Sunday, September 9, 2012

                                   प्रधानमंत्री की खोज  


देश में बड़े नेता बनने का या किसी भी पार्टी या दल का स्वयम्भू बनने का नुस्खा खोज लिया है आज देश में बड़ी भारी प्रतियोगिता चल रही है वो भी किसी भी पार्टी या दल का स्वयम्भू घोषित कराने के लिए पता नहीं ये प्रतियोगिता क्यों और केसे शुरू हो गई इसकी देश को अभी ज़रूरत है भी या फिर स्वयम्भू सज्जनों (नेताओ ) को कोई डर सताने लगा है में कुछ समझ नहीं पा रहा हू लेकिन रोज़ इस प्रयास में  या यूं कहे इसके लिए बुज़ुर्ग  नेताओ  की अथाह कसरत क्या गुल खिलाना चाहती है कुछ समझ में नहीं आ रहा है वेसे भी देश के इन नेताओ  का नुस्खा साधारण जनता शुरू में कहा समझ पाई है इस देश में इसी कला को तो आम आदमियों के बीच का समझदार मनुष्य ये यह कहकर ये ही तो राजनीति है भइया तुम और हम समझ गए होते तो हम वहा ना होते ज़हा आज ये है अपने आप को समझदार घोषित करवा लेता है जेसा चल रहा है चलने दो ! इस पचड़े में बाद में पड़ेगे अभी तो इस बात पर चर्चा करेगे की स्वयम्भू बनाने की अचानक ज़रूरत क्यों आन पड़ी और इतने आसान रास्ते  से ! रास्ता ये है बढ़िया खाना, नाश्ता खाया उसके बाद पान हुआ तो पान या गुटखा नहीं तो एक सिगरेट लगाईं जोर का कस खीचा सिगरेट का कस खीचते समय अपने पट्टो को ये हिदायत दे रखी होती है कोई फोटो वेगारह ना खीचे ! और प्रचार के किसी भी माध्यम का भरपूर उपयोग करते हुए देश को ये बता दिया की अगला प्रधानमंत्री देश का कोन होगा देश को प्रधानमंत्री दे दिया अपने दल के उभरते हुए चेहरे को बता  दिया की बच्चू अभी तुम्हारी भलाई इसी में है की मेरी सेवा ढंग से करते रहो जो देश का प्रधानमंत्री बनाने की क्षमता रखता हो वो अपने दल का स्वयंभू पद कैसे छोड़ सकता है हाँ कभी कभी स्वास्थ्य या शरीर की थकावट की वज़ह से निर्लिप्त भाव पैदा हो जाता है जिसकी वज़ह से में उत्तराधिकारी वगैरह का शगूफा छेड़ देता हूँ लेकिन इसका मतलब ये थोड़े है की में तुमको स्वयम्भू बनाके खुद अपने पैर पर  कुल्हाड़ी मारू ! आप मानो या ना मानो दिल के किसी ना किसी कोने में ये बात एक दो दिन में ज़रूर आती होगी की अचानक देश के स्वयम्भू नेताओ को नए प्रधानमंत्री ढूढने की इतनी हड़बड़ी क्यों हो  गई है अडवाणी जी से लेकर बालठाकरे  तक ! इसके बीच में में भी कई उम्र दराज नेता है जो बड़ी शिद्दत से प्रधानमंत्री की खोज कर रहे है जेसे शरद यादव  मुलायम सिंह यादव करूणानिधि आदि !खुद तो हे ही चिन्तित देश को भी चिंता में डाल दिया अरे भइया इसमें फायदा तो इनका ही  है आम के आम गुठलियों  के दाम वाली कहावत सच साबित कर दी वो ऐसे की चुनाव तो 2014में कही है फिर भी अपने को लोग फ्री ना समझे अपन भी बहुत इम्पोर्टेन्ट  है कई लोगो के लिए तो अभी अपने में क्या कमी है उम्र थोड़ी हो भी गई तो क्या हुआ अनुभव भी तो कोई चीज होती है अपन मनमोहन सिंह जी से 5/10 साल ही तो छोटे बड़े है क्या पता किस्मत काम कर जाए अरे हाँ मनमोहन सिंह जी को भी तो किस्मत का ही सहारा मिला था वरना राजनीती में तो वो अपने से बहुत जूनियर है बस उनके और अपने भाग्य में ही तो फर्क है उनके पास भाग्य से सोनिया गाँधी जेसी नेता थी जो त्याग की मूर्ति साबित हुई जो मनमोहन सिंह को सिवा इतना जानने  कि एक अच्छे अर्थशास्त्री है कभी कभी कोई चुनाव  लोकसभा या राज्यसभा का लड्लेते है हारना जीतना भगवान् के भरोसे छोड़ के दो एक बार जीते भी है उसका पारितोषक भी उनको मिला था  केबिनेटमंत्री  बनाके ! पता नहीं कोई देश या समाज के लिए इतना बड़ा सेक्रिफाइज़ केसे कर लेता है अपने से तो छोटा मोटा पद ही नहीं छोड़ा जाता है सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री का पद टुकरा दिया आपन तो हक्का बक्का ही रह गए थे और ऐक ऐसे इंसान को प्रधानमंत्री बना दिया जिसको वो बहुत जादा जानती भी नही थी अपने से नहीं बनता ऐसा सेक्रिफाइज़ आपन तो कुर्सी से किया वादा निभायेगे की तू भले छोड़ दे हमे  हम मरते दम तक पूरेजोड़ तोड़ बदनामी शह कर अस्वस्थ होने होने के बाद भी तेरे से किया वादा निभायेगे अब चुकी अपने से सेक्रिफाइज बलिदान आदि नहीं बनता है और इस देश में इसकी बड़ी डिमांड है तो सोनिया गाँधी के बलिदान को राजनीतिक हथकंडा कानूनी अड़चन आदि बनाके बताने का प्रयास कर रहे है दिक्कत तो ये है की जनता इनकी सुनने को ही तैयार नही इसी चक्कर में उम्रदराज़ हुए जारहे है अब बताव इस में इनका क्या दोष है इन्हें तो कुर्सी से किया अपना वादा निभाना पडेगा ना ! इसके लिए भले कितने वादे तोड़ने पड़े वो सब आपन ये कह कर की ये ही राजनीति है कह के दात निपोड़ देगे !ये नेता मनमोहन सिंह जी के प्रधानमंत्री बनने में योग्यता से ज्यादा भाग्य को मानते है उनका मानना है की भाग्य से ही त्याग की देवी सोनिया गाँधी जेसी नेता उन्हें मिली और इन्हें अपने बनाये ही नेताओ (पट्ठो ) से चुनौती मिल रही है वरना क्या ज़रूरत है अभी से प्रधानमंत्री ढूँढने के बहाने अपनी उपियोगिता  बनाए रखने की या फिर स्वयभू नेता बनने की इसे कहते है अपना अपना भाग्य !     
बाबा लकी 














    

Tuesday, September 4, 2012

कई दिनो से मेरे मन मे एक सच्ची जीवनी लिखने का विचार आ रहा था लेकिन सबदों मे केसे डालु ये नहीं समझ पा रहा था दूसरा ये एक दिन मे पूरी भी नहीं हो पाएगी इस को लिखने मे कई दिन लग जाएगे फिर इस के साथ मे न्याय भी कर पाउगा की नहीं ये भी पता नहीं ये मेरे एक बहुत ही करीबी साथी के बारे मे है इसमे पात्रो के नाम मेने बदल दिये है !प्रयास करता हू अगर ठीक से लिख ले गया तो ठीक वरना बीच में ही बंद कर दूंगा अगर में 10%भी लिख ले गया तो लिखूगा मुझे ना जाने क्यू बस इस को लिखने का मन करता है मुझे शाएद ऐसा लगता है की इसने मेरे जीवन में बहुत प्रभाव डाला है बहुत कुझ मेने अपने जीवन में इससे चुराया है पक्का तो नहीं कह्सकता लेकिन ये मुझे ईमानदारी से स्वीकार करना चाहिए की मेरे ऊपर इस सबका बड़ा असर रहा असल में ये एक घर या परिवार की कहानी है ये  ना जाने कियू  एक निग्लेक्टेट बच्चे की जीवनी से लगती है जिसमे बहार से तो पूरा घर एक सामान्य घर जेसा ही लगता है किन्तु उस घर में वो अपने सगे माता पिता के बीच भी अपने को अलग थलग पाता  है हर ज़गह उसे न जाने क्यू ऐसा लगता है की हमेशा उसके घर में किसी भी गलत हुए कार्य का टीकारा कोई ना कोई वज़ह बताकर उसके ऊपर ही फोड़ दिया जायेगा चाहे उससे उसका कोई लेना देना हो या न हो वज़ह वही रहेगा वह अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा है वो तीन भाई और एक बहन है उसकेमाता पिता ग्रामीण परिवेश से है वो भी तीन भाई एक बहन है !इनके पिता '[पिता के पिता यानि की बाबा ] एक जागीर द़ार के बड़े खास मुलाजिम थे और शायद दूर के रिश्ते में भी थे !जहा उन्होंने शायद पढाई लिखाई [एजुकेसन ] के महत्व को पहचाना था वो दो भाई थे !हा तो में कह रहा था