, 2015

Lucky Baba 









भारतीय राजनीति: 

 राम मंदिर से लेकर गौ मांस तक


भारतीय राजनीति में भाजपा, मुख्य रूप से अयोध्या में राम मंदिर , बाबरी मस्जिद को हटा कर , उसी स्थान पर राम मंदिर बनाने के मुद्दे से आगे बढ़ी । भारत देश के नागरिकों ने भारतीय राजनीति का यह दौर भी बड़े हतप्रभ होकर देखा । V.P Singh देश के प्रधान मंत्री थे , और सत्ता से चिपके रहने के लिए उन्होंने देश को मंडल आरक्षण की आग में झोंक दिया । V.P Singh का समर्थन कर रही भाजपा ने अपने आप को सत्ता से अलग करते हुए , राम मंदिर का राग छेड़ दिया । इसी वजह से , देश में मध्यावती चुनाव लग गया जिसमे पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी की हत्या हो गई । देश में Congress के नेतृत्व की संयुक्त सरकार बनी , जिसका नेतृत्व प्रधान मंत्री के रूप में P.V Narsimha Rao ने किया , यह बड़ा अजीब और विशेष प्रकार का दौर था भारतीय राजनीति में । इस समय देश, राष्ट्रीय स्तर से ले कर राज्य स्तर तक बड़े अजीब - अजीब आंदोलन एवं राजनितिक प्रयोग के दौर से गुज़र रहा था  जिसे भारतीय जनमानस ने देखा ।  उन्ही में से एक प्रयोग देश के प्रधान मंत्री पद पर 1965 - 66  में लाल बहादुर शास्त्री जी के बाद दूसरी बार  Congress के नेतृत्व में देश की सत्ता कांग्रेस के हाथ में तो थी लेकिन , प्रधान मंत्री - P.V Narsimha Rao जी , गांधी - नेहरू परिवार के सदस्य नहीं थे। 

P.V. Narsimha Rao, दक्षिण भारत से थे एवं गठबंधन की सरकार चला रहे थे । P.V. Narsimha Rao जी अपनी ही पार्टी की अंतर कलह को भी झेल रहे थे , तभी भारतीय जनता पार्टी ने राम नादिर मुद्दे को उठा कर देश में एक नया जन आंदोलन छेड़ दिया । राष्ट्र ने पहली बार अपनी प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में बहुसंख्यक वर्ग - विशेष के आंदोलन को देखा । बहुसंख्यक समुदाय ने इसमें विशेष रूचि दिखाई , प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का यह आंदोलन विश्व में अनोखे आंदोलन  के रूप में जाना जायेगा । इस आंदोलन का नेतृत्व भाजपा के शीर्ष नेता कर रहे थे , जिसमे मुखिया के रूप में उस समय के भारतीय जनता पार्टी के धाकड़ नेता - लाल कृष्ण अडवाणी उभर कर सामने आये । यह एक तरीके से मंडल के ऊपर कमंडल की राजनीति का परिणाम था । प्रजातंत्र में सार्वजनिक रूप से बहुसंख्यक समुदाय द्वारा चलाया हुआ यह आंदोलन विशेष रहा जिसकी परिणीति आखिर में यह हुई कि , अयोध्या की बाबरी मस्जिद को कार सेवको ने ढहा दिया । राष्ट्र की राजनीति , दो समुदायों की लड़ाई के बीच सिमटने लगी । मंडल और कमंडल की लड़ाई , धर्मनिरपेक्ष (secular) और बहुसंख्यक समुदायों के बीच आ कर खड़ी हो गई । भाजपा ने राम मंदिर को मुद्दा बनाया एवं अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में देश को पहला भाजपाई प्रधान मंत्री दिया । 

धर्मनिरपेक्ष - प्रजातान्त्रिक  व्यवस्था में यह भाजपा का अनूठा प्रयोग सफल हुआ । इस प्रयोग को भाजपा ने जड़ी - बूटी के रूप में लिया, जिससे निकला हुआ परिणाम - अटल बिहारी वाजपई जी को अपने कार्य काल को लगभग पूर्ण करने  का अवसर दिया । राष्ट्र ने , गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई को करीब - करीब पूर्ण कालीन  (5 साल ) प्रधान मंत्री के रूप में देखा । भाजपा को हिंदूत्व की अलख लगाने का सम्पूर्ण श्रेय गया । सत्ता शील होने के पश्चात बाजपई सरकार ने राममंदिर मुद्दे को करीब - करीब नकार सा दिया , जिसका विरोध भी उन्होंने कई बार अपने सत्ता में रहते हुए झेला । परिणाम स्वरुप , बाजपई सरकार जो की एक संयुक्त सरकार (NDA )थी सत्ता से बाहर हो गई लेकिन, भाजपा को भारतीय राजनीति में राममंदिर मुद्दे ने या यूँ कहे की हिंदूत्व के मुद्दे ने स्थापित कर दिया । इसके परिणाम स्वरुप,भारतीय जनता पार्टी ने अपने बल बूते पर देश के कई राज्यों में अपनी  सरकारें बनाई। अब भाजपा राममंदिर मुद्दे को भूल कर हिंदूत्व के विभिन्न - विभिन्न मुद्दो को उठा कर , राष्ट्रीय राजनीति एवं प्रादेशिक राजनीति में अपनी पैट ज़माने लगी , जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत के कई राज्यों में भाजपा की  सरकारे स्थापित हुई एवं राष्ट्रीय स्तर पर वह Congress के बाद दूसरा सबसे प्रमुख राजनितिक दल बना । 

भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे पे, राममंदिर के बाद गंगा की सफाई , जम्मू - कश्मीर में धारा 370 , पाकिस्तान का विरोध और गौ मांस जैसे प्रमुख मुद्दे रहे। इनका सम्मिश्रण इन्होने विकास की प्रयोग शाला के साथ, 2014 के चुनाव में , भ्रष्टाचार की चाशनी के साथ मिला कर पूर्ण बहुमत की सरकार बना कर , प्रधान मंत्री पद पर श्री नरेंद्र मोदी स्थापित किया । विकास एवं भ्रष्टाचार की चाशनी में गौ मांस का मुद्दा आजकल भारतीय जनता पार्टी का सर्व प्रमुख मुद्दा है । राष्ट्र , विशेष कर अल्प संख्यक समुदाय , अपने को असुरक्षित सा महसूस करने लगा है । पूरा राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष एवं बहुसंख्यक - हिंदुत्व के मुद्दे पर बंट गया है। अब साधारणतः , राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक राजनीति इन्ही मुद्दो पर आगे बढ़ रही है , अगला चुनाव बिहार राज्य में है , जिसके परिणाम 8 नवंबर तक आ जायेंगे । यह चुनाव भी , बहुसंख्यक हिंदुत्व के मुद्दे - गौ मांस एवं धर्मनिरपेक्ष के बीच बटा हुआ है , जिसके परिणाम 8 नवंबर को सारा राष्ट्र देखेगा । 


राममंदिर से चला हुआ आंदोलन , गौ मांस के स्टेशन की तरफ जा रहा है । गंगा की सफाई , काशी को जापान के  धार्मिक शहर qwetta बनाने का स्टेशन गुज़र चुका है । विकास के मुद्दे के स्टेशन , जैसे की - बुलेट ट्रैन का चलना , आदर्श शहर, skilled India , जैसे स्टेशन भी गुज़र गए है । अब अगला प्रमुख स्टेशन - गौ मांस की नीव पर , बिहार की सत्ता पर काबिज होना है । फिर कही चुनाव होगा, फिर कोई नया हिंदुत्व का मुद्दा होगा , फिर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में काबिज होगी । देखना है - भारतीय जनमानस इस प्रयोग को कब तक अपने काँधे पर ढोएगी । कब तक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र अपने मूल तत्व धर्मनिरपेक्षता को भूल कर , प्रजातंत्र के मूल तत्व को भूल कर , संविधान की आत्मा को भूल कर , किसी विशेष मुद्दे पर राजनितिक पार्टियों को सत्ता शील करता रहेगा , सत्ता पर बिठाता रहेगा ।                              


Lucky Baba 
Om Sai....  




Friday, October 9, 2015

Lucky Baba 




भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश और बिहार का रुख अगर समझ में आ जाए तो कहते हैं कि , देश की सत्ता पर किस पार्टी का वर्चस्व होगा - कहना बहुत आसान हो जाता है । इसकी मुख्य वजह क्या है, यह एक यक्ष प्रश्न सा है। भारतीय राजनीति के परिदृश्य में यह बात लगातार प्रमाणित हो रही है । देश की प्रमुख पार्टियाँ यह मानती है कि, इन दो राज्यों में वर्चस्व जमा दिया जाए तो भारतीय राजनीति का क़िला वतह करने में बहुत मुश्किल नहीं आती । मेरे (लक्ष्मीकांत मिश्रा) के विचार से इसकी प्रमुख वजह कुछ इस प्रकार हो सकती है: 

१. रोज़ी रोटी की तलाश में इन दोनों राज्यों से देश में ही नहीं, विदेश में भी सबसे ज़्यादा लोग इन दोनों राज्यों से ही जाते है । इसमें पढ़े - लिखे लोग और मेहनत (हुनर) से काम करके रोज़ी रोटी कमाने वाले , दोनों ही प्रकार के लोग होते है - कहने का तात्पर्य यह है कि , ज्ञान एवं मेहनती लोगो का संगम है । 

२. दूसरी वजह मैं यह मानता हूँ कि, इन दोनों ही प्रदेशो में राजनितिक ज्ञान (उत्सुकता), बाकी राज्यों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा है।शायद इसकी वजह - हिंदी एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान का सम्मिश्रण है । क्यूंकि - दिल्ली की सत्ता में काबिल होने के लिए हिंदी एवं इंग्लिश भाषा का ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है । 

३. मैं यह कह सकता हूँ कि , यहाँ की जनसँख्या का अनुपात , यहाँ की भौगोलिक स्तिथि से ज़्यादा है , जिसकी वजह से इन दोनों राज्यों का भारत देश की होने वाली आय में इनका हिस्सा सबसे अधिक होता है। 

४. चौथी वजह यह हो सकती है कि - भारत देश के जो चार प्रमुख धर्म पर आधारित जनसँख्या है - हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई - उनके प्रमुख धार्मिक स्थल एवं प्रमुख नदिया , जिनको माँ की तरह पूजा जाता है - इन्ही प्रदेशो में पाये जाते है। 

५. पांचवी वजह - इन दोनों राज्यों से सबसे ज़्यादा जनप्रतिनिधियों का आना है - जो प्रजातंत्र में किसी भी सरकार  की स्थिरता और अस्थिरता की प्रमुख वजह होती है। इन्ही में से एक राज्य बिहार में प्रजातंत्र का सबसे पवित्र त्यौहार - बिहार में होने वाला चुनाव है , जिसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है - जो की पांच चरणों में होगा , जिसका अंतिम चरण का मतदान 5 नवम्बर को होगा, एवं नतीजे 8 नवम्बर की देर शाम तक चुनाव आयोग के प्रोग्राम के अनुसार घोषित हो जायेंगे । 

इस बार, सत्ता का यह खेल बड़ा अजीब और रोचक सा दिखाई दे रहा है । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ - उसकी वजह यह है - जो पूर्व में प्रमुख राजनैतिक दुश्मन थे , वह साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे है , और जो मित्र थे वह प्रतिद्वंदी के रूप में आमने - सामने है । बिहार की राजनीति में इस समय दो प्रमुख गठबंधन चुनाव लड़ रहे हैं । एक तरफ - महा गठबंधन है , जिसमे इस चुनाव के पूर्व तक जो एक दुसरे के प्रतिद्वंदी थे अब एक साथ है - जैसे की Congress , RJD एवं JDU । दूसरी तरफ - NDA , जिसमे भाजपा , लोकजनशक्ति पार्टी एवं अन्य कई छोटे - छोटे दल सम्मलित हैं। 

मैं भारतीय राजनीति में ,प्रदिद्वन्दियो को हारने के लिए एवं सत्ता में काबिल होने के लिए इस प्रकार का गठबंधन शायद पहली बार देख रहा हूँ । यह भारतीय राजनीति को कौन सी दिशा देने जा रहा है - आज की तारीक़ में कोई भी भविष्यवाणी करना निरर्थक साबित होगा । इसकी वजह शायद मैं यह मान रहा हूँ कि - बिहार राज्य के पूर्व मुख्य मंत्री एवं केंद्रीय सरकार के पूर्व प्रमुख मंत्रियो में से एक लालू प्रसाद यादव की राजनितिक दूरदृष्टिता  का परिणाम मानता हूँ । इस बात को कहने के लिए मेरे पास कुछ प्रमुख तथ्य भी है । उनमे से एक है - जब नितीश कुमार ने पिछले साल मांझी से अपना समर्थन हटाया तब भाजपा की तरफ से मांझी को सत्ता में बनाये रखने का प्रयास हुआ था , लगभग एक साल पूर्व लालू प्रसाद यादव की राजनैतिक दूरदृष्टि में भाजपा की बढ़ती  हुई राजनितिक महत्वाकांक्षा को भाप लिया था । तब, अपने घनघोर विरोधी नितीश कुमार को RJD का समर्थन देकर सत्ता शील कर दिया था । 

इस घटना से राजनीति के सारे महापंडित एवं राजनीतिज्ञ हतप्रभ रह गए थे । सभी का यह मानना था - लालू प्रसाद यादव अपना राजनितिक अस्तित्व बचाये रखने के लिए, बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार को मझधार में धोखा ज़रूर देंगे । लेकिन, जय प्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले यह दोनों ही नेता  - नितीश कुमार एवं लालू यादव - फेविकोल की जोड़ की तरह एक साथ चिपके रहे । इसे, राजनीति की इस कहावत को माना जाए की , सत्ता में दोस्त का दोस्त, दोस्त होता है और दुश्मन का दुश्मन , दुश्मन होता है , या फिर सत्ता के खेल में इन दोनों नेताओं को अपने अस्तित्व को बचाये रखने की मजबूरी कहा जाए । ख़ैर , जो भी हो , लक्ष्मीकांत मिश्रा को इस सब से क्या लेना  - देना ? हद्द तो तब हो गई जब इस नेता ने (लालू प्रसाद यादव) अपने गठबंधन में congress के साथ - साथ और कुछ दलों को शामिल कर एक महा रैली बिहार में सारे नेताओं के प्रमुखों को एक साथ करके,  कर दिखाई । 

गठबंधन, अपने आप महा गठबंधन बन गया। इस महा गठबंधन में भारतीय राजनीति के सारे मूल तत्व विद्यमान है , सिवाय इसके की यह सब आपस में पूर्व में एक दूसरे के घनघोर विरोधी थे , इसी को कहते है - भारतीय राजनीति । प्रजातंत्र का यह अनोखा मेल विश्व में शायद  ही कही देखने को मिले । इस महा गठबंधन के सामने, भारतीय राजनीति में आज के परिदृश्य में सबसे प्रमुख पार्टी या दिल्ली में सत्ता शील भाजपा एवं आम जनता के सबसे  लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता की  प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा कर आमने - सामने आ गए हैं । इसीलिए मैंने इस लेख का शीर्षक - मोदी versus लालू दिया है । लोकसभा चुनाव को अभी समाप्त हुए १८ महीने भी नहीं हुए है , नरेंद्र मोदी की लोप्रियता का जादू अपने शिखर पर था और उस जादू ने  इस जादू ने बिहार पे भी अपना असर दिखाया था । अब, यह जादू अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई, हरियाणा एवं दिल्ली के बाद अपने को  प्रतिष्ठित बनाये रखने की लड़ाई लड़ रहा होगा । 

बिहार एक राजनितिक रूप से प्रमुख राज्य है , इसलिए देश ही नहीं , विश्व की निगाह भी नरेंद्र मोदी के जादू का असर बरकरार है की नहीं - यह जानने को बेताब है। नरेंद्र मोदी जी , अमेरिका एवं अन्य राष्ट्रों का दौरा करके अपनी मान प्रतिष्ठा को बचाये रखने के लिए इस संग्राम के प्रमुख योद्धा के रूप में कूद पड़े है । वह शायद इंदिरा गांधी , या यूँ कहें की कांग्रेस के पूर्व प्रधान मंत्रियो या नेताओं से प्रभावित होकर , बल्कि में दो कदम आगे बढ़ कर यह कहूँगा की ,अपने आप से आत्म मुग्ध होकर भाजपा एवं उनके साथ मिल कर लड़ रही पार्टियो का नेतृत्व कर रहे हैं । आत्ममुग्ध  मैंने इसलिए कहा है की यह पहले ऐसे प्रमुख सेनापति है जो अपने अस्तित्व के आगे अपनी ही पार्टी से ऊपर का दर्जा  प्राप्त कर लेते है । नरेंद्र मोदी जी - अपने स्वयं का बखान करते वक़्त , अपनी ही पार्टी को नगण्य साबित कर देते है । 

देश के प्रधान मंत्री पद की गरिमा का विचार इनके ज़ेहन से बिलकुल निकल जाता है , यह प्रतिद्वंदियों पर अपनी वाणी का सैय्यम खो देते हैं । नरेंद्र मोदी -  देश के पहले प्रधान मंत्री है जो चुनाव में राष्ट्रपति पद की गरिमा को भूल कर राष्ट्रपति के कहे शब्दों का चुनावी सभा में उपयोग कर रहे है । लक्ष्मीकांत मिश्रा नहीं समझ पा रहा है की यह आत्ममुग्ध प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी भारतीय राजनीति को कौन सी दिशा दे रहे हैं ? भारतीय राजनीति के सभी नागरिक जो थोड़ी भी राष्ट्रीयता अपने अंदर रखते हैं , संविधान को मानते हैं , धरम निरपेक्ष हैं , वह शायद मेरी बात से सहमत होंगे , ऐसा में इसलिए भी कह रहा हूँ की मैंने पूर्व में भारत के प्रधान मंत्रियो को भी राज्य की विधान सभाओं में जाकर भाषण देते हुए देखा और सुना है ।मुझे जितनी समझ है , मैं कह  सकता हूँ की पूर्व के प्रधान मंत्रियो ने अपनी उपलब्धियों एवं अपने दाल की नीतियों एवं आगे की कार्य योजनाओं के द्वारा ही भारतीय जनमानस को सम्बोधित किया है । 

पूर्व के ज़्यादातर प्रधान मंत्रियो ने अपनी गरिमा के अनुरूप व्यक्ति विशेष पर कभी टिप्पणी नहीं की ,इन प्रधान मंत्रियों ने साधारणतः अपनी प्रतिद्वंदी राजनितिक दलों की नीतियों एवं इनके कार्य करने के आधार पर ही टीका टिप्पणी की। भारतीय राजनीति किस दिशा में जाएगी यह तो बाद का विषय है , लेकिन इस समय समाचारो के सारे प्रमुख चैनल भी अपनी मान - मर्यादा एवं जिम्मेदारी भूल कर , दोनों ही गठबंधनों की टीका - टिप्पणियों पर संगोष्ठियाँ कर रहे हैं । सोशल मीडिया , भारतीय राजनीति में बड़ा प्रमुख हथियार हो गया है। जितना मुझे याद आता है इसकी शुरुआत भाजपा के पूर्व स्वर्गीय नेता -  प्रमोद महाजन ने अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधान मंत्री थे , को पुनः स्थापित करने के  लिए Shining India को प्रचारित करने के रूप में किया था। इस लोकसभा के चुनाव में , नरेंद्र मोदी को सत्ताशील करने में इस हथियार का  भरपूर उपयोग किया गया। 

लालू प्रसाद यादव जैसे ख़लिश नेता ने भी इस हथियार को समझ लिया , या फिर यु कहे की लोहा ही लोहे को काटता है जैसी, कहावत को साबित करने के लिए उन्होंने इसका उपयोग शुरू कर दिया । नरेंद्र मोदी को जवाब देने के लिए आज शायद देश में लालू प्रसाद यादव सबसे अग्रणी नेता होंगे जो की नरेंद्र मोदी की भाषण (स्पीच) खतम होने के चंद मिनटों के पश्चात ही इस हथियार का उपयोग कर tweet के माधयम से जवाब दे देते हैं । देखना है इन दोनों गठबंधनों के किस मुखिया की - नरेंद्र मोदी या लालू प्रसाद यादव को 8 नवंबर , 2015  में सफलता प्राप्त होती है। बिहार की जनता , राष्ट्रीय नेतृत्व को स्वीकारती है - यानी की नरेंद्र मोदी (भाजपा) या फिर प्रादेशिक नेताओं को , यानी की लालू प्रसाद यादव को।

विशेष बात यह है की - दोनों ही गठबंधन के सेना प्रमुख, बिहार प्रदेश के मुख्य मंत्री दौड़ से बाहर हैं । नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हैं , और लालू प्रसाद यादव न्यायालय द्वारा किसी भी राजनितिक पद पर बैठने से प्रतिबंधित हैं। 

वाह रे.…प्रजातंत्र !!


Lucky Baba 
Om sai … 


Thursday, October 1, 2015


18 October 2015 तक गोचर की स्तिथि 

चन्द्र दो दिनों में चलायमान रहता है , इसलिए उसकी स्तिथि नहीं लिख रहा हूँ 

दिए हुए चार्ट के अनुसार, दिन के लग्न की शुरुआत कन्या लग्न से होगी । जहाँ पर सूर्य, बुद्ध एवं राहु विराजित हैं। सूर्य , बुद्ध और राहु के लग्न में विराजित होने से 18 तारीक़ तक ग्रहण काल की स्तिथि रहेगी । राहु और सूर्य का एक साथ होना या दृष्टी सम्बन्ध में आना ग्रहण का घोतक होता है । उस पर राहु का कन्या राशि में उच्च का होना एवं सूर्य से ग्रहण का निर्माण करना यह कोई अच्छी बात नहीं है , खासकर मुखियाओं के लिए - क्यूंकि सूर्य को ग्रहो का मुखिया कहा जाता है । सत्ता के प्रमुख, परिवार के प्रमुख, या किसी भी संस्थान के प्रमुखों के लिए यह स्तिथि ठीक नहीं है । किसी ना किसी विवाद की स्तिथि या फिर कठिन परिस्थितियों से  गुज़ारने के लिए ग्रहो की यह स्तिथि उपयुक्त है । ऊपर से लग्न में यह स्तिथि विराजित है , जिनकी शुरुआत ही विवाद या संकटो से होगी । इस लेख को publish करने के बाद मुझे कई फोन आए , कई पत्रकार मित्रों  के फोन एवं कई संगठनों के मुखियाओं के फोन आना शुरू हो गए थे , जिनकी बातों से मुझे यह लगा की , मुखियाओं से सम्बंधित बात उन्होंने 18 October तक ही मान ली कि , 18 तारीक़ के बाद सब ठीक हो जायेगा । कहने का तात्पर्य यह है - की 18 तारीक़ तक ग्रहण की स्तिथि है , उसके बाद सूर्य तुला राशि में चला जायेगा जहाँ वह नीच का होता है , इसके बाद स्तिथि और खराब हो जाएगी । 18 तारीक़ तक तो संकट के शुरुआत समय होगा, उसके बाद मुखियाओं के लिए स्तिथि और खराब हो जाएँगी । 18 October तक तो ग्रहण की स्तिथि बनी रहेगी , उसके बाद जब सूर्य तुला राशि में आ जायेगा जहाँ सूर्य नीच का होता है तो, स्तिथिया और विषम हो जाएँगी।  

5 वीं राशि यानी सिंह राशि में , मंगल - गुरु - शुक्र की युति है। मंगल और गुरु आपस में मैत्री सम्बन्ध रखते हैं । मंगल उग्र स्वभाव का है एवं गुरु का सम्बन्ध धर्म एवं ज्ञान से है , शुक्र का सम्बन्ध विलासिता एवं ज्ञान से है -  इस युति का सम्बन्ध ,खासकर उन् लोगो के लिए जो समाज में धार्मिक , या फिर धर्म से सम्बंधित है - बड़ा गहरा है । 

शुक्र चूँकि सिंह राशि में , मैं बहुत अच्छा नहीं मानता हूँ इसीलिए मैं कह सकता हु की - धार्मिक उन्माद , सामान्य परिस्थितियों से ज़्यादा रहेगा । धार्मिक गुरु या फिर शिक्षा के क्षेत्र में जुड़े हुए लोगो के लिए यह समय बहुत अच्छा नहीं है । किसी व्याभाचार के धार्मिक गुरु के फसने की या लिप्त होने की संभावनाएं उजागर होंगी। 

शनि वृश्चिक राशि में है - जो की मंगल की राशि है , शनि अपने मूल स्वभाव को दर्शाते हुए मंगल से सम्बंधित , जैसे की ज़मीन अवं ज़मीन के नीचे की वस्तुओं पर अपना ज़ोरदार असर डालेगा । इनके मूल्यों में तेज़ी - मंदी का दौर, खासकर मंदी का दौर बहुत तेज़ चलेगा । petroleum product , ज़मीनो का मूल्य सोना - चांदी आदि। भूमि से सम्बंधित कार्य करने वाले या फिर भूमि के नीचे से सम्बंधित कार्य करने वालो को विशेष सावधानी रखनी चाहिए । केतु का 12 वीं राशि यानी की मीन राशि में होना एवं सूर्य से सीधा दृष्टी सम्बन्ध बनाना बहुत अच्छी स्तिथि उत्पन्न नहीं करता । धार्मिक कार्यो में तेज़ी एवं मुखियाओं का धार्मिक कार्यों में लिप्त होने का घोतक है । ज़्यादातर मुखिया धार्मिक कार्यो में लिप्त रहेंगे । 

मैं चूँकि, भारत देश के मध्य प्रदेश से हूँ , अपने ज्ञान से कह सकता हूँ , मध्य प्रदेश के सत्ता के मुखिया - यानी की मुख्य मंत्री एवं राज्यपाल एवं मंत्री मंडल के सदस्य - सत्ता के संकट में आएंगे । यह स्थिति पदविहीन करने तक की भी हो सकती है । धार्मिक क्षेत्रो में जुड़े हुए लोग भी ग्रहो की इन् स्तिथियों में बहुत ज़्यादा असरकारक नहीं रहेंगे । यह सब कुछ , चन्द्र दृष्टी सम्बन्ध एवं चन्द्र की युति पे निर्भर करेगा।   

राहु और सूर्य की युति होने से share एवं सट्टा बाजार में भारी उथल - पुथल का दौर चलेगा ।  




Lucky Baba 
Om Sai …

     

द्वितीय स्थान : विद्या एवं ज्ञान का स्थान 

कुंडली में  द्वितीय स्थान को ज्ञान एवं विद्या का स्थान भी कहा जाता है । इस स्थान से किसी मनुष्य के ज्ञान एवं  जानकारी के स्वभाव को जाना जा सकता है । जिस प्रकार का प्रभाव द्वितीय स्थान पर या फिर द्वितीय स्थान के स्वामी पर ग्रहों की दृष्टियाँ पड़ती है , उनका असर मनुष्य के ज्ञान , विद्या , जानकारी आदि पर दिखाई देता है। मनुष्य की विद्या उस प्रकार की होती है । द्वितीय भाव पर गुरु और शुक्र का प्रभाव अगर अधिक हो तो मनुष्य को कानून का ज्ञान होता है । साधारणतः इस प्रभाव पर मनुष्य , कानून की डिग्री प्राप्त करता है या फिर उसे कानून की जानकारी रहती है । शनि तथा राहु के प्रभाव से मनुष्य को medical (डॉक्टरी ) का ज्ञान होता है या फिर वह मेडिकल की डिग्री प्राप्त करता है । शुक्र तथा बुद्ध का प्रभाव अगर द्वितीय भाव पर आता है तो , मनुष्य को कला (arts) का ज्ञान होता है । 

मुझे यहाँ यह लिखने में कोई संकोच नहीं होगा की , यदि दूसरे भाव में शुक्र एवं बुद्ध उच्च भाव में हो या फिर ताक़तवर हो , तो मनुष्य अपने कुटुंब का निर्वाह कला के माध्यम से धन अर्जित करके करता है । दुसरे शब्दों में मैं अगर कहु तो - दुसरे भाव का स्वामी उच्च भाव में स्थित होकर अगर शुभ दृष्टियों से प्रभावित हो जाए तो वह मनुष्य कुटुंब के अलावा समाज में भी अपने धन एवं अपने ज्ञान से लोगो को ज्ञान एवं पालन पोषण में मदद करता है । ऐसा मनुष्य उत्कृष्ट गुणों से युक्त धनवान, सुन्दर, दूरदर्शी होता है । आगे मैं यह लिखने में संकोच नहीं करूँगा की अगर द्वितीय घर पर बलवान  सूर्य का असर हो तो ऐसा मनुष्य लोगो का बहुत उपकार करता है । ऐसा मनुष्य विद्या के माध्यम से विद्या एवं धन दोनों की प्राप्ति करता है और अपना स्थान समाज में बनाता है। 

यदि द्वितीय भाव का सम्बन्ध , शनि ग्रह से हो तो ऐसा मनुष्य, विद्या एवं ज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ जाता है । इस प्रकार के मनुष्य ज्ञान, विद्या एवं लोगो पर उपकार करने के क्षेत्र में अक्सर पीछे रह जाते है । अब मैं , इस बात को तथ्य पूर्वक कह सकता हूँ की द्वितीय भाव में ग्रहो की स्थिति से या फिर द्वितीय भाव कितना बलवान है एवं उस पर किन - किन ग्रहो की दृष्टी है , से समझा जा सकता है की मनुष्य कितना ग्यानी है , विद्या के क्षेत्र में कहा जायेगा एवं कितना परोपकारी होगा। 

  

Lucky Baba

Om Sai...

Thursday, September 17, 2015

   
ओम गण गणपतये नमः




गणपति उपनिषद का यह मंत्र सर्व मनुष्य यदि हर कार्य से पहले करे तो उसके रास्ते के सभी विघ्न , विघ्न हर्ता गणेश हर लेते हैं । आपके सभी मंगल कार्य सफल हो , आपके जीवन का  हर दिन एक नई ऊर्जा से भरा हो एवं प्रसन्नचित्त रहे…

ओम गण गणपतये नमः



Lucky Baba

Om Sai....


Saturday, September 12, 2015

एक बार फिर जापान : भीषण बाड़ की चपेट में 




जापान की राजधानी टोक्यो के उत्तर क्षेत्र में स्थित शहर 'जोसो' में, किनगावा नदीतट के टूटने से भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा । इस बाद ने बड़ी तादात में जोसो शहर में तबाही मचा दी है । नदीतट के किनारे अचानक टूटने से आई इस बाढ़ ने भारी उथल पुथल मचा दी है । शहर में पानी इस तरह भर गया है की लोग अपनी जान बचाने के इरादे से घर की छतो पर जा बैठे । helicopter rescue टीम छतो पर पर बैठे लोगो को बचाने के प्रयास में लगी हुई है । अनुमान लगाया जा रहा है की 8 लोगो लापता है और करीब 100 और लोगो को अभी बाढ़ से बचाव सुरक्षा मुहैया कराना बाकी रह गया है ।     

जापान के Meteorological Agency ( Japan  Meteorological Agency - JMA) के अनुसार जोसो शहर में बारिश के बहुत की कम आसार होते है । इस तरह की बाढ़ ने बहुत ही विपरीत परिस्थितियाँ पैदा कर दी है । सामान्य जीवन अस्त - व्यस्त तो हुआ ही , साथ ही जिस शहर में बारिश होने के भी बहुत कम अनुमान होते है , वह बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा ने भारी मात्रा में पूरे शहर को पानी - पानी कर दिया । दो दिन के इस भारी उन्माद ने जोसो शहर के घरों और कारों तक को अपनी चपेट में ले लिया ।     


Lucky Baba 

Om Sai... 

Friday, September 4, 2015






Lucky Baba



अर्थशास्त्र  का बदलता रूप



इस समय भारतीय अर्थशास्त्र (economic condition) अपने असमंजस की स्तिथि से गुज़र रहा है । पिछले कुछ महीनों से इस सब का मापदंड माने जाने वाले कुछ मुख्य तत्व हैं जो भारतीय जनमानस से अपना सीधा सम्बन्ध बनाते हैं, उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं :


1 . खाद्य पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी : पेट्रोलियम पदार्थो के दामों में ऊँच - नीँच होना 


2. धातू (Metal): मेटल पदार्थो में मूल्यों का ऊपर - नीचे जाना  

3. शेयर बाजार : शेयर बाजार का उतार - चढ़ाव से भरा होना 

4. भारतीय रुपये का अवमूल्यन : कुछ हद्द तक भारतीय रुपए में अस्थिरता आ जाना ।


भारतीय जनमानस मोटे तौर पर अर्थशास्त्र को इन्ही तत्वों पर आधारित मानता है । वह अर्थशास्त्र के छोटे - मोटे या बहुत भारी गणितों में नहीं उलझता और इधर कुछ दिनों से भारतीय राजनीति भी इसके बहुत करीब आ गई है। मैं तो यहाँ तक कहूँगा की भारतीय राजनीति ने अपना स्वरुप ही बदल लिया है । जो पहले कभी शिक्षा, सामाजिक ताना - बाना, सद्भाव , आपसी प्रेम , आपस में लोगो के सुख - दुःख में सम्मलित होना, भाई - चारा, एवं परिवार के लालन - पालन पर आधारित थी, कहने का तात्पर्य यह है  -  समाजवाद पर आधारित राजनीति अब अर्थशास्त्र एवं जातीय - धार्मिक उन्माद पर आ कर टिक गई है । पिछले कुछ वर्षो से विकास का मुद्दा नाम का एक शब्द देकर इन सभी मूल व्यवस्थाओ से राजनीतिज्ञों ने अपने - अपने तरीके से सत्ता शील होने के लिए हथ कंडे अपनाना शुरू कर दिए हैं । जिसके तहत वह अर्थशास्त्र के सबसे मुख्य नियम - मंदी एवं तेज़ी के नियम को भूल जाते हैं।  

भारतीय अर्थशास्त्र पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों , विशेष रूप से अमेरिका के अर्थशास्त्र से प्रभावित होता है । अमेरिकन अर्थशास्त्र जितना मुझे समझ आता है, तेज़ी और मंदी को समझता है। वह, रबर (rubber) की खिचाव (elasticity) पर आधारित है । मैंने पूर्व के वर्षों में अमेरिकी अर्थशास्त्र से जो समझा है वह यह है की , महंगाई (मूल्य वृद्धि) को एक निश्चित दायरे से आगे नहीं जाने देते हैं । जैसे ही यह दायरा उठता है , वह अपने प्रयास से इस पर अंकुश लगाना शुरू कर देते हैं, जिसे विश्व का अर्थशास्त्र मंदी कहता है । इसीलिए आप अभी भी वहाँ देखें तो, महीने का मेहनताना पिछले कई वर्षो से एक सा है , या उसमे ज़्यादा उतार - चढ़ाव नहीं आया । वह अपने डॉलर (रूपया) एवं मंदी पर हमेशा चौकन्ने रहते हैं । अमेरिका का मेहनताना अभी भी 8 - 10 हज़ार डॉलर, को बहुत अच्छा माना जाता है । लेकिन, भारतीय अर्थव्यवस्था - अमेरिका की इस मूल सिद्धांत को भूल जाती है । में तो यहाँ तक कहूँगा की कमोबेश यही स्तिथि सम्पूर्ण एशियाई देशों में है । 

एशियाई अर्थव्यवस्था और मूल रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी को ही सम्पन्न आर्थिक व्यवस्था समझती है।और  जब भी तेज़ी पर अर्थशास्त्र का नियम काम करना शुरू करता है - यानी की, तेज़ी के बाद मंदी , घबराहट के दौर से गुज़रने लगती है । भारतीय अर्थशास्त्रियों ने इस घबराहट या फिर यूँ कहुँ की उतार - चढ़ाव के कुछ नाम दिए है , जैसे की - GDP growth का रुक जाना या नीचे जाना , विकास के कार्यो में मंदी आना या स्थिर हो जाना, रुपये के मूल्यों पर ज़रूरत से ज़्यादा अवमूल्यन हो जाना , आदि - आदि ।               


इसी दौर से इस समय भारतीय अर्थशास्त्र या अर्थव्यवस्था गुज़र रही है जिससे भारतीय अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ अपने आप को असहाय एवं लाचार दिखाने का प्रयास करने लग गए । वित्त मंत्री अपनी जवाब देहि भूल कर RBI के गवर्नर को टकटकी बाँध कर देखने लगे है । अच्छे - बुरे का दोष वह अपनी जवाब देहि भूल कर RBI गवर्नर के ऊपर थोप देते हैं । जान मानस , घबराहट के दौर से अपने आप को  सँभालने में पस्त हो जाता है । कभी वह शेयर बाजार में अपनी , पसीने की कमाई लूटा बैठता है , कभी घर में रखे गहनों के अवमूल्यन से गरीब हो जाता है , कभी प्रॉपर्टी के गिरते हुए रेटों से अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है - कहने का तात्पर्य यह है की सरकार को भारतीय नागरिको से जब जो चाहिए होता है , राष्ट्र प्रेम का नारा देकर , राष्ट्र के विकास की बात कह कर , राष्ट्रीयता पर आधारित कोई भी जुमला बोल कर, उसे बेबस और लाचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। और जब देने की बारी आती है तो अपने टैक्स रुपी हथियार लगा कर उसे फिर से लूटना शुरू कर देती है । 

सरकार इस सिद्धांत को मानने को तैयार ही नहीं है की तेज़ी और मंदी दोनों जगह अगर सामान रूप से नहीं चले तो विश्व , फिर से विश्व युद्ध की तरफ बढ़ जायेगा । बस फर्क यह होगा की , यह विश्व युद्ध अर्थव्यवस्था पर आधारित होगा , जैसे की - भुखमरी का आ जाना , मूल्यों का ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ना या घटना , राष्ट्रों का आतंरिक युद्ध में फ़स जाना आदि ।     




Lucky Baba

Om sai....