Sunday, October 7, 2012

अन्ना एवं अरविन्द केजरीवाल कहीं                      

        कोई नयी साजिश तो नहीं     

आज के राजनीतिक परिद्रश्य को अगर आम आदमी की निगाह से देखे या फिर उस के मन को टटोले तो शायद प्रजातान्त्रिक व्यवस्था का सबसे प्रमुख हिस्सा सबसे ज्यादा असमंजस या यू कहे की अंतर पीड़ा में है सबसे ज्यादा उसी का मन दुखी है वह सबसे प्रमुख होकर सबसे ज्यादा लाचार महसूस कर रहा है इस व्यवस्था में मुझे जहा तक लगता है की आम आदमी अपने को सबसे ज्यादा  मजबूर समझने लगा है उसकी मजबूरी ये है की उसे खुद के द्वारा अपने एवम अपनों के लिये शासक तलाशने पड़ते है  और वो भी पाच साल के लिए ! भारतीय प्रजातंत्र प्रमुख पार्टियों पर निर्भर करता है जिनकी साख लगातार गिरती जा रही है लेकिन उस का भी इलाज उन्होंने निकाल लिया है जिसका नाम करण उन्होंने कोलेशन गोरमेन्ट के रूप में किया है इस व्यवस्था से तो और भी विकृती आ गई इसमें तिकडमीयो की पौ  बारह हो गई है खैर इस सब पर आपन बाद में किसी भी दिन बात करेगे ये काफी लम्बा विषय है ! हाँ यहाँ में ये जरुर कहुगा की इस व्यवस्था ने कुछ अलग अलग फील्ड के महारथियों को सत्ता के सर्वोच्च सुखो को भोगने या पाने का रास्ता सुझा दिया है ये चूँकि महारथी है इसलिए इनकी चाल आसानी से आम आदमी नही समझ पाता है ये मूल रूप से धूर्त होते है या ज्ञानी होते है या फिर बहुत चालाक ये भी ऐक शोध का विषय है ! इनके काम करने की शुरुआत पूर्ण तैयारी से होती है ये भारतीय जनमानस की मनह स्तिथि को पहले अच्छे से समझते है उसकी खामियों को एवमं राजनीतक खामियों को समझते है कोई ज्वलंत मुद्दा ढूँढ़ते है फिर सादगी का आवरण ओढ़ते है जिससे ये अपने को आम आदमी में आम बनकर ज्ञानी साबित कर देते है और अगर ज्यादा समझदार हुए तो एक ब्राड नेम ढूड लेते है जिसकी कुछ खुबिया होनी चाहिए जैसे की साधारण दिखना समाज में उसके द्वारा किये किसी भी छेत्र में विशेष कार्य अगर सामाजिक छेत्र में किये है तो सोने में सुहागा थोड़ा उम्रदराज़ है तो फिर क्या कहना !  मुझे जहां तक लगता है की ये मनुष्य की आम मानसिकता के सिद्धांत का भी पालन करते है आम मानसिकता में किसी भी मनुष्य को प्रसिद्धी की बड़ी भूख होती है ये बड़ी सफाई से उसे समझाते होगे की आप ही अब देश को बचा सकते हो अब देश को आपकी सख्त जरूरत है आप बाहर न निकले तो अनर्थ हो जायेगा आप जेसा कहेगे हम वैसा ही करेगे आप की हां की ज़रूरत है हमारे पास पूरी तेयारी है टीम भी है आपके अनुसार काम करने के लिए देश हमेशा आपको याद रखेगा ब्राड नेम प्रसिद्धी की मानसिक्ता के सिद्धांत का पालन करते हुए यस कह देता है बिना यह विचार किये की ऐक बार यस कहने के बाद उसकी साख दाव  में लग जाएगी ! शुरू शुरू में सब कुछ देश प्रेम पर आधारित होता है टीम और ब्राण्ड नेम दोनों खुश रहते है यही सभी प्रकार के मीडिया इनको साथ देने के लिए आगे आने लगते है कुछ तो पैकेज के द्वारा मेनेज होते है कुछ टी आर पी के चक्कर में मजबूर हो के कुझ ज्वलंत विषय होने की वजह से बहर हाल इनका काम जैसे तैसे चल निकलता है देश की जानता यही समझती है की अब सब ठीक हो जाएगा यही से ये महारथी देश प्रेम के साथ अपने स्वार्थ को साधना चालु करते है इनकी पूरी कोशिश रहती है की किसी भी हाल में हल ना निकल पाए और पूरे देश को बताते रहेगे की हम तो देश के लिए हल लिए बैठे है हमारे हल से ही देश ऐक रात में राम राज्य में बदल जाएगा आम आदमी तो आम है और वो इन ज्ञानी की भी मान लेता है की देखो सब कुझ छोड़ के देश के लिए क्या नही कर रहे है!                    
अब में आप को इसी प्रकार के परिद्रश्य के बारे में बताता हूँ पिछले एक डेढ़ साल से हमारे देश में भी कुछ इसी प्रकार से चल रहा है बस फर्क है तो इतना की यहाँ दो महारथी एक साथ मैदान में कूद गए पता नही देश की ग्रह दशा का चक्कर है या फिर वाकई में राम राज्य आके रहेगा भगवान राम से ही इस विनती है की राम राज्य आ जाए तो बड़ा अच्छा हो जाएगा इसके बारे में सूना बहुत है अनुभव भी हो जाए तो क्या कहना  राम भगवान को क्या कहे त्रेतायुग में सब कर के चले गये उन्हें क्या पता था की कलयुग में लकी बाबा पैदा होगे अब तो वो इन महारथियों के द्वारा ही कलयुग में राम राज्य दिखा सकते है हाँ एक इच्छा बीच में बड़ी हो गई थी करीबन दस  बारह  साल पहले वो भी ऐसे ही महारथियों के चक्कर में अयोध्या में राम जन्म भूमि पे भगवान राम के मंदिर को देखने की हम तो राम मंदिर नही देख पाए आगे की भी उम्मीद भगवान राम के ऊपर छोड़ दी है क्या पता राम राज्य आ जाए तब राम मंदिर देख ले खैर छोड़ो अभी तो आन्दोलन एवं महारथियों पर चर्चा करते है इस बार दो महारथियो ने बाग़ डोर संभाली है एक है बाबा रामदेव  और दुसरे है अरविन्द केजरीवाल !  रामदेव तो खुद ही ब्रांड नेम है इसलिए उनको किसी और की ज़रूरत नही पड़ी अपने कुछ पिछलगूओ एवम प्रचार माध्यम के साथियो के साथ मैदान में कूद पड़े इनके बारे में बाद में चर्चा करेगे !         आज हम अरविन्द केजरीवाल के आन्दोलन के बारे में चर्चा करेगे           
अरविन्द केजरीवाल एक ऐसे महारथी है जिनके पास आदोलन चलाने के सारे गुण है सिर्फ एक कमी के अलावा और वो है मंजिल पे पहुचने की छटपटाहट वो थोड़ा हडबडाये ज़्यादा लगते है और इसी चक्कर में सबसे उलझ जाते है मुझे ऐसा लगता है की उन्हें हमेशा ये भय रहता है की उनके आन्दोलन की मलाई उनकी टीम के बाकी सदस्य उनसे ज्यादा तथा उनकी पोल खुलने से पहले कही न खाले इसमें कोई दो राय नही हो सकती की आन्दोलन की रूपरेखा वो कई साल से बना रहे थे इंतज़ार था तो एक ब्राड नेम का तथा सटीक विषय का दोनों मिले तो कुछ अती महत्वाकांछी  साथी भी मिले या यूँ कहें की साथियों को अरविन्द केजरीवाल की महत्व्कांछा  की भनक लग गई ये लोग शायद ये ताड़ ले गए की केजरीवाल आन्दोलन की आड़ में सत्ता के सर्वोच्च पदों की चाहत पाल बेटे है ! अरविन्द टीम बनाते वक्त शायद ये भूल गए की समान स्तर के लोगो की महत्व्कांछा  सामान होती है समझ भी समान होती है फर्क होता है तो भाग्य का वो सब समझते बूझते हुए आपके पीछे चलते है की भाग्य से आपने इस मुद्दे को पकड़ लिया है बस इसलिए हम आपके पीछे है लेकिन हमेशा पीछे रहेगे इसकी कोई गारेन्टी नही है जैसे ही आप से कोई सार्वजनिक चूक हुई वो अपने सौदे शुरू कर देते है केजरीवाल ने ब्राडनेम जो तलाशा वो सब खूबियों से भरा हुआ है गाँधी वादी चेहरा सादगी की मूरत आम आदमियों तक सीधी पहुच कुछ आंदोलनों की सफलता वो सब कुछ जो एक आन्दोलन कारी नेता में होती है अन्ना हजारे में समाहित है  कमिया भी अन्ना में उजागर हुई आखिर है तो वो भी हाड़ मास के ही इंसान मुख्य रूप से उनका ज्यादा पढ़ा लिखा न होना जिसकी वज़ह सेअन्ना को आन्दोलन को गति देने के बाद उसे कहा समाप्त करना है का अंदाजा नही निकाल पाए टीम पर ज्यादा आश्रित होना इतने बड़े आन्दोलन को सतत चलाने के लिए धन की व्यवस्था का सही ज़वाब न दे पाना कई सवाल ऐसे निकल के बाहर आये जिनके जवाब जनता को अभी तक आन्दोलन कारियों के साथ साथ अन्ना भी नही दे पाए शायद अन्ना अपने आप से अभीभुत हो गए थे वो जनता में आन्दोलन का स्वाद तो पैदा करने में सफल हो गए थे लेकिन मसाले जो उस में डाले थे वो कहा से आये और केसे आये ये बताना नही चाहते थे विरोधियो ने उनकी इस कमजोरी पर हमला पूरी ताकत से बोला !उधर टीम के बाकी सदस्य जो अपने को केजरीवाल से योग्यता में कम नही मानते थे अन्ना के करीब पहुचने में कामयाब हो गए इधर केजरीवाल की अति महत्वाकान्झाये अब स्तिथियों को अपने बस में करनेमें लग गई  या फिर यु कहे की अन्ना को छोड़ बाकी सदस्य  आन्दोलन का मुखिया बनने की होड़ में लग गए सारे अन्ना को अपने अपने तरीके से समझाने लगे !अन्ना भी तो हाड मॉस का बना इंसान ही है उनका दिमाग ही चकरा गया वो सीधा साधा गावं परिवेश का आन्दोलन कारी इन अंग्रेजी बोलने वाले अति महत्वाकान्झी मेट्रो कल्चरल के लोगो के बीच में  उलझ के रह गया वो समझ ही नही पा रहे थे की किस में योग्यता है और कोन बुद्धीजीवी अन्ना का मन दुखी हो गया उधर विरोधियो को जो लगातार इस आन्दोलन पे हमला कर रहे थे जनता को कही न कही ये बताने में सफलता मिल गई की ये आन्दोलन नही बल्की  कुछ अती महत्वकांक्षी लोगो की सत्ता की भूख हैं इस आन्दोलन में कई कमिया है उनमे से ये कमी मुझे बहुत सताती है और वो है सयमं की !दिल्ली में ज़बआन्दोलन ने अपनी रफ्तार पकड़ी न जाने इन लोगो में ये ज्ञान किसने दे दिया की अगला स्थल मुंबई होगा बिना ये विचार बनाए की मुंबई में हालात बिलकुल इनके पक्ष में नही है मुंबई पिछले चालीस  पचास सालो में अजीब सी मानसिकता से गुज़र रहा है जहां ठाकरे परिवार ने मुंबई  हिन्दुस्तान में होने के पश्चात भी मुम्बईअपना शहर अपना मानुष की तर्ज़ पे कर के वहां के लोगो में मुंबई पे हमारा पहला अधिकार है और हम उस पे अपना ये अधिकार किसी हालत में नहीं छोड़ेंगे का नारा देकर एक भावनात्मक एवं उग्र पंथियों का एक दल बना रखा हैं खुदको उस का मुखिया बनाया और अपना नामकरण भी किया हैमुंबई का शेर  ! अब ये सामान्य सी बात इन आन्दोलन कारियों की समझ में नही आई की ये शेर अपनी मांद में आप लोगो क्यों घुसने देगा और वो भी किसी आन्दोलन के रूप में शेर ने वही किया जो शेर को करना था परिणाम सामने था दिल्ली की हवा मुम्बई में निकल गई ये इस आन्दोलन की जानता द्वारा नकारे जाने की पहली घटना थी जिसने आन्दोलन कारियों को झकझोर के रख दिया सही मायने में देखे तो यही से इस आन्दोलन में बिखराव की स्थिति निर्मित की रही सही कसर सदस्यों की महत्वकांक्षा ने पूरी कर दी मेरा मानना है की इन्ही परिस्थितियों में नेता की भूमिका या फिर कहे की नेत्रत्व क्षमता का अहसास होता है यही अरविन्द केजरीवाल चूक गये और आन्दोलन बिखराव की तरफ बढ़ गया ! अरविन्द केजरीवाल मेरे ख्याल से प्राक्रति के नियम को समझने को तैयार नही है वरना ये साधारण सी भूल लगातार कभी न करते प्रक़ती का नियम ये है की वो जब मिटाने पर उतारती है तो वो सब कुझ अपनी ताकत से मिटा देती है इसीलिए लोग हमेशा ये समझाईस देते है की तूफ़ान को निकल जाने दो फिर निपटेगें केजरीवाल तूफ़ान के बीच में सुधार कार्य सुरु करने निकल पड़ते है जिसका खामियाजा आन्दोलन को झेलना पड़ा और में तो याहा तक कहूगा की ये आदत केजरीवाल को आगे चल कर बहुत नुक्शान पहुचायेगी कोई माने या न माने मेरा मानना है की भाग्य जीवन में बहुत अहेम होता है वो जब तक साथ देता है तब तक हर गलत कदम आपको लगता है की सही पड़ रहा हैआपके आस पास हर किये हुए कार्य को सराहने वाले मिल जाते है ये जोश इतना बड जाता की इन्शान अभी भूत होने लगता है  और ये भूल जाता है की गलत हमेशा गलत ही हो होता है चुकीं समय अच्झा  है इसलिए गलत सही सब सही लग रहा है लेकिन गलत हमेशा गलत ही रहेगा समय भाग्य जेसे ही साथ छोड़ेगा इन्शान अपनी गलतिया गिनना सुरु कर देता है की अगर उस समय ये न किया होता तो आज ये दिन न देखने पड़ते चलो कोई बात नहीअभी किसी की बात समझ में नही आएगी समय ठीक है सब ठीक है में कह रहा था की केजरीवाल जी आन्दोलन का उद्देश्य क्या था सही सही बताव क्या तुम्हे तुम्हारी टीम के लोगो ने समय रहते नही पकड़ लिया असल म्हात्वाकान्झा थी क्या ? आन्दोलन या फिर आन्दोलन का सहारा लेकर राजनीतिक गणित बिठाना इसीलिए मुझे शक हो रहा है की तुम और अन्ना फिर कोई शाजिश कर रहे हो  क्योकिअन्ना अपनी स्थिति में सन्देश देते कम दिख रहे है सफाई देते ज़्यादा दिख रहे है अरविन्द तुम इतने सीधे भी नही जितना हम सभी लोगो को दिखाने का प्रयास कर रहे हो देखना इस चक्कर में जनता को मुर्ख मत समझ लेना तुम दोनों मिलकर ये जो साजिश कर रहे हो उतनी ही करना जितनी सभालं सको वेसे ही देश के हाल किसी से छुपे हुए नही है आम आदमी को सरकार ही नही भगवान भी समझाने का प्रयास कर रहा है की तुम जनता हो तुम मुर्ख हो हम जेसा कहे वेसा समझते क्यू नही हो पैसे पेड़ में नही लगते अब इन्हें कोन  समझाये की दिन रात की मेहनत से घर की जवाब दारी उठाते उठाते खुद  उठ जाते है इन बेचारों को पेड़ मे लगे आम या फल तो दिखते नही नोट लगे पेड़ कहा ढूढे उनको कोन समझाये की ये वो लोग है जिन्होने आपको अपने लिए सरकार बनाया ये आम आदमी है ये आम आदमी खाश आदमी बना सकता है क्या ये खुद नोट लगा पेड़ ढूढ़ कर खाश नही बन सकता है वरना आप में और आम आदमी में फर्क ना खत्म हो जाए  आपने देखो नोट उगाने वाले रिश्वत खोरो को कितनी आसानी से ढूढ़ लिया एक लाख करोड़ सत्तर हज़ार करोड़ तीनसो करोड़ न जाने कितने करोड़ कितने घपले ये सब सरकार आपके ढूढे हुए साथी ही कर सकते है सरकार का मुखिया  बनके बोलते वक्त अपने पद की गरिमा का ध्यान नही रहता न सही आपके किसी साथी को भी कहा रहता है भाई आप सरकार है और वो सरकार में आपके साथी कोई बात नही/उम्र का ध्यान तो रख सकते हो इस उम्र में तो ये भाषा मेरे ज्ञान के अनुशार बिलकुल ठीक नही इतने उचे पद पे बेठने के  बाद हो सकता है इस तरह  की भाषा का इस्तेमाल सही मानते हो ! ये भ्रष्टाचार और ये भाषा दोनों ने ही मिलके अरविन्द केजरीवाल के दिमाग के घोड़ो को प्रेरित कर  दिया होगा की बहुत हो गया आन्दोलन   इस के लिए तो उम्र पड़ी है काहे का लोकपाल कोन सा लोकपालअपना जो उद्देश्य था इस आन्दोलन के द्वारा सत्ता के करीब पहुचने का वो इतनी ज़ल्दी दिखाई देने लगेगा इस की उम्मीद तो अपने को खुद नहीं थी ये ऊपर वाला है भइया जब भी देता है देता छप्पर फाड़ के कहा तो आन्दोलन ही चलाना पड़ता दो एक शाल और कहा मुद्दों सहित राजनीती का एषा रास्ता खोल दिया की पार्टी बनाने का एलान करना पडा लेकिन हद ये है की पार्टी का नाम क्या रखे ये तक नही सूज रहा उसके सविधान के बारे में तो बात करना ही अभी बेकार है वेसे भी स्वयंभू आधारित पार्टी में मुख्य स्वयंभू होते है उस पार्टी का सविधान स्वयंभू के आचार विचार पे ही आधारित होते है उनकी मर्ज़ी ही पार्टी की दिशा एवं उद्देश्य निर्धारित करते है देश की हालत ऐसी है की क्या कहे आर्थिक सुधार के बहाने प्रधान मंत्री जनता के ऊपर जो कहर बरपा रहे है उससे नित्य नये मुद्दे खड़े हो जाते है जो भी आम आदमी की बात करता है जनता उसको अपने सर पे बिठाने को तयार हो जाती है ऐसे में प्रधान मंत्री के उल ज़लूल बयान आग में घी का काम करते है अब बताव की इतना सुनहरा अवसर अन्ना और केजरीवाल केसे छोड़ देते अन्ना आनन फानन मेंअपने गावं राने गन सिद्दीसे दिल्ली पहुचते है दोनों खूब विचार विमर्श करके निर्णय ले लेते है की एक आन्दोलन चलाएगा और दूसरा पार्टी बनाएगा अन्ना ब्राड इमेज को बचाने की कोशिश करते है केजरीरीवाल माह्त्वाकानछा पूरी करने की , इसमें एक बहुत बड़ा फायेदा ये हुआ जो केजरीवाल के बहाने साथ छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी या और किसी पार्टी में जुगाड़ बिठाने की कोशिश कर रहे थे या फिर यूँ कहे की बिठा लिया था के मंसूबो में फिल हाल पानी फिर गया अब उनकी मजबूरी है दोनों में से किसी एक के साथ रहो इसे कहते है शापं भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी  अन्ना ने केजरीवाल से किया वादा बड़ी सफाई से पूरा कियाअपनी गाँधी वादी इमेज भी बचा ली और लोगो को टूट के जाने भी नही दिया एक साथ बड़ी सफाई से दोनों बाते कर गए केजरीवाल का मज़ाक उड़ाया ये कह के  एस एम् एस एवं टी वी सर्वे का प्रजात्रिक वेवस्था में कोई मायने नही होता में इस सब पे विस्वास नहीं करता ये सब यथार्थ में बकवास होता है और साथ साथ ये भी कहा की अगर अरविन्द केजरीवाल कपिल सिब्बल के खिलाफ़ चुनाव लड़ेगें तो में खुद उसका प्रचार करूगां तथा जनता से आग्रह करूगां की उसे चुनाव में भारी मतो से जिताए ये कह कर इशारों इशारों में आशीर्वाद भी दे दिया अन्ना तुमने इन लाइनों का बड़ी खूबी से इस्तेमाल किया मेरे ख्याल से ये कहावत जब राजकपूर ने अपनी फिल्म के एक गाने में ली थी उस समय तुम जवान हो रहे होगें और ये लाइने तुमने गुन गुनाई भी होगीं    समझने वाले समझ गए जो न समझे वो अनाणी है की कहावत को भी साबित कर दिया मान गए केजरीवाल मान गये इतिहास पड़ते तो बहुत लोग है उसको दोहराने की जो कला आप में है भइया फिर कहता हूँ माँन गए साज़िश का सूत्र या फिर कहे प्लाट आपनेदेश की आज़ादी से बड़ी खूबी से उठाया है लेकिन में दावे से कहता हूँ की वो आन्दोलन था उस आन्दोलन ने पहले मंज़िलं पाई फिर उसमे भूमिका निभाने वाली सबसे बड़ी पार्टी ने अपनी नेतिक जवाबदारी का अहसास  करते हुए सत्ता की लड़ाई लड़ना सुरु किया और अगर ध्यान से देखो तो आज़ादी जिस हाल में मिली थी देश की क्या इस्थिति थी वो किसी से झुपी हुई नही है बस आज के युवा उसे नही समझ रहेआज देश रोटी नमक की लड़ाई को मिलो पीझे छोड़ चुका हैं इसका अहसास भी उसे नही हैं की उनके बड़े बुज़र्गो ने उन्हें इस इस्थिति में लाने के लिए क्या क्या कुर्बानी दी और न वो ये समझना चाहता हैंकी आन्दोलन होता क्या है उसकी मंजिल क्या होती है वो तो आप जेसे लोगो के द्वारा दिखाये रास्ते को अपनाने के लिए विवश हो जाता हैइसकी वजह ये होती है की जब आप जेसे लोग जो निहित स्वार्थके लिए आन्दोलन सुरु करते है आदर्श इन्शान की चादर ओढ़ के ! वो भी अपने को इस में समाहित कर लेता है कही न कही वो भी मान लेता है की वो भी देश सेवा कर रहा हैं उसे क्या पता की आपका हिडेन एजेंडा क्या है लेकिन आपको अच्छे से पता है की ये ताकत ही आपके सपनों को पूरा करेगी आपकी महत्वाकान्झा को इनका बलीदान ही पूर्ण करायेगा आप जेसे खिलाड़ी इनका इस्तेमाल बड़ी सफाई से एक हथियार के रूप में करते है इनके अन्दर आप जैसे लोग राष्ट्रवादी  साह्शी क्रांतिकारी विचार भर देते है जिनके जोश में आप अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लग जाते है ये बिचारे क्या जाने की इनका कहाँ इस्तेमाल हो गया ये बिचारे तो अपने इस सपने को पूरा होते हुये देखने लगते हैं की वो तो पश्चिम के किसी भी युवा से ज़्यादा अपने को इस आन्दोलन की सफलता के पश्चात  आधुनिक एवमं सफल बना लेगा                                        
                                                   














                                                                

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