सपने
न जाने क्यों मेरे सपने अक्सर टूट जाते हैक्यों मेरे अपने अक्सर मुझ से रूठ जाते है
मेरे दिल से पूछो कितना मुश्किल होता है रूठो को मनाना
मुझ से पूछो की न मुमकिन होता है सपनों को सजाना
क्या बताये की तुम्हे भाग्य ही मेरा कुछ ऐसा है
मेरे सपनों ने जो भी सजाया भाग्य ने उसे गवाया है
मुझे हरदम मिलने की ख़ुशी से पहले खोने का डर रहता है
कहा तो वो मिलते ही नही और मुझे बिछड़ने का डर रहता है
इस सब पर हद ये है की अपने ही सपने रोज सजाता हू में
उधर वो बेखबर है मुझ से फिर भी सपने रोज सजाता ह में
इस साजिश और मतलब की दुनिया में दिल पे दिमाग भरी है
उस बेदरद की दुनिया में मेरे दिल पे उसका दिमाग भारी है
बाबा लकी
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