Thursday, September 17, 2015
Saturday, September 12, 2015
एक बार फिर जापान : भीषण बाड़ की चपेट में
जापान की राजधानी टोक्यो के उत्तर क्षेत्र में स्थित शहर 'जोसो' में, किनगावा नदीतट के टूटने से भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा । इस बाद ने बड़ी तादात में जोसो शहर में तबाही मचा दी है । नदीतट के किनारे अचानक टूटने से आई इस बाढ़ ने भारी उथल पुथल मचा दी है । शहर में पानी इस तरह भर गया है की लोग अपनी जान बचाने के इरादे से घर की छतो पर जा बैठे । helicopter rescue टीम छतो पर पर बैठे लोगो को बचाने के प्रयास में लगी हुई है । अनुमान लगाया जा रहा है की 8 लोगो लापता है और करीब 100 और लोगो को अभी बाढ़ से बचाव सुरक्षा मुहैया कराना बाकी रह गया है ।
जापान के Meteorological Agency ( Japan Meteorological Agency - JMA) के अनुसार जोसो शहर में बारिश के बहुत की कम आसार होते है । इस तरह की बाढ़ ने बहुत ही विपरीत परिस्थितियाँ पैदा कर दी है । सामान्य जीवन अस्त - व्यस्त तो हुआ ही , साथ ही जिस शहर में बारिश होने के भी बहुत कम अनुमान होते है , वह बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा ने भारी मात्रा में पूरे शहर को पानी - पानी कर दिया । दो दिन के इस भारी उन्माद ने जोसो शहर के घरों और कारों तक को अपनी चपेट में ले लिया ।
Lucky Baba
Om Sai...
Friday, September 4, 2015
Lucky Baba
अर्थशास्त्र का बदलता रूप
इस समय भारतीय अर्थशास्त्र (economic condition) अपने असमंजस की स्तिथि से गुज़र रहा है । पिछले कुछ महीनों से इस सब का मापदंड माने जाने वाले कुछ मुख्य तत्व हैं जो भारतीय जनमानस से अपना सीधा सम्बन्ध बनाते हैं, उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं :
1 . खाद्य पदार्थों के दामों में बढ़ोतरी : पेट्रोलियम पदार्थो के दामों में ऊँच - नीँच होना
2. धातू (Metal): मेटल पदार्थो में मूल्यों का ऊपर - नीचे जाना
3. शेयर बाजार : शेयर बाजार का उतार - चढ़ाव से भरा होना
4. भारतीय रुपये का अवमूल्यन : कुछ हद्द तक भारतीय रुपए में अस्थिरता आ जाना ।
भारतीय जनमानस मोटे तौर पर अर्थशास्त्र को इन्ही तत्वों पर आधारित मानता है । वह अर्थशास्त्र के छोटे - मोटे या बहुत भारी गणितों में नहीं उलझता और इधर कुछ दिनों से भारतीय राजनीति भी इसके बहुत करीब आ गई है। मैं तो यहाँ तक कहूँगा की भारतीय राजनीति ने अपना स्वरुप ही बदल लिया है । जो पहले कभी शिक्षा, सामाजिक ताना - बाना, सद्भाव , आपसी प्रेम , आपस में लोगो के सुख - दुःख में सम्मलित होना, भाई - चारा, एवं परिवार के लालन - पालन पर आधारित थी, कहने का तात्पर्य यह है - समाजवाद पर आधारित राजनीति अब अर्थशास्त्र एवं जातीय - धार्मिक उन्माद पर आ कर टिक गई है । पिछले कुछ वर्षो से विकास का मुद्दा नाम का एक शब्द देकर इन सभी मूल व्यवस्थाओ से राजनीतिज्ञों ने अपने - अपने तरीके से सत्ता शील होने के लिए हथ कंडे अपनाना शुरू कर दिए हैं । जिसके तहत वह अर्थशास्त्र के सबसे मुख्य नियम - मंदी एवं तेज़ी के नियम को भूल जाते हैं।
भारतीय अर्थशास्त्र पिछले कुछ वर्षों से पश्चिमी देशों , विशेष रूप से अमेरिका के अर्थशास्त्र से प्रभावित होता है । अमेरिकन अर्थशास्त्र जितना मुझे समझ आता है, तेज़ी और मंदी को समझता है। वह, रबर (rubber) की खिचाव (elasticity) पर आधारित है । मैंने पूर्व के वर्षों में अमेरिकी अर्थशास्त्र से जो समझा है वह यह है की , महंगाई (मूल्य वृद्धि) को एक निश्चित दायरे से आगे नहीं जाने देते हैं । जैसे ही यह दायरा उठता है , वह अपने प्रयास से इस पर अंकुश लगाना शुरू कर देते हैं, जिसे विश्व का अर्थशास्त्र मंदी कहता है । इसीलिए आप अभी भी वहाँ देखें तो, महीने का मेहनताना पिछले कई वर्षो से एक सा है , या उसमे ज़्यादा उतार - चढ़ाव नहीं आया । वह अपने डॉलर (रूपया) एवं मंदी पर हमेशा चौकन्ने रहते हैं । अमेरिका का मेहनताना अभी भी 8 - 10 हज़ार डॉलर, को बहुत अच्छा माना जाता है । लेकिन, भारतीय अर्थव्यवस्था - अमेरिका की इस मूल सिद्धांत को भूल जाती है । में तो यहाँ तक कहूँगा की कमोबेश यही स्तिथि सम्पूर्ण एशियाई देशों में है ।
एशियाई अर्थव्यवस्था और मूल रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी को ही सम्पन्न आर्थिक व्यवस्था समझती है।और जब भी तेज़ी पर अर्थशास्त्र का नियम काम करना शुरू करता है - यानी की, तेज़ी के बाद मंदी , घबराहट के दौर से गुज़रने लगती है । भारतीय अर्थशास्त्रियों ने इस घबराहट या फिर यूँ कहुँ की उतार - चढ़ाव के कुछ नाम दिए है , जैसे की - GDP growth का रुक जाना या नीचे जाना , विकास के कार्यो में मंदी आना या स्थिर हो जाना, रुपये के मूल्यों पर ज़रूरत से ज़्यादा अवमूल्यन हो जाना , आदि - आदि ।
इसी दौर से इस समय भारतीय अर्थशास्त्र या अर्थव्यवस्था गुज़र रही है जिससे भारतीय अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ अपने आप को असहाय एवं लाचार दिखाने का प्रयास करने लग गए । वित्त मंत्री अपनी जवाब देहि भूल कर RBI के गवर्नर को टकटकी बाँध कर देखने लगे है । अच्छे - बुरे का दोष वह अपनी जवाब देहि भूल कर RBI गवर्नर के ऊपर थोप देते हैं । जान मानस , घबराहट के दौर से अपने आप को सँभालने में पस्त हो जाता है । कभी वह शेयर बाजार में अपनी , पसीने की कमाई लूटा बैठता है , कभी घर में रखे गहनों के अवमूल्यन से गरीब हो जाता है , कभी प्रॉपर्टी के गिरते हुए रेटों से अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है - कहने का तात्पर्य यह है की सरकार को भारतीय नागरिको से जब जो चाहिए होता है , राष्ट्र प्रेम का नारा देकर , राष्ट्र के विकास की बात कह कर , राष्ट्रीयता पर आधारित कोई भी जुमला बोल कर, उसे बेबस और लाचार करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। और जब देने की बारी आती है तो अपने टैक्स रुपी हथियार लगा कर उसे फिर से लूटना शुरू कर देती है ।
सरकार इस सिद्धांत को मानने को तैयार ही नहीं है की तेज़ी और मंदी दोनों जगह अगर सामान रूप से नहीं चले तो विश्व , फिर से विश्व युद्ध की तरफ बढ़ जायेगा । बस फर्क यह होगा की , यह विश्व युद्ध अर्थव्यवस्था पर आधारित होगा , जैसे की - भुखमरी का आ जाना , मूल्यों का ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ना या घटना , राष्ट्रों का आतंरिक युद्ध में फ़स जाना आदि ।
Lucky Baba
Om sai....
Om sai....
Wednesday, September 2, 2015
American Stock Market
अमेरिकन शेयर बाजार पर मंदी आने के तीन मुख्य कारक
पिछले सप्ताह के उन्माद और इस आशा से की अमेरिका में labor day (Monday, September 7 , 2015) तक की समयावधि या निर्धारित समय में अमेरिकन मार्किट की स्तिथि में सुधार आ जायेगा , यह लाज़मी है । इन सब तथ्यों या अनुमानों के अलावा एक भारी समस्या यह भी है की अमेरिकी मार्किट को बहुत सी अन्य बातें प्रभावित कर रही है । केवल अमेरिकी मार्किट ही नहीं बल्कि ग्लोबल इक्विटी (Global Equity ) को भी यही बातें प्रभावित कर रही है। इसके चलते यह कहना की अभी मार्किट में सुधार की उम्मीद है - कुछ उचित नहीं लग रहा । अमेरिकन शेयर बाजार में आज की तारिक़ में तीन प्रमुख बाहरी प्रभाविक कारक है जो की stock prices पर इस सप्ताह अधिक व्यवधान पैदा करने की क्षमता रखते है।
OIL : तेल बाजार के निवेशक तेल के दामो में आई अस्थिरता से परिचित है। WTI के लिए समर्थन स्तर का $42 से $40 के नीचे जाना अपेक्षित एवं यथायोग्य लगा तो था मगर उसी का bounce back होना या उछलना सभी निवेशकों को भौचक्का कर गया था ।इस विस्तृत पलटाव का कारण कुछ अन्य छोटी बड़ी बातों से निकला जा सकता है , लेकिन , इस बात को हमेशा आधार बना कर अनुमान लगाना चाहिए की Saudi देश की सेना का यमन देश में जाना : यह प्रमुख कारणों में से एक है जिसने वैश्विक स्तर पर तेल के दामो को प्रभावित किया या कर रहा है । Middle East हमेशा से अस्थिर रहा है और आने वाले समय में भारी अस्थिरता का सामना करेगा । व्यापारीयों का भारी घबराहट एवं बाज़ार की अस्थिरता : इन दोनों बातों ने तेल व्यापार को और भी अस्थिर कर दिया है , जिसके फलस्वरूप यह माना जा सकता है की Stock Market पर भी इसका भारी असर पड़ेगा । शेयर बाजार की तेल बज़ार पर जो प्रतिक्रिया है वह फिलहाल काफी अस्पष्ट है , पर तेल बाज़ार में अगली गिरावट निश्चित रूप से Stock Market को नीचे धकेल देगी।
JOBS: आमतौर पर बाहरी प्रभावों की अनुपस्थिति के चलते U.S. Bureau of Labor Statictics, के अनुसार अमेरिका का Job Market , Bonds एवं Equity Market में सामान्य रहा । फिलहाल U.S Bureau of Labor की रिपोर्ट शुक्रवार को आएगी। Private और साप्ताहिक jobsless दावों की रिपोर्ट बुधवार एवं गुरुवार को आना संभावित है । हालाँकि यह हफ्ता एक बार फिर कुछ अलग रहेगा । व्यापारियों और विश्लेषकों का ध्यान फिलहाल किन्ही भी आंकड़ों या फिर उनके द्वारा स्वयं बनाए हुए आंकड़ों पर (आर्थिक हालातों पर )केंद्रित करने की बजाये FED Policy द्वारा प्रकाशित आंकड़ों पर केंद्रित करता है । यह बात पूर्ण रूप से व्यक्तिपरक या subjective लगती है । अमेरिकन Job मार्किट से सम्बंधित किसी भी तरह के आंकड़े फलतः इस हफ्ते से बाजार के उतार - चढ़ाव और Bulls एंड Bears में एक नए सिरे से चिंगारी लगा सकते है ।
China: पिछले हफ्ते के बीते कुछ दिन U. S Stock Market को यह संकेत देते हुए नज़र आ रहे है की China की सामान्य से भी कम की वृद्धि सम्भवतः वैश्विक मंदी (Global Meltdown) का कारण बन सकती है। यह ध्यान देने योग्य बात है की , अमेरिकन बाजार (Domestic Market) एशिया एवं चीन के Stock Market के हर पल की खबर एवं घटनाओं से लगातार जानकारी ले रहा है।
Lucky Baba
Om Sai…
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