Monday, June 10, 2013

                                     जिद्दी बेटे की बाप को हराने की जिद्द
बड़ा अजीब सा लग रहा हैं लिखते हुए लेकिन कब तक मन को मारू कब तक इस सच्चाई से भागू तीन दिन हो गए
मन को समझाते हुए की मत लिखो मत लिखो लेकिन मन नहीं मानता बार बार अन्दर से आवाज़ आती हैं इस ऐतिहासिक
घटना को अगर नहीं लिखोगे तो अपने आप से न्याय कैसे करोगे ! राजनीती में या फिर सत्ता को हथियाने के लिए
 लोगो का मानना हैकी  जहां अवसर मिलने
पे अपने बाप को भी पटकने में कोई लिहाज़ न करना,राजनीति में अवसर खोने वाले को राजनीति नहीं करनी चाहिए
सत्ता के खेल में सब कुझ जायज़ है भैया,राजनीति का पहला सिद्धांत हैं खुद आगे बढ़ो चाहे,उसके लिए अपने कितने ही
करीबी का भविष्य दावं पे लगाना पड़े उसका भविष्य बर्बाद ही क्यू ना करना पड़े करो,जैसें जुमले कहनेवालो को मैं निराश नहीं कर सकता ऐसे लोगो की राजनीतिक माहोल में बड़ी पकड़ होतीं है आपन अच्छा लिखते
हैं इनके रहमो करम पे निर्भर करता है ये पान का एक बीड़ा मुह में रख कर या गुटका दबाकर या फिर सिगरेट का लंबा कस खीचके किसी भी राजनीतिक चोपाल में ये कहने लगे की यार कुझ भी कहो राजनीति
पे ये लिखता सही हैं,अम्मा यार इसको राजनितिक समझ हैं, या फिर थोडा वरिष्ठ नुमा होगें तो कहेगें लड़के में दम हैं बेधडक होके लिख रहा हैं मजा आता हैं इसको पढने में,अपनी तो दुकान ही इनके रहमो
करम पे निर्भर करती हैं आपन नहीं चाह्ते ये कल ये कहे की की ख़ास अवसर पे ये चुप हो जाता हैं बिक
जाता है सेट हो जाता है या भैया इसके भी पेट हैं आदि आदि !इसलिए मन पे पत्थर रख के लिख रहा हूँ
अडवानी जी बुरा मत मानना अपनी रोजी रोटी का सवाल हैं,आपने ही राजनीति में इस नरेन्द मोदी रुपी बच्चे को आगे
बढाने का नीरणय  लिया था भारतीय जनता पार्टी के भीष्म पितामह अटल बिहारी बाचपेई जी की इच्छा
के विरुद्ध, वो नहीं चाहते थे ये अतिमहात्वा कंझी व्यक्ती धर्म निरपेझ राजनीती में आगे बढे भारत एक धर्म
निरपेझ राष्ट्र हैं इसके मूलं मंत्रो में एक मूल मन्त्र धर्म निरपेझत़ा हैं! ऐसा व्यक्ती जो अपने अहम् को
राष्ट्र से ऊपर माने, और सबसे ख़ास बात अटल जी ने जो कही थी वो ये थी की नरेन्द मोदी ने राष्ट्र
धर्म नहीं निभायाअर्थात नरेन्द्र मोदी को राष्ट्र धर्म का ज्ञान ही नहीं है  अडवानी जी आपने  भीष्म पितामह 
की इस समझ को अगर आप समझ गए होते तो आज ये दिन ना आप देख रहे होते ना ही ये प्रजातांत्रिक देश !
जहां आज आप बीमार होकर एक कमरे में सिमटे हुए है वही पूरा देश इन चंद साम्प्रदाइक लोगो के हुडदंग 
को देखकर दुखी नहीं हो रहा होता !इसमें मै आपको भी बहुत दोष नहीं देता आप जिस संस्था के सदश्य हैं 
वो ही मूल रूप से सांप्रदायिक हैं ये संस्था आज आजादी के झेझठ वर्ष पूरे होने के पश्चात् भी गाहे बगाहे आजादी 
के पश्चात देश के एक दुकड़े के अलग होने में हुए दगों को तोड़ मरोड़ के धार्मिक उन्मादं फैलाती रहती है ये उस 
टीस को भारतीय जनमानस के दिमाग से हटने नहीं देना चाहती है इस संस्था का मूल जितना मैंने समझा है 
 सप्रदायिकता को आधार बनाके या फिर यूँ कहे साम्प्रदायिक घ्रणा फेलाके सत्ता को हथियाने में लगी रहती 
हैं  ! वो सत्ता में किसी भी रूप में काबिज़ होना चाहती  हैं इस के लिए देश के मूल मंत्रो को भी दावं में लगाने 
में नहीं झिझकती !बड़ी बड़ी सिधान्तिक बाते करना आचार विचार पे उपदेश देना सिधान्तो पे बहस करना 
सादगी का आवरण दिखाना देश के लिए शाब्दिक जाल बुनना और उसमे लोगो को फ़साना और जब लोग फस जाए तो उनमे साम्पदायिक घ्रणा भरना और उसका प्रचार करना ये ही इनका मूल हथियार हैं यहाँ से ये लोगो 
को तैयार करके अपनी राजनितिक साखा भारतीय जनता पार्टी में भेजती है अडवानी जी आप भी राजनीति में 
वाही से आये है आपको तो इनके काम करने के तरीके का पूर्ण अनुभव होगा फिर आप से ये चूक बार बार कैसे हो 
रही हैं ये जब आपको लगातार अटल जी के के समकक्झ बढ़ा रहे थे आपको राम मंदिर से लेकर
राम रथ तक का हीरो इन्होने ऐसे ही तो बनाया था और अटल जी के समकझ या फिर यूँ कहे
हिन्दू वादी चेहरे में उनसे भी आगे कर दिया था आप हिन्दू राष्ट्रनायक हो गए थे ! परीश्तितियो
को अगर आप ध्यान से देखे तो इनोहने नरेंदर भाई मोदी जी को भी आपके ऊपर बिठाने का
वही रास्ता अपनाया पहले उग्र हिन्दू नायक बनाया और जब वो नायक बनगया तो आपके समकझ
खडा किया फिर गाहे बगाहे उनकी आपसे देश भर में तुलना करना सुरु कर दी और धीरे धीरे उनको
आपसे आगे बढाने लगगये यही तो आपने  अटल जी के लिए किया था बस आपमें और अटल जी में एक मूल 
फर्क था जिसकी वजह से आप  अटल जी की जगह नहीं ले पाए और  अटल जी को किनारे नहीं कर पाए 
और वो फर्क ये था की वो राजनीति में कभी भी राष्ट्र धर्म को नहीं भूलते थे वो सारे धर्मो के ऊपर राष्ट्र धर्म को निभाते थे 
वक्ता वो थे ही अच्छे बस इन दो चीजो का ज्ञान आपको लेने में काफी समय लग गया इसबीच आपने एक 
 भूल ये कर दी की अपने ही सुभाव के व्यक्ती को आगे बढाने लग गए और इतना बढ़ा दिया की उस पर आश्रित 
हो गए और चुनाव लड़ने अपनी मूल सीट झोड़ के गाँधी नगर पहुच गए यानी की बेटे पे बाप आश्रित होने लग गया 
इधर आपकी मूल सस्था को आपकी उम्र खलने लगी थी एक भूल आपने मेरे हिसाब से बहुत बड़ी की और वो भूल थी 
पाकिस्तान जाने की  चलो चले गए एक बार चल भी जाता लेकिन वहां जाकर आप जो जिन्ना साहेब की मज़ार चले  गए एक उग्र हिन्दू राष्ट्र नायक का ये कृत्य सांप्रदायिक सक्तियो को झकझोर के रख दिया
आप बड़े सभलं के प्रधानमन्त्री पद की कुर्सी की तरफ बढ़ने की कोशिश कर रहे थे धर्मं निरपेझ हो के
वही आपकी मूल संस्था आपके इस कृत्य को कुक्रत्य मान रही थी इस बीच आप के राजनीतिक बेटे ने अपनी 
झवी हिन्दू राष्ट्र नायक के रूप में बना ली थी बल्कि आप से भी उग्र हिन्दू नेता के रूप में जमाने में लग गया था 
उसे पता था की उसका मुकाबला अडवानी जी हैं जो उसके सनरझक भी रहे हैं उसने अपने को पहचान लिया था 
उसे समझ आ चुका था की अगर अडवानी को सिक्श्त दे दी जाय तो सारे नेता वेसे ही दरबारी हो जायेगे मूल सगठन 
उसका साथ दे ही रहा था समय का वो इंतज़ार वो कर रहा था आखिर जिद्दी बेटे का समय आया जिद्दी ने जिद्द की अभी 
नहीं तो कभी नहीं और पार्टी ने उसकी जिद्द पूरी कर दी गोवा अधिवेशन नरेन्द्र मोदी की जिद के रूप में मै याद रखूगां 
अडवानी जी यानी पिता की ?  ,,,? के लिए    जिद्दी पुत्र अभी तो लग रहा हैं अपनी जिद्द पूरी करा ले गया लेकिन बाप भी इतनी जल्दी हार मानेगा मुझे शक हैं अब अनुभव और जोश की लड़ाई सुरु होगी !देखे समय ने क्या लिख रखा है अपनी तो दोनों को शुभ कामना

  

     
           

Wednesday, June 5, 2013

Naxalites: the new age demons


As Indians we boast of our secular culture, conservative upbringing & preach Gandhi's mantra of  non-violence with gusto, but a recent incident shattered my beliefs and made me realize the difference between preaching & practicing non-violence. I think it was a political rally of 100-150 celebrating our inheritance-our right of speech. It was a varied crowd of old and young- people from dissimilar times but with the same morale, unabashed by humid scorching heat.

Their beliefs were proven wrong when they faced death or even worse injuries by the same system they were advocates of. I am pretty sure the perpetrators of a heinous crime like this are the biggest threat to society since they don't deserve to live in this age & time but thrive with their perverted beliefs of "rebellion" & "independence". These "Naxalite" miscreants are neither aware of modern science & social structure nor do they ever want to be. Their provincial approach is a threat to our social structure and if not controlled may even damage it to the last remaining fabric.

Indian lore is known for its fair share of grotesque flesh eating soul-snatching demons but none compare to these real life culprits as their blatant attacks aren't sudden but planned & cold-blooded. I request the so-called "Naxals" to stop calling themselves that as I believe any movement is based on certain rules & beliefs and doubt that any belief in all existence would warrant such a massacre and the following parody of Indian democracy. Also, to the aforementioned rebels I direct a simple question - Can you state with a 100% conviction that your actions aren't the results of some bloody conspiracy? Are you sure you aren't just a pawn in the grand scheme of things orchestrated by an over-ambitious party leader? As a fellow human being I say that regret is the worse feeling in the world my friend and I wouldn't want to be you when you realize your crimes against humanity.

--Baba

Monday, May 27, 2013

                      
                              मानवता     पे    घ्रणइत    हमला
प्रजातांत्रिक भारतीय इतिहास में इस तरह की निदनीय एवमं घ्रडित घटना शायद ही पहले कभी घटी होगी मुझे भूलने की बिमारी है लेकिन फिर भी मै दावे से कहं सकता हूँ
की मेरे देश में इतनी घ्रडित घटना पहले कभी नहीं घटी होगी जिस देश की आजादी में अहिंसा मूल मन्त्रं
रहा हो जिस मूल मन्त्रं ने अपने को साबित ही न किया हो बल्की विश्व को एक नई राह दिखाई हो जिसका जनक भारत देश हो जिसे पूरा विश्व शिविकार चुका हो जो आज विश्व के लिए मूल मन्त्रं का कार्य
कर रहो उस देश में हजार बारह सोंव लोग बदूकं लेकर एवमं रोड माइन्स बिछाकर एक साधारण् से राजनीतिक जुलुस को जो की शुद्ध रूप से शान्तिय पिर्य एवमं हलचल मात्रं था सोंव डेढ सोव लोग रहे होगें
कुझ गाड़ियां होगीं कुझ अति उत्साह में रहे होगें कुझ बुजुर्ग भी रहे होगें जो शाररिक रूप से भले थके रहे हो
चुकीं राजनेतिक मूमेंट था लोगो में जोश भरने के लिए अपनी थकान भुलाकर इस असहनीय गर्मी में भी अपनी
गरिमामय उपस्थिति दर्ज करा रहे थे किसी भी प्रजातांत्रिक  शान्तिय प्रिय देश की राजनेतिक गतिविधियों की आदर्श हलचल की मिसाल प्रस्तुत कर रहे थे विश्व के किसी भी देश का बड़े से बड़ा नेता नागरिक
या फिर सामन्य सा इन्सान भी जिसे देख कर हम से इर्षा कर लेता या अपने देश में जाकर बताता की राजनीतिक
हलचल क्या होती है इससे अझा उधारण क्या होता ! ये राजनेता एवम कार्यकर्ता   अपने गरिमामय इतिहास को ही तो दिखा रहे थे याँ यूँ कहे उसका पालन कर रहे थे इसमें इनका क्या दोष था इन्हें
क्या मालूम था जिस व्यवस्था से इनके बुजोर्गो ने विश्व के सबसे ताकत वर देश को इस देश से खदेड़ दिया था
वही वयवस्था इन्हें अपनों के द्वारा मोत दिलाएगी या फिर मोत से बदतर कष्ट ! जिस घटना से पूरा विश्व परेशान है दुखी है उस कुक्र्त्य को करके ये नाच गा रहे थे ये साधारण सामान्य इंसान नहीं हो सकते
ऐसे लोगो को सभ्य  समाज का नागरिक केसे कहा जा सकता है ये या तो पाषंड युग के हो
सकते हैं याँ फिर जिन्हें आधुनिक विज्ञान नहीं मानता भूत पिशाच की दुनिया के लोग हो
सकते है उसी दुनिया की जो कहानिया सुनी है उसमे ही इस तरह का कभी कभी जिक्र सूना है लेकिन वहां
भी सुना है की भूत पिशाच भी निर्दोष लोगो को या फिर सामान्य लोगो के साथ इस तरह का
घण्इत कार्य नहीं करते कहानियो में जितना पढ़ा या फिर सुना है उसमे एक चीज समझ में
आई की उस दुनिया के लोग उन्ही से बदला लेते है जो उन्हें तगं करते है या फिर जाने अनजाने में कोई
इंसान उस वयवस्था के खिलाफ कुझ गलत कर दे तब बदला लेते है लेकिन ये तथा कथित नक्सलाइड
तो इस दूसरी दुनिया से भी बदतर लोग निकले मुझ से अगर कहाँ जाय की भूत पिशाच और नकस्लाईड
में किसी एक को तुम्हे चुनन्ना है या फिर पूजना है और कोई रास्ता नहीं है तो मै बिना देर किये भूत पिशाच
को चुनुगाँ क्योकि उनको चुनने के लिए मेरे पास बहुत से तर्क है नक्सलाईड की तुलना में,
कोई इसकी वजह पूझेगा तो इसकी कई वजह गिना सकता हूँ उसमे एक दो ऊपर लिख भी चूका हूँ
मै तथाकथित नक्सलाईडो से एक नम्र निवेदन करूंगा की वो अपने को नक्सलाइड कहना बंद कर दे
क्योकि मैंने नक्सलाइड आन्दोलन के बारे में सूना है कुझ थोड़ा बहुत पढ़ा भी है और मेरा ये मानना है
की आन्दोलन शब्द जहाँ कही भी आता हैं उसमे कोई न कोई सिद्धांत अवश्य होता है जिनसे कोई सहमत  होता है और कोई सहमत नहीं होता लेकिन ये तैय है की सिद्धांत पिशाचिक से भी बदतर नहीं होते
लोगो को मारना मारने के बाद नाचना गाना जो बच जाय उनको उठा ले जाना वो भी दो चार नहीं सत्तर
अस्सी लोगो को ! नरभ्झी भी घ्रणा करने लगेगा तुमसे, नक्सलाईड आन्दोलन के जनक और उनके
सिद्धन्त मानने वालो की तो बात ही  अलग है ! मुझे तुम दिल पे हाथ रख के बताव की कही तुम
अती महत्वाकंझी नेता की राजनीती का शिकार तो नहीं हो गए किसी राज नेता ने कही तुम्हें अपने षडंयंत्र
में तो नहीं फसाया था और अगर ये सही है तो अब तुम्हें केसा लग रहा हैं एक तो इतना घ्रडित कार्य वो भी
किसी के षडंयत्रं का शिकार हो के ऐसा कुक्र्त्य कर देना जिस को तुम खुद को  माफ़ करना तो झोड़ो  कही ज्यादा अपने आप से विचार किया तो मानसिक इस्थिति ठीक रख पावोगे इस्पे भी मुझे शक है ऊपर वाला
तुम्हे क्या सजा देगा ये बाद की बात है आत्मग्लानी बहुत ही खतरनाक बीमारी होती हैं ये अगर दिमाग में घर
कर जाये तो शरीर एवमं दिमाग दोनों को ही बड़ा नुक्सान पहुचाती है ! और जिस दिन तुम्हे ये लगे की
तुम जिस विध्यां में माहिर थे ब्रेन वास करने की कला में उसी विध्यां का इस्तेमाल किसी राज नेता ने
तुम्हारे ऊपर कर दिया और अपना उल्लू सीधा करने के लिए तुम्हारा ब्रेन वास करके तुम्हीं से इतना घ्रडित कार्य करा दिया जिसको तुम जब भी सोचोगे तो मानसिक और शारारिक रूप से बी बहुत पीड़ा होगी एवमं
आत्म ग्लानि से मन भर जाएगा जिसके बहुत वीभत्स परीडाम होते मैंने देखे है ..........बाबा          

                             

Wednesday, May 15, 2013

आज मन फिर क्यू  उदास है ये  मन फिर क्यू रोया हैआज 
कहने को तो  हर रिश्ता हैं मेरे आस पास और साथ साथ  
फिर इन्ही  रिश्तो ने क्यू कर  अकेला कर दिया है आज
था इंतजार जिनका वो मिले तो मुझे  पर मिलकर रुला गए
आज मन फिर क्यू उदास है ये  मन फिर क्यू रोया है आज
                 हम बड़ें सब्र से उनसे मिलने  का ज़तन कर रहे थे आज
                जाने किस बात से नाराज थे वो की मिलते ही रूठ  गये आज
                ये रिश्ते होते है क्या और क्यू कर परेशा करदेते है इस कदर
                अजीब बातहैं रिश्तो में वो रूठ गए और  हम परेशा हो गए इस कदर
                  आज मन फिर क्यू उदास है ये मन फिर क्यू रोया है आज
था उनपे बड़ा नाज़ हमे की रिश्तो का सहारा हमे मिल गया
दर्द के  अहसास को  बड़ी बेरूखी से आज रिश्तो ने हमें सिखा दिया
क्यू मै ये रिश्तेऔर इन रिश्तो के दर्द से भी रिश्ता निभा रहा हूँ में
ये भी  अजीब जिदहै मेरी  सब जान कर भी क्यू नहीं मानता हूँ  मै 
में जानता हूँ फिर भी दुश्मनों में अपने रिश्ते क्यू  ढूढ़ता रहताहूँ में
आज मन फिर क्यू उदास है ये मन फिर क्यू रोया है आज
  
       बाबा 

                           
                

Saturday, January 5, 2013

इस तरह इंसान क्यू कर परेशान होगा
देख कर समाज के ये हालात अपने से ही क्यों कोई सवाल करेगा
कल तक जो आइना दिखाते थे किसी और को
उसी आईने में अपने को निहार कर अपनी ही सकल से इस कदर परेशान होगा
खुद को बचाकर किसी और पे उगली उठाने की आदत से खुद को निकालना बड़ा मुश्किल होगा
अब सवाल के घेरे में वो खुद है शवालो  सेखुद परेशान केसे होगा
आईने में शक्ल भी तेरी है शवाल भी तेरे अपने है हालत से हारने की आदत भी तो तेरी अपनी हैं
बाते तू हिमालय की ही करता है शेर को पछाड़ने का दम भी तू खुद दिकाता है
आंधियो से लड़ने की बाते भी तेरी अपनी है तूफ़ान को ललकारने के होसले भी तू ही बताता है
ख़ामोश क्यों हो जाता है या फिर जोर जोर से चिलाने क्यों लगता है ज़रा हालात बिगड़ते ही
तेरे खुद कहे  अंदाज ये कहने के लिए मजबूर क्यों हो जाते है लिखने को लिख कुछ भी दे
सच्चाई से लड़ने के वक्त  

Monday, December 3, 2012

                                             दर्द 

ग़ैरों से भला मुझे क्या गिला, पत्थर पे सर पटके हैं मैंने 
मेरे अपनों ने ही दिये ये दर्द हैं फूलो से मेनें जख्म खाए हैं
                                                 ये अपने मुझे हद तक तो तोड़ देते हैं देकर कोई शब्दों का ज़ख्म                                                                      कई कई बार सन्न रह जाता हूँ मेरे अपनों के शब्दों के तीर खाकर
वो भला क्या जाने और क्यू जाने मेरे इस अथाह दर्द को
दर्द देकर मुझे,सताने के बाद रुलाने की आदत पड़ गई हो जिनको  

                                                है इंतहा इस बात की कि दर्द भी दिये मेरे अपनों ने और दर्द भी मेरे अपने हैं                                                       उसकी इस इंतहा तक की नादानी को जी रहा हूँ में,इस दर्द को पी रहा हूँ में  

हर बात बिगाड़ कर अपनी मुझपे वो तोहमत लगा देते है 
खुश हूँ में इस बात पर की वो कुछ तो सजा देते है

                                               मुझे सताने का उनका अंदाज ही निराला हैं वो खुद को दर्द देते हैं             
                                               दर्द से हम जब परेशा हो न जाने क्यूँ इठलानेऔर इतराने लगते है    
                                                                                                                         


बाबा लकी 

Saturday, November 24, 2012

                                                         नरेंद्र मोदी की शेर की सवारी
भरतीय राजनीति में आज कल सबसे चर्चित नामो में से एक है नरेंद्र मोदी ये नाम पिछले दस बारह सालो में जिस तेजी से आगेआया वो भी कम दिल चस्प नही है कई लोग इसकी वजह नरेंद्र मोदी के भाग्य को देते है कई लोग उनकी कार्य शेली को कई लोग उनके मीडिया मेनेजमेंट को कई लोगो का मानना की किसी भी कार्य को करने से जादा उसके श्रेय को अर्जित करने की कला में मोदी आज के राजनितिक परिद्रश्य में सबसे प्रमुख राजनेता माने जाते है मोदी की कार्य शेली अहंकारी भी प्रतीत होती है जिससे भी कई नेतावो को तकलीफ होती है जिसका उपयोग मोदी कई बार मंच पर बेठे नेतावो के स्वाभिमान को बिना कुझ बोले परेशान करने में करते   है इस लिए भी मोदी अपनों के बीच में भी कुछ कुछ  अहंकारी दिखाई देते हैं मोदी मंच हो या फिर केमरा लोगो को असहज कर देते है उन पर प्रतिक्रिया जरुर आती हैं मोदी के कुरते पयजामे भी आम नेतावो से अलग होते है कहने का मतलब ये है की वो आम नेतावो में अपने को खाश या फिर अपनी अलग पहचान के साथ दिखाई देने में जादा सुकून महसूस करते है ओर उनकी ये सारी हरकते उनके समकक्झ नेतावो में एक विशेष प्रकार का द्वेष उनके प्रति पैदा कर देती है उस पे सोने में सुहागा उनके भाषण  देने का अंदाज, वो म्रदु भाषी होने में भी  अपने आत्म सम्मान को पूरी ताकत से बचाकर मंच में बेठे अपने किसी भी सम्कक्छ  नेता के ऊपर कटाक्झ देने से नही चूकते और अगर वो अकेले ही मंच में हैउनके समकक्झ का कोई नेता उनकी पार्टी का नही है तो विरोधी दल के नेतावो की नक़ल करने और उनका मजाक उड़ाने में उनको विशेष आनद आता हैं मोदी ने अपनी इस तरह की ब्राड इमेज खुद बड़ी मेहनत से बनाई हैंये वो इमेज है जिसे अब मोदी को खुद संम्भाल ना होगां याँ यूँ कहें की मोदी ने खुद अपनी सवारी शेर की चुनी हैं और जब उन्होंने ही खुद शेर को चुना है तो मेरा ये   मानना हैं की मोदी को इसके परिणाम भी पता हगें !में जितना शेर की सवारी के बारे में जानता हूँ या अब तक इस कहावत को जितना समझ पाया हूँ वो ये हैं की अब शेर को चलावो और फिर चलावो जब तक आप इसको चलावोगे तब तक आप का कोई शानी नही आप एक साह्शी और सफल इंसान है सब आपके रोब और रूतबे की कद्र करते है विरोधी भी आपको सम्मान देते है किन्तुं जिस दिन आप इससे उतरे उस दिन ये भूखा शेर सबसे पहले आपको खाने का प्रयास करता हैं या फिर छोटी सी भूल भी आपको उसके पेट में पहुचा देती हैं कहने का मतलब ये है की सत्ता रुपी शेर को मोदी जी अब आप चलाते रहिये आपकी परीझा की घड़ी काफी पास आ गई हैं इस शेर को चलाने में आप को जो भी कसरत करनी है वो करिए लेकिन ध्यान रखिये कसरत आपको शेर के ऊपर बेठ के ही करनी हैं जरा सी चूक आपकी आपको अपने ही शेर के भूक को  शांत करने के काम आ जायेगी इस कहावत को पढ़ा सुना तो कई बार था लेकिन वो मजा नही आता था या यूँ कहे की इसका उपियोग जिन लोगो से मेनें सूना उसमे शेर तक तो ठीक लगता था किन्तुं शेर चलाने वाला ना जाने क्यूँ मुझे ठीक नही लगता था इसीलिये ये कहावत मेरे लिए बेमानी साबित होती थी शायद दिमाग में कही बेठा होगा की शेर चलाने वाले में कुझ खाश गुड होने चाहिएऔर उसमे सबसे पहला गुण ये होना चाहिए की ये निर्णय वो खुद ले और लेने के बाद किसी की परवाह ना करे कुझ कुझ आपमें वो गुण दिखे तो बस लिखने का मन बन गया और लिख दिया !शेर के शवार में एक गुण ना जाने कहाँ से आ जातां हैं और वो गुण होतां हैं की वो सबसे ऊपर है उसकी योग्यता का कोई भी इन्शान नही है अगर वो किसी को सम्मान देता है तो समझो की उसपे बड़ा भारी अह्शान कर रहा है और जिस को सम्मान मिला है ऐसा लगता हैं जेसे उसको पहले से ये हिदायत दे दी जाती है की इस सम्मान के एवज में अब तुमको जीवन भर इस शेर के सवार की तारीफ़ करनी हैं क्रतग्य रहना है जाहिर हैं की शेर के सवार की क्या इस्तिती होगीं इसी अवस्थां में वो अपने आपको सर्वप्रमुख मानने लगता हैं इस कार्य में धीरे धीरे वो अपने चारो तरफ चाटुकारों का समूह बना लेता हैं ये चाटुकार हमेशा इस बात का ध्यान रखते है की सवार की कार्य प्रणाली से लेकर उनके चलने बेठने तक की सभी लोग तारीफ करते वक्त इस बात का ध्यान रखे की ये विशेषता सिर्फ शेर के सवार में ही हैं और जिस किसी में अगर है भी तो वो शेर के सवार की नकल हैंऔर इस में उनको तथा उनके समर्थको को विशेष आनदं आता हैं   इस तरह शेर सवार  {मोदी}अपनी तथा विरोधी पार्टीयो में एक अह्कारीं नेता के रूप में जाने जाते है ये इस्थिति जब तक आप सफल है सत्ता में है  तब तक तो लोगआप का लिहाज करते है  सम्मान में खड़े होते है चाटुकारों की फोज हमेशा आपके अहंकार को बढाने में लगी रहती है ये वो फोज है जिसने नजाने कितने लायक और समझदार शासको को धीरे धीरे निकम्मा बना दिया हैं ! मोदी जी एक और गुण अहकारीं शासक में देखा जाता है और वो मेरे ख़याल से ये है की वो हमेशा अपने को विरोधी खेमे के सर्व प्रमुख के बराबर का मानता है वो लड़ाई कोई भी लड़ रहा हो उसमे विरोधी दल का मुखिया हो या ना हो लेकिन वो अह्कारं में बार बार विरोधी दल के मुखिया को ललकारते हुए दिखता है शायद वो अपने अहकार की वजह से ऐसा हो या फिर हो सकता है की चाटुकारों की सलाह से ऐसा करता हो लेकिन होता ऐसा ही है ऐसी इस्थिती अह्कारी शासक के लिए बड़ी ही हास्यपद हो जाती है मेरे ख़याल से इस इस्थिति से बचना चाहिए ख़ास कर आप को जब ये पता हो की विरोधी दल के प्रमुख के लिए दुएम दर्जे से भी निचे का युद्द हैं ! बल्कि में तो ये कहुगां की ऐसे युद्द का अगर आपको अहशास भी हो जाए तो किसी तरह से अपने को झोकने की बजाय अपने किसी समकक्झ के नेता को मैदान में उतार देना चाहिए और खुद को रणनीतिकार के रूप में लाना चाहिए इससे कई फायदे होते है आपकी साख बची रहती है आप विरोधी दल के नेता के समकक्झ के नेता के बराबर के माने जाने लगते हो और अगर हार भी गए तो सीधे आपको को कोई दोष नहीं देता है याने की अगर शेर के ऊपर से गिर भी गए तो शेर के मूह में जाने से बच  जाते हो और अगर जीत गए तो आपका कद बहुत बढ जाता हैं और आप स्वमेव विरोधी दल के नेता के समकक्झ आ जाते हो याने बिना किसी भय के शेर को चलाने के मास्टर माने जाने लगते हो !ये सब तो मेरे दिमाग की उपज मात्र है आप शेर की सवारी कर रहे है आप मुझ से बेहतर समझते है भगवान से तो में येही दुआ करूगां की बड़ी मुश्किल से तो शेर का सवार मिला है ना मंजिल तक सही कुझ दूर तक तो इसे किसी भी हालत में शेर की सवारी करने दी जाए
.............................................................बाबा लकी